प्रिस्क्रिप्शन
प्रिस्क्रिप्शन
स्कूल से आकर ज्योंहि रूम में बैठी कुछ अजीब फीलिंग आई मैंने अचानक महसूस किया सब कुछ मुझे धुँधला नज़र आ रहा है।मैं हड़बड़ाकर रूम में टहलने लगी,अरे ये क्या ? दीवार पे टंगे कैलेंडर में तारीख़ भी नही दिख रही घड़ी में समय ब्लैंकयहाँ तक कि टेलीविजन के एंकर्स की शक्ल तक मैं नही देख पा रही हूँ।आँसू भरी आँखो से मैंने ब्लड प्रेशर मापनेवाली मशीन निकाली175/110
मैं आँखें बंद कर लेट गई।आनन फानन में ब्लड टैस्ट और कई सारे टेस्ट करवाए गए।काँपते हाथों से रिपोर्ट लेकर मैं डॉक्टर के पास गई।थोड़ी देर उनके चेहरे पर आनेजाने वाले भावों को पढ़ने की कोशिश करती रही।
"हम्म्म्म हार्ट ब्लॉकेज। ये दवाइयां जल्दी शुरू कीजिए, वरना देर हो जाएगी" डॉक्टर ने प्रिस्क्रिप्शन मेरे हाथ मे देते हुए बोला।
मुझे वो डॉक्टर नही ,सामने बैठा यमराज लग रहा था भला ऐसे कोई मरीज से बात करता है
उसने ऐसे क्यों बोला देर हो जाएगी, कहीं देर हो नही तो गई?
भारी क़दमो से मैं डॉक्टर के केबिन से बाहर निकल आई। घर आते ही मेरा बेटा मुझसे लिपटते हुए बोला- "मम्मा मैगी बना दीजिये।"
"जा ख़ुद बना ले, मैं नही होउंगी तो ये छोटी-छोटी फरमाइशें कौन पूरी करेगा मेरे बिना जीना सीख ले अब मेरी आवाज भर्रा गई और मैं प्रिस्क्रिप्शन पटक के रोने लगी।"
मेरे पति पर्चे पर सरसरी निगाह डालते हुए बोलने लगे डॉक्टर्स ऐसे ही डराते हैं चेंज करो, खाना खाओ और सो जाओ कल से ट्रीटमेंट तो शुरू हो ही जाएगा।
पर मेरी तो जैसे साँस ही रुक गई थी।प्रिस्क्रिप्शन हाथ मे लेकर मैं देखती रही- सुनो
"बोलो।" उन्होंने बिना मेरी ओर देखे बोला।
"मुझे कुछ हो जाए तो दूसरी शादी मत करना तुम्हे तो पत्नी मिल जाएगी पर मेरे बेटे को माँ नही मिलेगी" मेरी आवाज़ आँसुओ से भींग गई थी।मैं अपने बेटे को बेतहाशा चूमने लगी और अपने कलेजे से चिपका के सुबकती रही।
उन्होंने मुझे घूरा और मेरी ओर पीठ कर के सो गए।
कभी कभी तो इन पुरुषों का आचरण समझ ही नही आता,वो पत्थर दिल होते हैं या पत्थर दिल होने का स्वांग रचते है, आँसू लाना जैसे उन्हें अपनी पुरुषत्व में कमी का अहसास करवाते हों तभी तो तभी तो तूफान भी आ जाए पर इनके पाँव बिल्कुल अडिग रहते हैं।
मैं फिर अपने बेटे की ओर देखने लगी। इसे तो ये भी नही पता मरना क्या होता है, यह तो हमेशा यही सोचेगा मेरी मम्मा मुझे छोड़ के चली गई।
"आपकी मम्मा आपको छोड़ के कहीं नही जाएगी कभी नही जाएगी और जाने कितनी देर तक मैं उसे अपने आप से चिपकाए रखी।
मैं भी सोने की कोशिश करती रही पर नींद किसे आएगी बड़ी देर तक करवट बदलती रही,फिर रूम से बाहर निकल पड़ीकानों में डॉक्टर की आवाज़ गूँजती रही देर हो जाएगी, मतलब क्या रहा होगा? कहीं देर हो नही तो गई ? अब मैं नही बचूँगी शायद, बहुत कम वक़्त है मेरे पास।
मैं अपने घर से बहुत दूर निकल आई,पाँव में जब कंकड़ी चुभी तो ख्याल आया ,चप्पल भी नही थे पाँव में घर लौटने को पीछे मुड़ी तो देखा घर तो बहुत पीछे रह गया मैं कहाँ खड़ी हूँ ? ये कौन सी जगह है ? ओह्ह मैं पागल हो जाऊँगी मुझे कुछ नही सूझा तो वहीं एक बरगद के विशाल वृक्ष के नीचे बैठ गई, आँखे बंद करते ही पिछला पूरा जीवन फ़िल्म की तरह आँखो के आगे घूम गया।
अहा! मेरा बचपन माँ, बाबूजी भाई बहन। जीवन तो बस तब तक ही जिया उसके बाद तो जीने की औपचारिकता मात्र। हर जगह धोखादिखावा और बनावटीपन। प्रिस्क्रिप्शन को मैंने ज़ोर से पकड़ रखा था और अपने आस्तीन से आँसू पोंछती रही,तभी किसी की आवाज़ आई "क्या हुआ?"
