पति का बटुआ
पति का बटुआ
आशा एक अच्छे-खासे परिवार की पढी़- लिखी लड़की है, MCom किया तो college से job का offer भी आया। आशा की नौकरी लग गई, उपर से बला की सुन्दर भी थी, एक से एक बढि़या रिश्ते आने लगे।
एक धनाड्य परिवार मेंं आशा की शादी हो गई।
ससुर जी ने आते ही फ़रमान जारी कर दिया कि कल से बहु नौकरी पर नहीं जाएगी, हमारे घर की बहू-बेटियाँ नौकरी नहीं करती। लेकिन पापा इसमेंं गल्त क्या है, मैंं पढी़-लिखी हूँ, और मेंरी शिक्षा का क्या फा़यदा अगर मैंं किसी को शिक्षित ना कर सकूँ तो। ससुर जी कँहा सुनने वाले थे, बस कह दिया नहीं तो नहींआशा मन मार कर रह गई।
सब कुछ तो था घर मेंं नौकर-चाकर, गाडि़याँ कोई कमी नहीं थी, लेकिन उसे जब भी कुछ खरीदना होता था तो पति आकाश से पैसे माँगते हुए बहुत बुरा लगता था, वो जब भी आकाश से पैसे माँगती, आकाश कहता वो भरा पडा़ है बटुआ जितना जी चाहे निकाल लो, तुम्हारे ही तो हैं सब, लेकिन उसे (आकाश ) पति के बटुए से पैसे लेना बिलकुल भी अच्छा नहींं लगता था, क्योंकि वो तो हमेंशा अपने बटुए से खर्च करती थी।
अचानक उनके व्यापार मेंं कुछ परेशानियाँ आने लगी, और व्यापार दिनों-दिन खत्म होता गया, घर में भी काफी़ परेशानियों का सामना करना पडा़। घर का गु़जा़रा भी बहुत मुश्किल से होने लगा, सास- ससुर भी बीमार रहने लगे, उनकी दवाईंयो का भी खर्च, एक दिन आशा ने ससुर जी से कहा कि पापा मेंरे माता - पिता ने पढ़ाया है मेरे पास हुनर है तो मैंं क्यों नौकरी नहींं कर सकती, आजकल बेटी और बेटे मेंं फर्क नहीं होता, बेटा काम करे या बेटी, मतलब तो खुशहाली से होता है मैं आकाश का सहारा बन सकती हूँ, ससुर जी भी हालात को देखते हुए मान गए, और आशा फिर से नौकरी करती है। साथ-साथ घर की देखभाल करती है, आशा को अब हर चीज़ के लिए (आकाश से ) अपने पति के बटुए से पैसे लेने की ज़रुरत नहींं पड़ती, और वो सास-ससुर की भी दवा इत्यादि खुद के बटुए से ले आती है।