usha shukla

Inspirational

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प्रतीक्षा

प्रतीक्षा

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    शहर के बड़े डॉक्टर्स में एक डॉक्टर दीपक का मेडी क्योर हॉस्पिटल है । जिसमें अपॉइंटमेंट लेने के लिए कम से कम एक हफ्ते पहले से लाईन लगनी पड़ती है। तब जाकर उनका एक हफ्ते बाद का अपॉइंटमेंट मिलता है। ऐसा नहीं कि डॉक्टर अपना रुतबा दिखाने के लिए ऐसा करते हैं बल्कि भीड़ बहुत होती है । एक वजह और भी है , वो है उनकी फीस । शहर की जितने बड़े डॉक्टर हैं। उनमे सबसे कम है। और उनको सबसे अलग करता है वह है उनका मरीज के साथ मिलनसार व्यवहार । अगर थोड़ा कम बीमार व्यक्ति हो तो लगता है उनसे पहली मुलाकात में बिना दवा के वह ठीक हो जाएगा। वह बहुत अपनेपन से मरीजों से बात करते हैं। 

  आज भी रोज की तरह प्रतीक्षालय में तमाम मरीज अपने अपॉइंटमेंट की तारीख लेने की के लिए बैठे हुए है। और डॉक्टर साहब अपने केबिन में मरीजों को देख रहे हैं। उनकी टेबल के कोने की तरफ एक टीवी चल रहा है जिस पर बाहर के कैमरे से चित्र आ रहे हैं। वो उस पर भी बीच बीच में नजर डाल देते हैं। तभी अचानक उनकी नजर स्क्रीन पर गई और वह वहीं पर रुक गए । तुरंत उस चित्र को रोका और जूम वाला बटन, जिससे चित्र बड़ा हो जाता है, उस बटन को दबाया । सामने एक चित्र आया इसमें एक बूढ़ा व्यक्ति दीवार के सहारा लेकर बैठा हुआ है। उसके पास ही एक व्यक्ति और भी बैठा है , शायद उनका बेटा है या कोई और भी हो सकता है। डॉक्टर दीपक ने उस बीमार व्यक्ति को बड़े ध्यान से देखा और देखते देखते उनके चेहरे के भाव बदल गये। उनके माथे पर रेखाएं सिकुड़ गयीं लेकिन चेहरे पर प्रसन्नता और बेचैनी एक साथ आ गयी। इस विरोधाभास को सामने बैठे मरीज और उनके सहायक ने भी महसूस किया। और ये क्या, देखते ही देखते वह अपनी कुर्सी से उठकर खड़े हो गए पास में बैठे उनके असिस्टेंट डाॅ• उनके इस तरीके से खड़े होने पर परेशानी के भाव में उनको देखने लगे । लेकिन उन्होंने जल्दी से सामने बैठे मरीज को दवा लिखी और तुरन्त दरवाजे से बाहर निकल कर सीधे प्रतीक्षालय में पहुंच गए।   

   वहां पहुंचकर उनकी आंखे उस बीमार व्यक्ति को खोजने लगीं जिसे उन्होने अपने केबिन से देखा था। अचानक सामने दीवार के सहारे अधलेटे व्यक्ति की तरफ वो बढ़ गये। उनके पीछे डॉक्टर्स और नर्स का पूरा समूह था। वो सभी बिना जाने समझे लेकिन सब जान लेने की उत्सुकता के साथ वहां उनके साथ थे। उन सबके मन मे उस व्यक्ति के बारे में जानने की जिज्ञासा थी। कौन है ये ? क्यों डॉक्टर दीपक इस तरह अचानक वहां आये? ये व्यक्ति को देखकर ऐसा तो नही लग रहा कि वो डॉक्टर के कोई सगे संबंधी हो। फिर कौन है ये? 

  अनेक प्रश्न कीड़ों की तरह सबके मन में कुलबुला ही रहे थे कि तभी सबके मुंह आश्चर्य से खुले रह गये, जब उन्होने देखा कि डॉक्टर दीपक उस बूढ़े बीमार व्यक्ति के पास बैठ गये। और सहारा देकर उठाने लगे।ये दृश्य देखकर सब को बिना कुछ जाने भावुक कर देने वाला था। तभी नर्स और वार्ड ब्वाय ने पहुंचकर उनको उठाया और व्हील चेयर पर बैठा दिया। 

  डॉक्टर ने अपने केबिन मे पहुंचकर उनकी बीमारी पूछी। जैसे हर मरीज की एक एक बात पूछकर तब दवा या जो जांच के लिए कहना होता बताते , वैसा ही आज उस मरीज के साथ भी किया। फिर वृद्ध मरीज से पूछा- आप कहां रहते हैं सर ?

