प्रेरणा
प्रेरणा
बात उन दिनों की है , जब मै कालिज पढ़ता था । पापा ने कालिज जाने के लिए मोटर-साईकिल ले दिया था । अच्छी वाली बहुत मँहगी मोटरसाईकिल थी , थोड़ा दबादबा बना हुआ था अपना , क्लास मे वैसे तो सभी दोस्त होते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं,जो खास होते हैं । बस अपने भी कुछ खास दोस्त थे, यूँ समझिए कि जो चमचागिरी करते थे ,बस वही मुझे भाते थे, बाकी लड़कों से तो मै दूर ही रहता था ,चाहे वो कितने ही क्यों ना इनटेलिजेन्ट हों या कितने ही अच्छे हों ,हमें तो खुशामद गिरी पसन्द थी बस । कलास का एक लड़का रमेश बहुत ही इनटेलिजेन्ट सुन्दर , और खेल-कूद में भी अच्छा था, बस कमी थी तो यही कि वो किसी नामी बाप का बेटा नहीं था । उसके पिता रेहड़ी पे सब्जी लादे गली-गली फेरी लगाते थे। बस हम ठहरे शहजादे टाइप के , किसी को कुछ समझते नहीं थे । रमेश हर समय अपने मे मस्त रहता कोई बात करता तो हँस के जवाब दे देता था, अन्यथा बिना बात किसी से कोई वार्तालाप नहीं । एक बार उसके पिता की तबीयत ख़राब होने की वजह से वो समय पर फीस नहीं जमा करा पाया तो हमने अपनी शान दिखाते हुए उसकी फीस जमा करा दी थी ।हाँ उसकी एक आदत और भी थी कि किसी को भी हो मदद चाहिए तो वो हाज़िर था । ऐसे ही सेकेन्ड इयर में जब हम थे तो इकजाम लगभग एक महीना पहले मुझे " टाईफाईड " हो गया , पन्द्रह दिन लग गए ठीक होने मे , दोस्तो की मँडली दूसरे-तीसरे दिन आ जाती हालचाल पूछने ,और जम के हमारे घर पर महफिल लगती, तो कभी रामुकाका चाय साथ उनके लिए पकोडे़ बनाते तो सैंडविच , नई-नई फरमाईशें होतीं । जब मैं ठीक हो गया और कालिज गया तो इकजाम सर पर थे और अभी नोट्स भी बहुत सारे बनाने थे। सभी दोस्तों से मदद के लिए कहा तो सभी ने किनारा कर लिया, कोई भी ना तो नोट्स बनाने में मदद करने को राज़ी और ना कापी करने के लिए अपने नोट्स देने को तैयार।कमज़ोरी भी बहुत आ गई थी । मुझसे ज्यादा काम भी नहीं हो सकता था। अब रोज़ किस के यहाँ जाता नोट्स माँगने । रमेश ने जब मुझे कालिज में देखा , और मेरा हालचाल पूछा, उसे पता था कि मैने तो नोट्स बनाए नहीं , तो उसने खुद से ही मुझसे कहा कि मैं चिन्ता ना करूं वो मुझे नोट्स बनाने मे मदद करेगा । और इस तरह उसने मेरे साथ रह कर मेरी मदद की ।जब मैने उसका धन्यवाद करना चाहा तो उसने कहा कि "दोस्त ये मत समझना कि मैंने इसलिए किया कि तुमने मेरी फीस जमा कराई थी, उसका कर्ज़ तो मैं ज़िन्दगी भर नहीं उतार सकता, उस समय अगर तुम मेरी फीस जमा ना कराते तो ना जाने आज मेरा क्या होता, मै कालिज में होता या ना होता , ये तो मैने इन्सानियत के नाते तुम्हारी मदद की है । ग़र एक इन्सान दूसरे इन्सान के काम ना आए तो इन्सान कहाने के लायक नहीं "।उस दिन उससे मुझे बहुत बड़ी प्रेरणा मिली कि दन-दौलत ही सब कुछ नहीं होता, इन्सानियत ही सब कुछ है ।