usha shukla

Inspirational

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मां

मां

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    बच्चो के स्कूल में मदर्स डे मनाये जाने के उपलक्ष में कार्यक्रम में रंजन अतिथि के रूप में आया था । थोड़ी देर में कार्यक्रम समाप्त हुआ सभी लोग बाहर निकलने लगे। अभी रंजन की कार कुछ आगे बढ़ी थी कि भीड की वजह से रुकना पडा। ड्राइवर ने बताया कि कोई बूढ़ी औरत यहां पर बेहोश हो गई हैं। रंजन के मुंह से अचानक निकला कि भीड क्यो लगाया उसे अस्पताल ले चलो। ड्राइवर गाड़ी से उतरा और कुछ लोंगो की मदद से उस औरत को अपनी कार में ले आया उसके साथ वहीं स्कूल का चपरासी भी आ गया। थोडी देर मे वो अस्पताल पहुंच गये। उस बूढी औरत को कार से डाक्टर के पास तक ले जाने के लिए जैसे ही रंजन आगे बढे तो उनके चेहरे पर नजर पड़ते ही, उसके मुंह से चीख निकलते निकलते रह गयी । उसने अपने आप पर नियंत्रण कर लिया चेहरे पर पसीना छलक आया । आंखें मानो पथरा गई । उसके दिमाग में आंधी सी चलने लगी। ये यहां पर कैसे आ गईं ? चपरासी उनकी तरफ ध्यान दिए बिना अंदर से स्ट्रेचर ले आया । ड्राइवर की मदद से उस बूढ़ी औरत को उस पर लिटाया । रंजन भी उनके स्ट्रेचर के साथ साथ चलने लगा। तभी चपरासी ने पीछे पलट कर देखा तो बोला- सर जी आपने बहुत उपकार किया है। हमने अपने बड़े सर को फोन करके बता दिया है वो बहुत दयालु हैं आते होंगे। तभी नजर पीछे पड़ी उसने कहा वो देखिए सर जी आ गए । लेकिन रंजन कुछ नही सुन रहा था। इमरजेंसी वार्ड मे डॉक्टर उस बूढ़ी औरत को देखने लगे। डॉक्टर ने पूछा इनके साथ कौन है?

 चपरासी ने आगे बढ़कर कहा -" यह तो हमारे स्कूल के बाहर बेहोश मिली थीं। पानी के छीटे मारने से थोड़ा होश आया लेकिन यह बताया नहीं कि यह कौन है ? कहां से आई है ? "

 डॉक्टर के कहने पर नर्स ने इंजेक्शन लगाया। डॉक्टर रंजन की तरफ मुखातिब होते हुए बोले-" आप इनको जानते हैं ? "रंजन कुछ बोलता कि उसके पहले ही प्रबंधक सर ने कहा - सर हमारे स्कूल में अतिथि के रुप में आए थे । बाहर भीड देखकर यह बूढ़ी माता जी को अपनी कार में लेकर आए हैं । रंजन किंकर्तव्यविमूढ़ की तरह खड़ा था बोलना चाहते हुए भी कुछ बोल नहीं पा रहा था और बोलता भी तो किस मुंह से ? कि ये जो सड़क पर पडी थी वो उसको जन्म देने वाली पाल-पोस कर इतना बडा आदमी बनाने वाली उसकी मां हैं। उनकी आज इस दशा का दोषी वो है।

 तभी नर्स ने बताया कि माता जी को होश आ गया है। डॉक्टर ने कहा हाई वी पी के कारण वो बेहोश हो गयी होंगी। रंजन मां के सामने आने की हिम्मत नही जुटा पा रहा था कि कही उसको देखकर मां कुछ बोलेंगी तो उसका सारा भांडा फूट जाएगा । लेकिन यह क्या मां ने उसको देखकर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी बल्कि वह दूसरी तरफ देखने लगी जैसे उसको जानती ही ना हों। 

 डॉक्टर ने पूछा - मां जी आप कहां से आई है ? आपका कोई हो तो बताइए। उनका पता बताइए ।"