ये सुनकर वहां बैठे सब चौंक उठे। डॉक्टर ने उस मरीज को सर क्यों बोला।

 मरीज ने दूसरे शहर का नाम बताया जो अस्पताल से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर था। डॉक्टर को उनकी पूरी जांच करवानी थी। इसलिए उन्होने अपने सहायक डॉक्टर से उनको प्राइवेट रूम मे पहुंचाने को कहा। ये सुनकर असिस्टेंट डॉक्टर के साथ वो मरीज और उसके साथ वाले चौंक पड़े। मरीज के साथ उनका बेटा था उसने पूछा - "क्या हुआ डॉक्टर साहब ? एडमिट क्यू कर रहे हैं? और अभी मेरे पास इतने रुपए नही

हैं। कृपया हमे दो दिन का समय दीजिए हम इंतजाम करके वापस आकर एडमिट करायेंगे।" 

 डॉक्टर के होठों पर एक हल्की मुस्कान आ गई । वो बोले-" भाई आप परेशान न हों। मुझे कुछ जांच करवानी है। इतनी दूर से बार बार आना जाना आप कर सकते हैं, मगर सर नही कर सकते। "

 लेकिन डॉक्टर मेरे पास अभी इतने रुपए नही हैं।- बेटे जिसका नाम इंदर था वो बोला।

 वो बूढ़े मरीज जिनका नाम वासुदेव था वो डॉक्टर को बहुत ध्यान से देख रहे थे जैसे कुछ खोज रहे हों। फिर उनकी आंखो मे एक चमक आ गयी वो धीरे से बोले-दीपक कपूर ।" ये सुनकर जहां डॉक्टर खुशी से खिल उठे वहीं उनके सहयोगी सब आश्चर्य से भर गये क्योंकि डॉक्टर दीपक का पूरा नाम कोई कोई ही जानता था।

 हां सर मै आपका वही शरारती छात्र दीपक कपूर हूं। जिसे आप बायोलॉजी के एक एक टाॅपिक को विस्तार से समझाते थे, और मै हमेशा मस्ती करते रहता था। दीपक का गला भर गया। वो थोड़ा रुक कर बोले सर पहले भी और जब से डॉक्टर बना हूं तब से आप बहुत बार मुझे याद आए। मेरा मन बहुत व्याकुलता से आपकी प्रतीक्षा कर रहा था। बिना ये जाने कि आप कहां हैं मिलेंगे या नहीं। आपके नाम वाले हर मरीज में मैने आपको खोजा।" 

 इतना भावुक होते पहली बार डॉक्टर को सभी ने देखा था।

 ये भी अच्छी बात थी कि वो डॉक्टर के आउटडोर में देखने का समय समाप्त हो चुका था तो कोई अन्य मरीज वहां नही था। 

  डॉक्टर दीपक ने अपने शिक्षक सर को वहीं सोफे पर बैठाया और खुद भी उनका हाथ पकड़ कर उनके पास बैठ गये। फिर बोले- एक बार याद है आपने मेढक का डिसेक्शन करने को कहा और मुझे उल्टी हो गयी थी, जबकि वो तो जानबूझकर की थी। ऐसी बहुत सी शरारतें हम सब करते थे, जिनमे मैं सबसे आगे था। लेकिन आप कभी भी झल्लाते नही थे आपको गुस्सा क्यों नही आता था? इस प्रश्न का उत्तर कभी नही जान पाए। लेकिन अब ऐसा लगता है कि ऐसे टीचर का बहुत बड़ा योगदान विद्यार्थी की सफलता मे होता है। आप मेरे लिए सभी गुरु में श्रेष्ठ थे। 

 जब हमारा विदाई समारोह था आपने पूछा था - कि आप आगे क्या करेंगे ? क्या लक्ष्य बनाया है?

  मैने कहा - मैं डॉक्टर बनुंगा।"

 और आपने हंसते हुए कहा था-फिर ठीक है यदि मै कभी बुढ़ापे में बीमार हो जाऊं और तुम बड़े डॉक्टर बन जाना । मैं उसी शहर में रहूं, तो मेरा अपॉइंटमेंट पहला होगा। "

 और मैने कहा था ईश्वर करे आप हमेशा स्वस्थ रहें किंतु कभी ऐसा हुआ भी तो आपको अपॉइंटमेंट की जरूरत नही होगी। "

 तब आपने मेरे सर पर हाथ रख कर कहा- बेटा, अपने कर्तव्य के बीच में मोह,प्रेम चाहे वो किसी के लिए भी हो उतना ही स्थान देना जितना आवश्यक हो।"

 डॉक्टर दीपक बोलते बोलते भावुक हो उठे उनके आंखो की नमी को वहां उपस्थित सभी लोगों ने महसूस किया।

 फिर डॉक्टर अपने गुरु के पास एक छोटे बच्चे की तरह बैठ गये। और बोले- सर पहले भी और जब से डॉक्टर बना हूं तब से आप बहुत बार मुझे याद आए। मेरा मन बहुत व्याकुलता से आपकी प्रतीक्षा कर रहा था। बिना ये जाने कि आप कहां हैं मिलेंगे या नहीं। आपके नाम वाले हर मरीज में मैने आपको खोजा। लेकिन आज आपको सामने पाकर मेरी प्रतीक्षा पूरी हो गयी।"

 डॉक्टर दीपक बोल रहे थे और सब श्रोता बनकर मंत्रमुग्ध होकर उनकी बाते सुन रहे थे। नर्स सविता तो रोने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे कृष्ण और सुदामा मिले हों, वैसे ही। लेकिन मित्र नही बल्कि उनके प्रतिरूप गुरु और शिष्य मिल रहे हैं।

  डॉक्टर खुश थे उनकी आंखो से खुशी के आंसुओं की अविरल धारा बह रही थी। आज उनकी प्रतीक्षा पूरी हुई।



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