कलाकार
कलाकार
" बहुत सुन्दर !, वाह क्या दृश्य है।" मनोहर अपनी ही बनाई हुई पेंटिंग को देखकर मंत्रमुग्ध हो रहा था। सचमुच, कितने खूबसूरत पहाड़, झील का झिलमिल करता और चमकता हुआ पानी, हरे-भरे पेड़-पौधे और पौधों के बीच खिले- मुस्कुराते हुए चेहरे जैसे रंग-बिरंगे फूल और उन पर मंडराती तितलियां, नीला-सिन्दूरी आकाश जिसका कोई ओर-छोर नहीं। "आह कितना मनोरम दृश्य है।" मनोहर सोच रहा था कि, क्या इतनी सुन्दर कलाकारी उसी की बनाई हुई है। उसने मन ही मन यह महसूस किया कि वह सचमुच एक बेहतरीन "कलाकार" है। लेकिन अगले ही क्षण वह अपनी सोच मुद्रा से बाहर आया और अपने आप से कहा नहीं, वास्तविक "कलाकार" तो "वो" है, जिसने वास्तव में इतनी सुन्दर धरती बनाई, जिसका अहसास हम मनुष्य ही कर सकते हैं और एक द्वितीय कलाकार के रूप में उस ईश्वर की बनाई हुई कलाकारी की कॉपी करते हैं।