usha shukla

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मायका

मायका

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     आज मेरी बेटी को ससुराल गये एक साल पूरा हो गया। पड़ोस की सभी विवाहित लड़कियां तीसरे चौथे महीने में एक बार मायके आ चुकी हैं । लेकिन मेरी मिनी नहीं आ सकी। गायत्री मन ही मन सोच में डूबी खुद ही से बात कर रही हैं। कई बार दामाद जी से कहा भी कि एक दिन के लिए ही चाहे मगर आ जाइए । लेकिन हर बार वो यही कहते हैं । अभी नहीं।

 गायत्री जानती है कि वो ऐसा क्यों कहते हैं मगर वो मजबूर है। गायत्री अपने अतीत में चली गयी जब उसके पति और ससुराल वालों द्वारा दी गयी यातनाएं न सह सकी तो मायके आ गयी थी । उसके बाद वो फिर वहां नहीं गयी साथ में उसका एक साल का बेटा और पांच साल की बेटी मिनी भी आयी थी। दोनों अपने क्रिया कलापों द्वारा सबको मुग्ध किए रहते थे। गायत्री एक निजी कार्यालय में काम करने लगी थी।

  समय आगे बढ़ा बच्चे बड़े होने लगे। मिनी ने जैसे ही स्नातक की पढ़ाई पूरी की उसके विवाह के लिए गायत्री की भाभी जोर देने लगी। जबकि गायत्री का मन था कि वो कुछ आगे पढ़ कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाए तब विवाह करेंगे। लेकिन उसकी एक न चली रिश्ते में एक लड़का मिला तो शादी में लेन देन और अतिरिक्त खर्चे के लिए गायत्री ने जो इतने साल से थोड़ा बहुत बचत की थी , अपनी पूरी जमा पूंजी लगा दी।

  शादी अच्छी तरह हो गयी तो उसने भगवान को धन्यवाद किया। और फिर अपनी नौकरी में लग गयी। लेकिन अब उसके मायके में सबके दिलों में बहुत बड़ा परिवर्तन आया। तीनों भाई अपने में व्यस्त हो गये। एक दिन उसने बड़े भाई भाभी से मिनी को बुलाने को कहा। तो भाभी बोली- अभी बहुत खर्चे हैं । फिर आगे बुला लेंगे। फिर ये तो मामा का घर है । बिना किसी कामकाज के क्या बुलाना? 

ये सुनकर गायत्री का मन व्यथित हो गया। इसका मतलब जब तक वो अलग अपना घर नहीं बनाएगी तबतक उसकी बेटी का कोई मायका नहीं है। 

 उस दिन पहली बार इतने वर्षों में गायत्री को खुद पर बहुत क्रोध आया । कि या तो उसको अपनी ससुराल वापस चले जाना था फिर वहां चाहे जो उसके साथ होता लेकिन कम से कम आज उसकी बेटी को आने के लिए मायका तो होता । या फिर यहां किसी की परवाह किये बिना उसे अपना अलग घर बनाने की कोशिश करनी थी । मगर वो पूरा जीवन इसी एहसान के अहसास में दबी रही कि उसके मायके वालों ने उसे सहारा दिया है तो उनके सामने कुछ बोलना गलत होगा।"

  कहते हैं मां से मायका होता है। आज वो तो है मगर उसकी बेटी का मायका नहीं है। एक लड़की के लिए उसके मायके की जरूरत जीवनपर्यंत रहती है। कितनी भी अपने जीवन में घर-परिवार में व्यस्त हो तो भी मायके जाने की चाह हमेशा रहती है। 

  इसी सोच में डूबे -डूबे गायत्री बड़बड़ा उठी । अब नहीं । और अपने बेटे से बोली- "बेटा दो कमरे वाला छोटा घर तलाशो कैसे भी रह लेंगे इससे बड़े का किराया न दे पाऊंगी लेकिन अपनी बेटी को मायके तो बुला सकूंगी वो अपनी इच्छा से भी आ सकेगी ।" इतना कहते समय गायत्री का चेहरा खुशी से चमक उठा।



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