प्रेम
प्रेम
ईबराह यही नाम था उसका। कराची के रईस परिवार से ताल्लुक रखती थी। आधुनिक विचारों वाली जहीन कमसीन थी। डाॅक्टर बनना हो यह शायद ही ख्वाईश हो पर इस वक्त वह कीव के नेशनल युनिवर्सिटी में फ्रेशर थी। लंबा कद, शांत और सौम्य चेहरा सलीकेदार परिधान में फूलों की तरह खिल जाती थी वह।
कई दफा वह नोटिस करती थी कैंपस के युवक को। वह शांत-सा था। पहनावा साधारण। उसे वहां पढ़ाई के अलावा किसी और चीज से मतलब हो कम-से-कम से देखकर तो ऐसा नहीं लगता। जब भी दीखता तो लड़कियों की तरह किताबें कोहनी और छाती के बीच दबाए नजरें जमीन पर कैंपस में आते या बाहर जाते ऐसे ही बस।
ईबराह अपने क्लासेस करने के बाद बी ब्लाॅक से हाॅस्टल के लिए निकल रही थी। तभी उसने उस लंबे-गोरे नौजवान को अपने नजदीक आते देखा, वह परेशान दिख रहा था। उसके चेहरे पर हवाईयां उड़ी हुई थी। कुछ कदम साथ चलता रहा।
ईबराह से नहीं रहा गया तो पूछ बैठी-“बताएं, कोई परेशानी है आपको?”
नवयुवक- “म...म...मैम.........मैं बी-ब्लाॅक फर्स्ट ईयर से हूँ।” लड़खड़ाहट जा नहीं रही थी।
ईबराह- “जनाब इंडिया से हैं।“
नवयुवक- “जी...।” “मैम पी जी वालों ने मेरी किताबें और हाॅस्टल की चाभी रख ली है।”
ईबराह - “तो जनाब।”
नवयुवक - “मैम साॅरी बट उन्होंने कहा है कि मैं आपका दुपट्टा खिंचू....तो मेरी चाभी और किताबें देंगे।” उसने झिझकते हुए ही कहा था।
ईबरार - “अच्छा तो पी जी वाले यहाँ भी इंडिया-पाकिस्तान करवाना चाहते हैं।....................लेकिन कोई नहीं जी, आप खिच लो लेकिन यह दुपट्टा नहीं स्कार्फ है।” ईबराह मुस्कुरा रही थी...वह समझ गई कि पी जी वालों ने नए बकरे को कुरबानी के लिए भेजा है।
नवयुवक ने झिझक से नजरें नीची कर ली। उसने पिछे मुड़कर देखा तो पी जी वाले वहाँ से नदारद थे।
“जनाब जब तक आप यहाँ दुबककर रहेंगे यूँ ही कुरबानी होगी आपकी। मुझे तो बरतन तक धोने को कहा था मैंने तो कह दिया नहीं-जी-नहीं करेंगे।” कुछ रूककर “इंडिया में कहाँ से हैं जी और नाम तो बताएँ आपका।”
“जी हरमन। मैं पंजाब से हूँ।”
“पंजाबी तो बड़े दमखम वाले होते हैं और एक आप निकले फन्ने खाँ।” ईबरार हँसते हुए हाॅस्टल के लिए बढ़ गई।
उनकी यह छोटी सी मुलाकात शायद ही जींदगी के नक्शे पर आती अगर रूस ने यूक्रेन पर एकतरफा हमला न कर दिया होता। 24 फरवरी 2022 का दिन राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आदेश पर रूसी सैनिकों ने दक्षिण के अपने पड़ोसी देश यूक्रेन पर बड़े स्तर पर हमला करना शुरू कर दिया। पहले दिन रूस ने यूक्रेन पर जमकर गोलीबारी की। कीव में लाखों लोगों ने विस्फोटों और गोलियों की आवाज सुनीं। चारों तरफ अफरा.तफरी मच गई। लोग अपने घरों को छोड़कर भागने लगे। नेशनल युनिवर्सिटी का वह कैंपस जो शिक्षणार्थियों के शोर-शराबे से गुलजार रहता था, वहाँ अब वहाँ सन्नाटा पसरा था। देश-दुनिया के हजारों छात्र जो अपना भविष्य बनाने सैकड़ों-हजारों किलोमीटर चलकर यहाँ आए थे, मानो अंधेरे कुएँ में पहुँचा दिए गए थे। दुनिया भर की सरकारों को इस अप्रत्याशित मानव निर्मित विपदा ने दवाब में ला दिया। रोज कैंपस में हजारों की तादाद में छात्र जमा होते और अपने-अपने इम्बेशी की एडवाईजरी को डिस्कश करते। धीरे-धीरे कर सभी देशों ने अपने नागरिकों और छात्रों को वाॅरजोन से निकालना आरंभ कर दिया। हालांकि यूक्रेन की सरकार ने यूनिवर्सिटी संचालन बंद करने को कोई आदेश जारी नहीं किया था न ही यूनिवर्सिटी प्रशासन की ओर से शिक्षणार्थियों को काॅलेज छोड़ने और घर लौट जाने को कहा जा रहा था। लेकिन वहाँ बने रहना अस्तित्व का संकट था। धीरे-धीरे काॅलेज विदेशी छात्रों से सूना होना शुरू कर दिया।
ईबराह काॅलेज की लाइब्रेरी से निकल रही थी और मुख्य दरवाजे पर टंगे पर्दे पार करते ही एक आदमी से उसकी टक्कर हो गई और किताबें उसकी हाथों से बिखर गई। वह हरमन था।
“साॅरी, आपको कहीं चोट तो नहीं आई।” किताबें उठाते हुए हरमन ने कहा।
“नहीं तो पर जनाब आप....आप वाॅरजोन में क्या कर रहे हैं। आपके पीएम तो डेसिंग हैं सारे हिंदूस्तानियों को तो उन्होंने कबका एअरलिफ्ट करा लिया, फिर आप?”