पलंग पर लेटी कांति के चेहरे पर विषाद फैल गया वो पीड़ायुक्त स्वर में बोली- वृद्धाश्रम में रहती हूं। अचानक घबराहट होने लगी तो टहलने लगी फिर पता नहीं कैसे वहां पहुंच गयी।" इतना बोलते बोलते फिर उन्होने आंखे बंद कर लीं।

  रंजन वहीं बेंच पर बैठ गया। आज सुबह से 4-5 बार वृद्धाश्रम से फोन काल आ रही है पर वो रिसीव नही कर पाया। उसके सामने 2 महीने पहले का चित्र घूमने लगा कितना परेशान हो गया था उसकी पत्नी माया के रोज-रोज के झगडे और तानों से। जैसे ही वो ऑफिस से घर आता माया पूरे दिन का समाचार मां के विरुद्ध पुलिंदा लेकर बैठ जाती । और फिर छोटी-छोटी बात को इतने विस्तार से बताती जैसे कोई दुर्घटना घट गई हो और अंत में एक ही बात बोलकर चुप होती कि अब मुझसे नहीं रहा जाता। जल्दी ही कोई प्रबंध कीजिए। रोज-रोज का मुझसे सहन नहीं होता । उसके बाद रजत सोचता आखिर मां ने किया क्या ऐसा।वह दोनों जब भी बाहर जाते तो घर में दोनों बच्चों का ख्याल रखती है। एक ही बात समझ में आती है कभी-कभी माया की गलती पर या यूं ही उसको समझाने वाले लहजे में बोल देती है। शायद यही उस को बुरा लगता है। वैसे भी अब मां कितनी चुप हो गई थी । 

 बहुत सोचने के बाद 1 दिन रंजन मां के कमरे में आया। उनके बेड पर बैठकर धीरे-धीरे उनके पैर दबाने लगा। कांती उसकी मां उठ कर बैठ गई । समझ गई रंजन को कोई जरूरी बात करनी है। उन्होंने पूछा-" क्या हुआ बेटा ?

  रंजन उनको गहरी नजरों से देखने लगा उसके होंठ खुल रहे थे लेकिन आवाज नहीं थी । आंखें भी भर आई थीं। फिर अपने दोनों होठों को भींचते हुए आंसुओं को पी लिया। फिर बोला -"मां जन्म से लेकर आज तक आपने मेरा साथ दिया आज फिर मैं कुछ चाहता हूं ।" 

मां प्रश्नवाचक नजरों से उसको देखने लगी -क्या ?

 रंजन ने मां का हाथ अपने हाथों में ले लिया और फिर बोला- मैं आपका बहुत बुरा और स्वार्थी बेटा हूं ।"

मां ने आश्चर्य से देखा फिर बोली- क्यों ,क्या हुआ ? बुरा क्यों ?

हां मां मै बहुत स्वार्थी हूं और आज फिर उसी स्वार्थ के वशीभूत होकर आपके पास आया हूं।"

 कांती को कुछ समझ में नहीं आ रहा था वह झल्लाते हुए बोली - बोलो तो क्या हुआ? पहेली की बुझा रहा है। क्या बात हो गई है ?"

 रंजन ने मां के दोनों हाथों को अपने हाथो में लेते हुए कहा- माया को नहीं समझा पा रहा हूं। रोज कोई ना कोई आपकी बात ले कर बैठ जाती है। मैं समझता हूं कोई बड़ी बात नहीं होती है। लेकिन जब भी मैं उसको समझाने की कोशिश करता हूं गुस्सा करने लगती है । अभी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि कांती बीच में ही बोली- इसमें इतना परेशान क्यों है?"

