पथप्रदर्शक
पथप्रदर्शक
आज शिक्षक दिवस के अवसर पर स्कूल से घर वापस लौटने के बाद शीतल बेहद खुश थी, क्योंकि आज स्कूल में उसे अपने छात्र-छात्राओं से जो प्यार और सम्मान मिला वो उसके लिए बहुत बड़ी बात थी। एक अध्यापिका के रूप में अपनी इस सफलता से वो बहुत ही खुश थी और मन ही मन में वो अपने 'पथप्रदर्शक' यानी अपने उन शिक्षकों को दिल से आभार देने लगी जिनकी वजह से वो आज इस मुकाम पर थी। वो अपने अतीत के ख्यालों में खो गई और सोचने लगी कि जब वो बारहवीं की परीक्षा में फेल हो गई थी और अपना एक साल बर्बाद होने की वजह से दुखी थी। साथ ही उसे इस बात का भी दुःख था कि अगर उसने अच्छे से मेहनत की होती, तो शायद वो फेल न होती।
शीतल के पिता जो कि थोड़े रूढ़िवादी विचारों के थे और बेटियों की पढ़ाई की बहुत महत्ता नही समझते थे। उनके हिसाब से तो १८ वर्ष की होने पर बेटियों की शादी कर देना ही उचित था। वो तो उसकी मां थीं जो बेटियों की शिक्षा को अनिवार्य समझती थीं। लेकिन पढ़ाई पर ध्यान न देकर शीतल अपना ही नुकसान कर रही थी। उसके अनुत्तीर्ण होने की वजह से उसकी मां बहुत दुःखी थीं। सभी को दुखी देखकर शीतल के पिता ने शीतल के लिए बारहवीं का फर्जी अंकपत्र बनवाने की बात कही। उन्होंने सोचा कि फर्जी अंकपत्र बनवाने से शीतल का साल भी बर्बाद नहीं होगा और किसी साधारण विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री भी मिल जाएगी और वैसे भी करनी तो शादी ही है। उनकी इस राय से शीतल और उसकी मां थोड़ा असमंजस में थीं। वे समझ नहीं पा रहीं थीं कि क्या करें, क्योंकि फर्जी तो फर्जी ही होता है। इससे उ
सका साल तो बर्बाद नहीं होगा लेकिन इस नकली अंकपत्र का उसके जीवन में कोई महत्व नहीं रह जाएगा।
इसी बीच एक दिन शीतल के कोचिंग में उसे गणित और भौतिकी विज्ञान पढ़ाने वाले दो अध्यापक एक ईश्वर की भांति उसका मार्गदर्शन करने और उससे मिलने उसके घर आए। उन्हें भी शीतल की असफलता से बहुत दुख हुआ और जब उन्हें उसके फर्जी अंकपत्र बनवाने की बात पता चली तो वे और भी दुखी हुए क्योंकि उन्हें पता था कि शीतल एक होनहार छात्रा है, बस पढ़ाई के प्रति उसकी लापरवाही की वजह से वो परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गई थी। इसलिए उन दोनों शिक्षकों ने इसका विरोध करते हुए शीतल को पुनः बारहवीं की परीक्षा देने के लिए प्रेरित किया और यह भी समझाया कि मेहनत से सफलता हासिल करके मिला हुआ वास्तविक अंकपत्र जीवन भर काम आता है और खासकर लड़कियों के जीवन में कभी कोई मुसीबत आने पर हमारी ये पढ़ाई और ये अंकपत्र ही काम आते हैं।
अपने शिक्षकों की इसी बात से प्रेरित होकर शीतल ने पुनः बारहवीं की परीक्षा दी और उसमें सफल भी हुई। इसके बाद उसने बी.ए. और बीएड की डिग्री भी प्राप्त कर ली। बीएड करने के तुरंत बाद ही शीतल की शादी हो गई लेकिन दुर्भाग्यवश शादी के पांच साल बाद ही सड़क दुघर्टना में उसके पति की मृत्यु हो गई। अपने और अपने तीन साल के बेटे की परवरिश के लिए उसने नौकरी करने की ठानी। और आज शीतल अपनी इन्हीं डिग्रीयों की वजह से अपने पैरों पर खड़ी हो पाई और एक सफल अध्यापिका बन पाई और अपने शिक्षकों की ही भांति वो भी अपने छात्र-छात्राओं के लिए एक 'पथप्रदर्शक' बन गई।