पश्चाताप

पश्चाताप

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वंशिका की शादी को साल भर से ज्यादा हो गया था पर उसकी अपनी सास से एक दिन भी पटरी नहीं बैठ पाई थी। कहां वह आधुनिक विचारधारा वाली और कहां उसकी सास पुरातन- पंथी। वंशिका के पति पंकज उसे अपनी माँ की इज़्ज़त करने को कहते पर वह उन्हें बेइज्जत करने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देती थी। वंशिका के व्यवहार से पंकज भी तंग आ गए थे पर वह ख़ुद अपनी माँ की बहुत इज़्ज़त करते थे और हर तरह से उनका ख्याल रखने की कोशिश करते थे।


पंकज का टूरिंग जाॅब था। वह जब भी घर से बाहर जाते तो अपनी माँ के लिए परेशान ही रहते। अभी भी वह एक हफ्ते के लिए दिल्ली गए हुए थे। पंकज की गैरमौजूदगी में एक दिन रात को वंशिका की सास की नींद खटपट की आवाज़ से खुल गई। उन्होंने उठकर इधर-उधर देखा पर उन्हें कुछ दिखाई नहीं दिया, पर जब वह वंशिका के कमरे की तरफ बढ़ी तो उन्हें अस्पष्ट सी आवाज़ सुनाई दी। उन्होंने कमरे में झांक कर देखा तो उनके होश फाख्ता हो गए। एक आदमी अलमारी छान रहा था तो दूसरा वंशिका के मुंह को दबाए उसके साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश कर रहा था। वंशिका की सास ने आव देखा न ताव डंडा उठाया और ले जाकर उस आदमी के सिर में दे मारा जो उनकी बहू के साथ बदतमीज़ी करने की कोशिश कर रहा था। डंडा लगते ही वह आदमी अचेत होकर गिर पड़ा पर तभी दूसरे आदमी ने पिस्तौल निकाल कर उन पर गोली चला दी। गोली मारकर वह फरार होने की सोच ही रहा था की गोली की आवाज़ सुनकर मोहल्ले में घर से बाहर निकले हुए लोगों के द्वारा दबोच लिया गया। लोगों के द्वारा पुलिस को भी सूचना दे दी गई थी। वह दोनों अपराधियों को पकड़ कर ले गई और आनन-फानन में वंशिका की सास को भी अस्पताल पहुंचाया गया। वंशिका ज़ार ज़ार रो रही थी और भगवान से अपनी सास को बचाने की प्रार्थना कर रही थी। जब कई घंटे बाद डॉक्टर ने उसे बताया कि आपके पेशेंट की जान खतरे से बाहर है तो उसकी जान में जान आई।वो सोच रही थी कि जिसे मैंने हमेशा बेइज़्ज़त किया आज उसने ही मेरी इज़्ज़त बचाने की ख़ातिर अपनी जान की भी परवाह नहीं करी। अगर आज वो डंडा मारकर आदमी को हटने को मजबूर ना करतीं और ज़ोर ज़बरदस्ती में उसके अंदर पनपने वाले बच्चे को कुछ हो जाता तो क्या होता यह सोचकर ही वो घबरा गई। अब उसे अपने ऊपर बहुत ग्लानि हो रही थी। वह मन ही मन सोच रही थी कि अब वो अपनी सास के साथ कभी बुरा व्यवहार नहीं करेगी और उनके होश में आते ही उनसे अपने बुरे व्यवहार के लिए माफ़ी भी मांगेगी। किसी ने ठीक ही कहा है सुबह का भूला अगर शाम को वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते और यह कहावत वंशिका पर पूरी तरह से चरितार्थ हो रही थी। वंशिका ने फोन करके पंकज को भी सारी बातें बता दी थीं। वो अपनी माँ की हालत जानकर परेशान हो गये और वापिस आने के लिए कहने लगे। वंशिका बोली अब आपको मम्मी की फिक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है," मैं हूं ना।" पंकज, वंशिका के बदले हुए व्यवहार को देखकर दंग था पर अब उसने भी उसके व्यवहार में आये परिवर्तन को जानकर राहत की सांस ली।



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