“नहीं गया।”
“वाॅरजोन में डरावने सपने नहीं आते हैं जनाब को?”
“मैम...आप भी तो नहीं गई हैं।”
“क्या मैम लगा रखी है। मोहतरमा को ईबराह कहते हैं और मेहरबानी होगी आप हमें ईबराह कहें”
“आप रोज लाईब्ररी आती हैं कब आती हैं”
“जब तक क्लासेस सस्पैंड हैं तब तक तो रोज हूँ । सुबह आती हूँ, खाली रहती है। आप भी आते हो, रोज?”
“मैंने नून शिफ्ट लिया है। लेकिन मेरे लिए भी माॅर्निंग शिफ्ट सही रहेगा। आप हाॅस्टल निकल रही हैं, चलिए आपको छोड़ देता हूँ।”
“शुक्रिया, पर मैं चली जाऊँगी....इंशाअल्लाह मुझे कुछ नहीं होने वाला। तो कल जनाब से मार्निंग शिफ्ट में भेंट होती है....मैं भी अकेले बोर हो जाती हूँ।”
अगली रोज वहाँ एक खुशनुमा सुबह थी। भला कुदरत को इंसानों के फितुर से क्या लेना। हरमन मार्निंग शिफ्ट के लिए लाईब्रेरी में था लेकिन उसका दिल पढ़ने में नहीं था। उसने किताब खोली पर मन दरवाजे की ओर। वह लाईब्रेरी के बाहर लाॅबी में रेलिंग थामकर खड़ा हो गया। कुछ ही देर में ईबराह कैंपस के गेट से अंदर आ रही थी। ईबराह लाल रंग की गाऊन पर सफेद स्कार्फ डाले हुई थी बिलकुल अधखिले गुलाब जैसी लग रही थी, आज उसके कदमों में अलग उत्साह था। हरमन की तरूणाई को भी विश्राम मिल गया।
आते ही हरमन ने पूछ लिया- “देर हुई आपको।”
ईबराह- “नहीं वैसी भी कुछ नहीं, इतने बजे ही तो आती हूँ। आपने हथेली पर क्या बांध रखा है क्या ये इबादत के धागे हैं?”
“नहीं पूजा के तो नहीं हैं लेकिन पूजा के जैसे ही हैं। ये मेरे बहन की राखी है जो उसने इस रक्षा बंधन पर बांधी थी।”
“रक्षा बंधन तो कई महीने पहले बित गया”
“हाँ, पर मैंने दी की राखी संभाल कर रखी है। जब उसे मिस करता हुँ तो पहन लेता हूँ।”
“माशाअल्लाह अच्छी बांडिंग है भाई-बहन के बीच।”
“मेरी माँ नहीं है। दीदी ससुराल में है और उसे मेरी बहुत चिंता रहती है। दीदी नहीं चाहती है कि मुझे माँ की कमी महसूस हो, हर वक्त मेरा हाल लेती है।”
“और कौन-कौन हैं आपके घर में।”
“मेरे पिताजी हैं। वह हाईस्कुल में क्लर्क थे। उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता, वह दीदी के पा
स रहते हैं।”
“दीदी के पास ...??”
“मेरे पिताजी रिटायर करने के बाद अपने सारे पैसे मुझे यहाँ भेजने के लिए लगा दिए। माँ की बीमारी में हमारा घर पहले ही बिक चुका था। दीदी उनको अपने पास ले गई है।”
“ओह!”
