परमानंद हेतु आतुरता की जरूरत
परमानंद हेतु आतुरता की जरूरत
एक खास मौके पर मन्दिर में ईश्वर के दर्शन के लिए श्रृद्धालुओं का ताँता लगा हुआ था। बगल में सत्संग भवन के लम्बे चौडे हाल में संत ज्ञानेश्वर के प्रवचन की तैयारियाँ चल रही थी। दम्पति राकेश और रजनी परमेश्वर के दर्शन करने के बाद आत्मानन्द के लिए संत दिव्य बातों को सुनने के लियेसत्संग भवन में बैठे।
प्रवचन हाॉल में भक्तिमय गीत " प्यारे मनुवाँ दुख की चिन्ता क्यूँ सताती है" और " सजन रे .... न हाथी है,न घोडा है,बस पैदल ही जाना है " संगीत के साथ गूँज रहा था Iबाद में संत का प्रवचन की रिकार्डिंग का ध्वन्यांकन होना शूरू हुआ I उसमें माया के अस्तित्व को समझाते हुए सन्त तुलसीदास जी कृत ग्रन्थ रामचरित मानस के अयोध्याकांड के वनवास प्रकरण में सीता के स्थिति की ब्याख्या ब्रह्म और जीव के बीच माया के रूप में बताई और आगे जीव में माया उसी रूप में लिपटी होती है जिस प्रकार वर्षा की शुरुआत में पानी की बूँदे जब जमीन की मिट्टी पर पडती है तो मिट्टी के संग लिपटकर कीचड बन जाती है Iराकेश को माया के विस्तार की निम्न चौपाइयां बहुत पसंद आई I
" मैं अरु मोर तोर तैं माया I जेहिं बस कीन्हें जीव निकाया II
गो गोचर जहं लगि मन जाई I सो सब माया जानेहु भाई II"
अंत में माया के काम को बताया कि यह ईश्वर और जीव के मिलन में बडी बाधा बनती हैं इससे दूर करना या छुटकारा पाना बहुत कठिन है क्योंकि इसका साम्राज्य अंत हीन है I संत कबीर ने माया के बारे में यहाँ तक कह दिया "माया महा ठगिनि हम जानी" I अब भक्तिमय गीत और रिकार्डिंग का समय समाप्त हो चला था I संत ज्ञानेश्वर अब मंच पर आसीन हो गये उन्होंने अपने प्रवचन में आत्मा का परमात्मा के मिलन पर अपनी बात रखते हुए बोले कि परम श्रद्धेय परमात्मा बहुत सरल,शुचि,दयालु है,बस हम सबको मिलन के लिए वैसा ही सरल,शुचि और आतुरता अपनाना होगा , जैसे पृथ्वी सूर्य आतुरतावश उसके चारों ओर अंतहीन यात्रा पर निकल पडी है, देखो तो सही गगन में चाँद अपने परम दयालु से मिलने के लिए सोलह कलाओं के साथ रात भर अंतहीन यात्रा करता रहता है।यही नहीं, हमारी आत्मा भी विभिन्न शरीरों में प्रियतम से मिलने अनवरत यात्रा पर चलती रहती है, इस यात्रा में शरीरों को बदलते समय अनेक विश्रामों से गुजरना पडता हो। क्यों नहीं हम सभी प्राणी,इस जीवन क्रिया कतापों से निजात हेतु अनन्त आतुरता,निर्मलता विभिन्न धर्मो के बंधनों से उन्मुक्त होकर परमानंद की प्राप्त करें ।राकेश और रजनी सत्संग से अभिभूत हो घर आकर सोचने लगे कि जीवन को निश्चिन्तिता से बिताने के लिए संत के प्रवचन का सार समझना आवश्यक है।