मैं हार गई सबको बी पॉजिटिव का ज्ञान बाँचने वाली आज ख़ुद मैं नैराश्य के अपार सागर में गोते लगाने लगी थी।
ह्म्म्म" फिर तो तुम सचमुच हार गई, तुमने मान जो ली अपनी हार।वैसे एक सच बताऊँ ? ये हार जैसा कुछ होता नही है या तो लोग जीतते हैं या फिर सीखते है समझीं ?" उसने मेरे सिर पर हाथ फेरा।
मैं उसका स्नेहिल स्पर्श पाकर बोलती चली गई इस दुनिया मे सब स्टेटस, रुतबा ओहदा बस यही देखते हैं।आप बताओ किसी के दिल मे जगह बनाने के लिए क्या ये काफी नही है कि आप एक अच्छे इंसान हो क्या ये काफी नही है कि आपको छल नही आता क्या ये काफी नही है कि आप सबके दर्द को महसूस करते हैंसबकी हेल्प के लिए सबसे आगे रहते हैं। मेरी गाड़ी अपनी पटरी छोड़ जाने किधर को मुड़ गई थी शायद इस आख़री वक़्त में मुझे सिर्फ सबकी बेरुखी याद रह गई थी।
मैं अपनी बिखरी बातों को फिर समेटने लगी जिसपे भरोसा किया वही झूठा निकला, जिसपे शक़ किया वो रूठ गया क्या करूँ कहाँ कहाँ अपने आप को साबित करूँ ? किसपे भरोसा करूँ ?
अचानक उसने मेरे मुँह पे हाथ रख दिया "किसी पे नही, बस अपने आप पर भरोसा रखो।"
"और पहले तो ये आँसू पोछ डालो ।
जानती हो ?आँखो में आँसू हो तो कुछ भी साफ नही दिखता , न रास्ता,न मंजिल"।
"और ये आँसू उनके लिए तो बिल्कुल न बहाया करो,जिनके मन मे तुम्हारे लिए कोई भावना नही कोई इज़्ज़त नही और कोई ज़रूरत नही।"वह मेरे आँसू पोंछने लगा।
अचानक मुझे ख़याल आया ये है कौन? मैं छिटक के दूर जा खड़ी हई।
"कौन हो तुम ?" मेरे सामने एक धुंधली सी आकृति देखकर मैं डर गई।
भूत ? मैं भागने लगी
पर उसकी ताकतवर बाजू मुझे अपने पास खींच लाई-ओह्ह, भगवान क्यों नही बोला ? तुम भी औरों जैसी निकली नग़लत ही समझा ।
भगवान ? "मुझ जैसी को भगवान क्यूँ दर्शन देंगे?"
क्यों ? इतनी बुरी हो तुम ?
"नही"
फिर ?तुमने ही कहा।
मैं उससे हाथ छुड़ाकर दूर जाना चाह रही थी,मैं उसे सिर्फ महसूस कर पा रही थी पर कुछ भी देख नही पा रही थी।
"ओह्ह छोड़ो,मैं अपरिचितों से बात नही करती और तुम्हारा तो अस्तित्व भी नही लग रहा।"
अच्छा ? "हवा भी नही दिखता पर उससे कभी उसके होने का प्रमाण माँगा है ?"
मैं चुप हो गई।
"बहुत परेशान हो ?"
हाँ "परेशानियों से हार चुकी हूँ अब नही जीना चाहती कोई तो वजह हो जीने का"
मेरे आँसू प्रेस्क्रिप्शन के शब्दों को बिखेरने लगे।
अच्छा "बस एक बात सुन लो राह चलते कभी कुत्ते ने पीछा किया है तुम्हारा?"
ओह्ह, "मैं परेशान हूँ तुम्हे कुत्ते बिल्ली की पड़ी है।"
बताओ न प्लीज
"हाँ कई बार।"
फिर ?फिर तुम तो भाग जाती होंगी, तुम तो हो ही डरपोक। है न ? ?
नही," मैं पलटती हूँ और ज़ोर से चिल्लाती हूँ हट्ट"
शाबाश ! फिर ?
फिर ? फिर क्या ? वो भाग जाते हैं दुम दबा के हाहाहाहा हाहाहाहा मैं ताली बजा के ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी मानो अपनी जीत का जश्न मना रही हूँ।
"बस ये ज़िन्दगी भी यही है, आप जितना भागोगे, परेशानियां आपको उतनी भगाएंगीएक बार पलट के बोलो स्टॉप मैं लड़ूँगी और जीतूंगी और तुम मुझे हरा नही सकते"।
देखो परेशानियाँ कैसे भागती है, दुम दबा के।
मैं मुस्कुरा पड़ी। सूरज की पहली किरण जब आँखो पे पड़ी तो मैंने अपने आप को बिस्तर पे पाया।
ओह्ह तो ये सबपर प्रिस्क्रिप्शन अभी भी मेरी हाथ मे था पर अब मैंने हँसते हुए प्रिस्क्रिप्शन हवा में उछाला और आईने के सामने आकर खड़ी हो गई,आज मैं अपनेआप को ज़्यादा खूबसूरत दिख रही थी
मेरे बिखरे बाल और खोया हुआ आत्मविश्वास जो अब लौट आया था मेरी सुंदरता में चार चाँद लगा रहे थे।
कहीं से धीमी आवाज़ आई- सुनो अब तो मेरा अस्तित्व नज़र आया न ? ?
हम्म्म्म "और तुम भी सुनो अब मैं तुम्हारा साथ कभी नही छोडूँगी। आई प्रॉमिस।"