Shraddha Ramani

Abstract Drama

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Shraddha Ramani

Abstract Drama

प्रणय

प्रणय

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जीवन की साँझ पर खड़ी अनन्या, जुलाई महीने की ज़ोरदार बारिश को निहार रही थी, ये बारिश भी कितनी रोमांचक है, खुद तो आकर बूंदे बरसाती ही है, उसके साथ साथ उन बूंदों की आवाज़ से बहुतायत स्मृतियों को दस्तक दे जाती है, इन्ही स्मृतियों के एक पिटारे से अनन्या को एक खूबसूरत किस्सा याद् आया, अनन्या तब लगभग १६ वर्ष की थी, उसका चंचल मन अपने उफान पर था और उसका यौवन उसका रंग रूप निखार रहा था, अनन्या तब बारहवीं कक्षा में थी, मेरठ में भीषण बारिश होने के कारण उस दिन स्कूल से आधी छुट्टी की घोषणा कर दी गयी थी, वह अपनी सहेली कविता के साथ अपनी छतरी में बचते - बचाते सड़क के किनारे चली जा रही थी कि अनायास ही उसकी छतरी तेज हवा के चलते पलट गयी, अब उसके चेहरे पर बारिश की बूंदे यूँ लग रही थी जैसे खुद परमेश्वर उसका मुख प्रच्छालन कर रहे हों, अनन्या ने तुरंत अपनी छतरी को सीधा किया और तभी उसकी नज़र सामने खड़े एक नवयुवक पर पड़ी।, वह टकटकी लगाए अनन्या को निहार रहा था, जैसे ही अनन्या ने यह महसूस किया उसने तुरंत अपनी निगाहों का रुख मोड़ लिया लेकिन उससे पहले उन दोनों की नज़र टकरा चुकी थी, अनन्या ने अनजान बनने की कोशिश की और घर की ओर चलती चली गयी, वैसे भी मेरठ जैसे छोटे शहर में लड़कियों को अपनी इज़्ज़त को बड़ा संभल कर चलता पड़ता है वरना जितने मुँह उतनी बातें। 

अनन्या चली जा रही थी कि उसे लगा कि वह लड़का लगातार उसके पीछे चल रहा है, उसने पुष्टि करने के लिए पीछे देखा तो पाया कि उसका अनुमान एकदम सही था, अबकी बार उन दोनों की नज़र दुबारा टकराई, अनन्या घबरा गयी और तेज़ तेज़ क़दमों से चलकर अपने घर पहुंची, घर पर दरवाज़ा बंद करने से पहले उसने उस लड़के को दरवाज़े की दरार से फिर एक बार देखा और मंद मंद मुस्कुरा दी। उस दिन सारा समय वह लड़का उसकी आँखों के सामने घूमता रहा।

अगले दिन अनन्या स्कूल जाने लगी और रास्ते में वही लड़का दिखाई दिया, ऐसा लगा जैसे वो बड़ी देर से उसका इंतज़ार कर रहा था, अनन्या को देखते ही उसकी ऑंखें जुगनू के जैसे जगमगा उठीं, अनन्या ने यह महसूस करते ही नज़रें चुरा ली और सीधे चलती चली गयी, शाम को स्कूल से वापसी पर भी वो लड़का दिखाई दिया, अनन्या को एक मीठा सा एहसास हुआ, यह उम्र भी तो ऐसी ही होती है न, किसी के आकर्षण में बंध कर खिंचे चले जाना और फिर अल्हड मन में सुहावने सपने सजाना।

उस दिन से जो सिलसिला चला,वह लगातार चलता रहा, अनन्या आते और जाते समय उस लड़के को निहारती और वो लड़का भी नज़रें मिलने के इंतज़ार में रहता, और दोनों का अबोध मन प्रेम की पेंगे भरना लगा, दोनों में से किसी ने कभी न कुछ कहा, न सुना, कितना सुन्दर एहसास था, अनन्या का कोमल मन मानो उस अनजान लड़के की ओर खिंचा चला जा रहा था, और अब वो अनजान कहाँ था ? अब तो वह उसे अपनों से भी ज़्यादा अपना लगने लगा था, एक ख़ास, खूबसूरत रिश्ता जिसे वह सबसे छिपा कर मन ही मन अपनी भावनाओ के जल से सींच रही थी।