" मां मैं रोज रोज आपके विरोध इतना नहीं सुन सकता और मैं उसको भी कुछ नहीं बोल पा रहा हूं । घर में ऐसी बातों से दोनों बच्चों पर बहुत गलत असर पड़ेगा। इसलिए मैं आपसे एक रिक्वेस्ट कर रहा हूं, इतना कहते कहते रंजन घुटनों के बल बेड के नीचे जमीन पर बैठ गया और अपनी मां की गोद में अपना सिर रख दिया । "मां तुम वृद्धाश्रम चलोगी"। इतना कहने के बाद वह फूट-फूट कर रोने लगा।

 ये सुनकर कांति को लगा कि कानों में मानो गर्म शीशा पिघलाकर डाल दिया हो वो सन्नाटे में आ गई। कुछ ही पल में उनकी आंखों से आंसुओं की बारिश होने लगी। फिर खुद को संभालते हुए रंजन से बोली -"बेटा तुम क्यों रो रहे हो ? चलो कहां चलना है ? इतना कहते ही उठ गई । कोई प्रतिवाद नहीं।कुछ साड़ियां गीता पुस्तक और रंजन के पिता की तस्वीर एक छोटे ब्रीफकेस मे रखा।  

 रंजन को मां के से इस व्यवहार की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी उसे लग रहा था मां गुस्सा करेंगी। चीखेंगी चिल्लाएंगी ।रं  

   रंजन धीरे से खड़ा हुआ और बाहर की तरफ चला गया। कांती की आंखों में आंसू थे दर्द से चेहरा भरा था मन में तकलीफ से हूक सी उठ रही थी लेकिन सारे दर्द को मन में दबाकर कमरे से बाहर आयीं। निक्की और अकू दौड़ते हुए उनके पास आए-" दादी कहां जा रही हो? हम भी चलेंगे आपके साथ । 

कांती ने दोनों बच्चों को सीने से चिपका लिया ना चाहते हुए भी आंखों से आंसू बह निकले। फिर उनको अलग करके तेज कदमों से घर के बाहर आ गई।  

थोडी देर बाद रंजन के साथ वृद्धाश्रम पहुंच गयीं। रंजन ने वहां के मैनेजर से मिलकर एक कमरा लिया जो सिर्फ कांति के लिए था । मैनेजर से निवेदन किया कि मेरी मां को सारी सुविधाएं दीजिएगा इसके पैसे मैं दूंगा। मैनेजर भी आश्चर्य में था कि जब मां के प्रति इतना प्रेम है तो फिर वृद्धाश्रम में रखने की क्या आवश्यकता । लेकिन ना वह पूछ सका,न ही रंजन बता सकता था । रंजन ने कहा -" मैं आता रहूंगा और फोन भी करूंगा ।" इतना कहकर कमरे से निकल गया कांति ने अपना सारा सामान कमरे में सेट कर लिया अपने पति की फोटो अपने तख्त के सामने लगा ली और बहुत देर तक शांत भाव से निहारती रही। और कब रोने लगी इसका अह्सास उनको भी नहीं हुआ। 

 रंजन ने घर पहुंचकर माया से कहा- मैं अपनी मां को उसके बेटे के होते हुए वृद्धाश्रम में छोड़ आया हूं। यही चाहती थी ।"

 

   तभी चपरासी की आवाज से रंजन अपनी सोच से बाहर निकला। साथ ही अब वो किसी निर्णय पर पहुंच गया था वो मां के रूम की तरफ बढ गया। मां को उठाया फिर एकाएक छोटे बच्चे की तरह उनसे लिपट गया पास में खड़े डॉक्टर, चपरासी, आश्चर्य से देखने लगे । डॉक्टर ने पूछा-" क्या हुआ सर?

 रंजन ने रोते हुए कहा-" यह मेरी मां है मैं इनका स्वार्थी बेटा हूं।"

 उसकी बात सुनकर डॉ और चपरासी की आंखें फटी रह गई। रंजन फिर बोला -" मां मुझे माफ कर दो । काम की वजह से एक महीने से न मै आपसे मिल सका न काॅल कर पाया। लेकिन अब नहीं। अब मैं आपके बिना नहीं रह सकता। अब आपको अपने घर चलना है। मुझे माफ कर दो मां। " रंजन फूटकर रो पड़ा। कांती की आंखो से भी अश्रुधारा बहने लगी उन्होंने धीरे से अपना हाथ रंजन के सिर पर रख दिया। 



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