पतझड़ की बेला में पश्चाताप
पतझड़ की बेला में पश्चाताप
हर किसी की जिंदगी में यह मौसम आता है।जब जिंदगी चरम पर होती है। तब दूसरे सब ऋतु आते हैं हम अपने आप में अपने खो जाते हैं।
ऐसा लगता है यह समय सबसे बढ़िया है। यह हमारे जिंदगी की खुशनुमा बसंत ऋतु है। मगर देखते ही देखते जिंदगी की पतझड़ ऋतु भी चालू हो जाती है। ऐसा विचार करते करते वह अकेला निस्सहाय सा बेटे का परिवार होते हुए भी अपने आप को जिंदगी के पानखर ऋतु में अकेला महसूस करते हुए, जैसे अपने आप से ही बातें कर रहा हो। वैसे अपने आप में खोया हुआ अपने आप से अपने पत्नी के प्रति किए दुर्व्यवहार और अपनी जिंदगी को याद कर रहा था। सोच रहा था कितनी अच्छी कितनी प्यारी पत्नी थी। मगर मैंने उसको कभी अपना समझा ही नहीं हमेशा उसको तकलीफ ही दी। और डरा के रखा कभी उससे सीधे मुंह बात नहीं करी।कभी उसकी अहमियत नहीं समझी। तभी मेरे बच्चे भी उसको कुछ नहीं समझते थे ।
वो इतनी अच्छी थी भले ही कोई भी उसको कुछ भी कहे, जवाब नहीं देती थी ।हम उसकी दूसरों के सामने भी बेइज्जती कर देते थे, मगर कभी उसने पलट कर जवाब नहीं दिया। बस आंखों में आंसू लिए वहां से दूर चली जाती थी। और हमको उसके आंसुओं की कोई नहीं कीमत ही नहीं थी। वह हम सब से बच्चों से बहुत प्यार करती थी। मेरे परिवार से बहुत प्यार करती थी। मेरी मां ने बहुत बार समझाने की कोशिश करी। मगर मेरे दिमाग पर तो उसके कम पढ़ी-लिखी होने का खाली ग्रेजुएट होने का भूत सवार था। और मेरे को खुद पर बहुत घमंड था। इसलिए मेरे को उसके सामने कुछ नजर ही नहीं आया। भगवान का न्याय देखो, बहुत जल्दी 40 साल की उम्र में ही छोटा सा दो-चार दिन के समय में ही अचानक ब्रेन ट्यूमर से चल बसी हम सबको एक सदमे छोड़ कर चली गई। उसके जाने के बाद उसके गुणों का ध्यान आया ।
मगर जब सब कुछ आप से करना पड़ा तब ख्याल आया कि क्या है कि वह कितनी महान थी। अब घरवाले दूसरी शादी के लिए कह रहे थे 2 साल में ही दूसरी शादी कर ली। दूसरी पत्नी बहुत डोमिनेंट थी मैं उसी के रंग में रंग गया बच्चों की तरफ से भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया उसने बड़ी बेटी की शादी तो जल्दी ही करवा दी। जबकि उसका पढ़ने का बहुत मन था ।और मैंने भी हां में हां मिला कर शादी कर ली। मगर ईश्वर को तो अब कुछ और ही मंजूर था।वह भी बहुत बीमार रहने लगी और और थोड़े समय में ही साथ छोड़ कर चली गई ।
जब तक रही थोड़े समय ठीक रही मैं उसके पीछे पीछे ही दौड़ता रहा वह आगे आगे अपनी तरह चलती रही। मगर मेरे को कभी उससे शिकायत नहीं थी। कहते हैं ना सावन के अंधे को सब यह सब हरा ही हरा दिखता है। वही हाल-चाल मेरा था। आज जब वह मुझको छोड़ कर चली गई।तब मन पहली पत्नी की तरफ किए गए अन्याय का पश्चाताप करने का हो रहा है। मगर वह तो है नहीं इस जीवन संध्या में पतझड़ काल में मैं अपने बेटे और उसकी पत्नी के साथ हूं ।
मगर उन लोगों के लिए तो मैं एक पतझड़ का पान हूं जो कभी भी गिर सकता है। मगर बच्चों ने बेटे ने उसकी मां के साथ मैंने जो करा यह सब अपनी पत्नी को बता दिया तो पत्नी का व्यवहार और बच्चों का व्यवहार मेरी तरह बहुत खराब है। अब मुझे इतनी तकलीफ हो रही है। तब मैं सोच रहा हूं कि
मैं कितना परेशान कर रहा था उसको। तब भी उसने उफ तक नहीं करी और बहुत जल्दी ही मुझको छोड़ कर चली गई। शायद भगवान उसी का मुझको बदला दे रहा है। शायद यही भगवान का न्याय है कि जीवन पतझड़ में अकेले बैठकर, अपनी तकलीफों को, अपने द्वारा किए गए अन्याय को ,और बेटे बहू के ताने सुन कर के जिंदगी गुजारना यही मेरी किस्मत है। अब मैं माफी भी मांग लूंगा अपनी पत्नी से तो वह तो है नहीं। फिर भी मैं पश्चाताप पूर्वक माफी मांगता हूं
मैं माफी मांगता हूं कि मुझे माफ कर देना तू जहां कहीं भी हो मुझे मेरी गलती का एहसास हो गया। ईश्वर तुम्हारी आत्मा को शांति दे कल मुझे मेरा पश्चाताप कि तुम माफी दे दो