अनन्या की प्रिय सखी कविता जो वर्षों से उसके साथ स्कूल आती जाती थी, उसमे आये इस बदलाव को महसूस कर रही थी, उसने भी हर रोज़ उस लड़के को रास्ते में इंतज़ार करते पाया, कुछ महीने बीत गए, दिसंबर की शीतकालीन छुट्टियाँ चल रही थी तो अनन्या को दस दिन स्कूल नहीं जाना था, एक दिन सर्दी की मीठी धूप का मज़ा लेते हुए वह और कविता अनन्या के घर की छत पर पढ़ रहे थे कि उन्होंने नीचे उस लड़के को खड़ा देखा, वह दीवार की ओट से उनकी तरफ ही देख रहा था, अनन्या ने जैसे ही उसे देखा, उसका चेहरा गुलाबी हो गया और उसकी आँखें खिलखिलाने लगी, यह देखकर कविता ने उसे जोर से कोहनी मारी और उसे छेड़ते हुए बोली, 'अरे भई तुम दोनों का यह मूक प्रणय कभी आगे बढ़ेगा या नहीं ?', अनन्या इस अप्रत्याशित प्रश्न के लिए ज़रा भी तैयार नहीं थी, वह लजाकर बोली 'धत', और वह फटाफट सीढियाँ उतरती चली गयी। उस दिन के बाद हर रोज़ वह लड़का नियत समय पर नीचे आकर खड़ा हो जाता और अनन्या पढाई का बहाना कर छत पर बैठ जाती और किताब की ओट में उसे निहारा करती, वह दोनों एक दूसरे को देखकर एक मीठी सी मुस्कान से मुस्कुराते थे जो उनके रोम रोम को प्रफुल्लित करती थी।

 जनवरी में अनन्या का स्कूल खुला तो उसने पहली बार स्कूल जाने से पहले काजल लगाया, बालों को ऊपर कर एक हाई पोनी बनायीं, अपनी यूनिफार्म को खूब सलीके से इस्त्री किया और अपने आप को आईने में देखा, उसे खुद से शर्म आ गयी, उसने निर्धारित किया था कि वह आज उस लड़के से उसका नाम पूछेगी इसलिए उसका उत्साह आज अपने चरम सीमा पर था

वह अपने घर से बाहर निकली और उस चौराहे पर जाकर उसका इंतज़ार करने लगी, हमेशा वह लड़का उसके इंतज़ार में सड़क के बायीं ओर खड़ा रहता था, अनन्या ने रूककर उस ओर बार बार देखा, चूँकि उसकी सहेली कविता को आज बुखार था तो वह स्कूल नहीं आयी थी यही वजह थी कि आज अनन्या ने उस लड़के से बात करने की ठानी थी पर उस लड़के को भी आज ही गायब होना था, वह थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद स्कूल चली गयी और शाम को उससे मिलने का सोचा, किन्तु वह लड़का शाम को भी नहीं आया, अनन्या को इस बात पर बड़ा आश्चर्य हुआ किन्तु वह मन मारकर रह गयी। 

उसने फिर कई दिनों तक उसका इंतज़ार किया लेकिन वह लड़का उसे फिर कभी नहीं दिखा, वह उसे ढूंढती भी तो कैसे? उसका नाम,पता कुछ भी तो नहीं जानती थी, लम्बे समय तक उसकी आँखें उस लड़के का इंतज़ार करके पथराने लगीं किन्तु उसके पास निराश होने के सिवाय कोई चारा नहीं था, वक़्त के साथ साथ वह भी इस किस्से को धुंधला होते देख रही थी,किन्तु इतने वर्षों के बाद भी, आज जबकि उसकी बिटिया स्वयं १६ वर्ष की थी, उसकी वह प्रथम प्रेम की स्मृति उसके ह्रदय में एक ऐसे रत्न की मानिंद सुरक्षित थी जिसकी कीमत व महत्व कभी कम नहीं हो सकते और वह एक सुखद एहसास के पूरक बन कर रह जाते हैं।


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