SHWETA SINGH

Inspirational

4.5  

SHWETA SINGH

Inspirational

मैं ही हूं अपनी ताकत

मैं ही हूं अपनी ताकत

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ये जरूरी तो नहीं कि सभी के जीवन में उनका कोई हमसफ़र हो, कभी-कभी अपने जीवन में हम खुद ही अपनी ताकत और हिम्मत होते हैं, यानी खुद ही, खुद के हमसफ़र।.... खूबसूरत से बागीचे में बैठी, चाय की चुस्कियां लेती हुई प्रतिभा शायद यही सोच रही थी। 

आज जिलाधिकारी के पद पर कार्यरत और निष्ठा पूर्वक अपनी जिम्मेदारी को निभाती हुई वह सुकून से अपना जीवन जी रही थी। चाय की एक - एक चुस्कियों के साथ ही वह अपने अतीत में गहराती चली गई।

प्रतिभा अपने दो छोटे भाइयों की बड़ी बहन थी और बचपन से ही उसने अपने प्रति होने वाले भेदभाव का सामना किया था। उसकी तुलना में जहां उसके दोनों भाइयों को अधिक महत्व और प्यार मिलता, वहीं कभी-कभी भाइयों की ग़लती होने पर उसे बिना वजह ही अपने पिता जी की डांट सुननी पड़ती। उसके पिता और दादी दोनों ने ही उसके भाइयों को सर पर चढ़ा रखा था। बड़ी बहन होने की वजह से हर बात पर उसे ही समझाया जाता था। इस भेदभाव की वजह से उसका कोमल मन बहुत ही आहत हो जाता था। वह छुप-छुप कर अपने घर के मंदिर में विराजित ईश्वर के सामने खूब रोती थी और फिर रोते-रोते ही अपने आप को ही समझाती और हिम्मत देती कि कोई बात नहीं अगर पिताजी ने डांट दिया तो क्या हुआ, मैं बड़ी हूं मुझे ही समझना चाहिए और फिर सब भूल कर दूसरे दिन फिर से चहकने लग जाती। प्रतिभा एक सरकारी स्कूल में पढ़ती थी, जबकि उसके दोनों भाइयों का दाखिला उसके पिता जी ने एक कान्वेंट स्कूल में कराया था। इसके बावजूद भी प्रतिभा पढ़ाई में हमेशा अव्वल आती और उसके दोनों भाई बस किसी तरह से पास हो जाते थे। अपना परीक्षा फल आने पर हमेशा ही उसे यह उम्मीद रहती थी कि उसके पिता जी उसकी इस योग्यता पर बहुत खुश होंगे और उसे शाबाशी देंगे लेकिन इसके विपरीत उसे निराशा ही मिलती। इसी तरह बार-बार उपेक्षित होकर भी उसने खुद को टूटने न दिया और हर बार एक नई हिम्मत के साथ आगे बढ़ती गई। ये उसकी खुद की ही हिम्मत थी जो उसे हर दिन मजबूत बना रही थी क्योंकि वह जब भी दुःखी होती तो अकेले ही अपने दुःख का सामना करती। खुद को समझाती और सम्भालती हुई पुनः एक नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ती। लेकिन वह ये भली-भांति जानती थी कि यह जो ऊर्जा उसे मिल रही है इसके पीछे इस पूरी सृष्टि का संचालन करने वाले उस सर्वशक्तिमान ईश्वर का ही आशीर्वाद है और वह हमेशा मन ही मन हृदय से उनका धन्यवाद करती।


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