“ आपने पूछा था न कि मैं इंडिया वापस क्यों नहीं जाना चाहता। हम सब जानते हैं कि युक्रेन से मेडिकल की पढ़ाई बीच में छोड़ने का क्या मतलब है। काॅलेज छोड़ने से आगे की राह बहुत कठिन होनेवाली है। हमें अब कहीं और एडमिशन भी नहीं मिलने वाला.... और मिल भी जाए तो मेरी फैमिली उसे अफोर्ड नहीं कर सकती। मैंने दीदी को कह दिया है यहाँ युनिवर्सिटी में कोई दिक्कत नहीं है। हमला स्कुल-काॅलेजों, रिहायशी जगहों और पब्लिक प्लेस पर नहीं होने वाला है।” हरमन का गला रूँध गया।
ईबरार ने हरमन के बाकि बचे गुबार को निकालते हुए कहा- “और जाएं भी तो कहाँ, दीदी तो पहले से पिताजी को रखे हुए हैं। खुद्दार भाई बहन पर और बोझ कैसे बन सकता है।”
हरमन कुछ देर तक नहीं बोला। फिर ईबरार की ओर देखते हुए पूछा - “आपके पिताजी क्या करते हैं पाकिस्तान में। आप तो अच्छे घराने से लगती हैं।”
“मेरे अब्बु....मेरे अब्बु अमनपसंद और जिंदादिल इंसान थे। शायद इसलिए अल्लाह ने उन्हें अपने पास बुला लिया। हमारा मेडिकल इक्विपमेंट का खानदानी बीजनेस है। बीजनेस मेरी वालदाईन चलाती है अब।”
“आप तो अच्छे फैमिली से हैं तो यहाँ खतरों के बीच रूकना क्यों चाहती हैं।”
“पाकिस्तान एक अमनपसंद मुल्क है इसलिए।” कहकर खामोश हो जाती है। कुछ रूककर फिर “चलें किताबें बेचारी परेशान हो रही हैं कहीं हमारा सेमेस्टर न खराब हो जाए।”
पूरे युनिवर्सिटी में खामोशी सी रहती....लेकिन यह जोड़ा रोज लाइब्रेरी की माॅर्निंग शिफ्ट में होता और इसीसे वहाँ की फिजां रौशन हो जाती। मुश्किल समय ने दोनों को हमदर्द बना दिया था। दोनों को एक-दूसरे का इंतजार रहता।
हरमन को अभी लाईब्रेरी से लौटे कुछ ही देर हुआ था कि कान के पर्दे हिला देने वाली बहुत तेज आवाज से सहम गया। आस-पास कहीं विस्फोट हुआ था। वह फौरन बाहर निकला और लोगों को गर्ल्स हाॅस्टल की ओर भागते देखा। गर्ल्स हाॅस्टल के बीचोबीच मिसाईल गिरी थी। वह भी जी-जान से गर्ल्स हाॅस्टल की और भागा। दमकल की गाड़ियों के सायरन की आवाजें भी उस ओर जा रही थी। मिसाईल से गर्ल्स हाॅस्टल का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था। वहाँ से धुल और धुएँ का गुबार अब भी उठ रहा था। ईबराह का कमरा फर्स्ट फ्लोर पर था। दमकल कर्मियों के आवाज देने पर भी हरमन नहीं रूका और ईबराह के कमरे के पास ही जाकर रूका। उसने देखा कि ईबराह के कमरे के पीछे दीवार थी ही नहीं।
“ईबराह....ईबराह.....“
ईबराह आधे बचे कमरे के फर्श पर औंधे पड़ी हुई थी। उसका शरीर धुल से लथ-पथ था। कंक्रिट का एक छर्रा उसके माथे पर भी लगा था, उस जगह उसके बाल जले पड़े थे। हरमन ने उसको सीधा किया और फिर आवाज दी- “ईबराह...ईबराह.....”
उसने दो पल के लिए आँखे खोली और इतना ही कह सकी- “हरमन....तुम!!” इसके बाद वह बेहोश हो गई। ईबराह अगले तीन दिनों तक कोमा में रही। जब उसे होश आया तो वह हाॅस्पिटल के बेड पर थी और उसके माथे पर पट्टी बंधी थी। सामने हरमन बैठा था। वह उसके होश में आने की आशा में था।
“मैं कितने दिनों से होश में नहीं थी।”
“आज तीसरा दिन है।”
“और आप तीन दिनों से मेरे पास थे।”
“आपकी अम्मी का फोन आया था। मैंने कह दिया थोड़ी तबियत नासाज थी इसलिए हाॅस्पिटल में है।”
“मेरी प्यारी अम्मी। खुदा का शुक्र है आपने उसे ज्यादा नहीं कहा।”
“मैंने आपको कहा था न लौट जाने को, अभी आपकी अम्मी आपको हमेशा के लिए खो दे सकती थी।”
“पता है आप जब मेरे पास आए तब मुझे होश था, फिर आपने मुझे अपने गोद में लिया..... यहाँ आने के बाद ऐसा पहली बार था जब मुझे मेरी परवाह नहीं करनी पड़ रही थी।”
“आपको पता है आपकी जान जा सकती थी, आप वादा कीजीए अब आप अपने देश लौट जाएंगी। जान सलामत रही तो फिर कर लीजीएगा MBBS।”
“जान कि किसे पड़ी है पर जान के लिए हम लौट के उन कठमुल्लों के बीच नहीं जाएंगे। पता है आपने मुझसे कहा कि मैं क्यों नहीं अपने मुल्क लौट जाती। मेरे अब्बु निहायत शरीफ और नेकदिल इंसान थे, उनकी जान पाकिस्तानी रेंजर्स के हाथों सिर्फ इसलिए चली गई कि उन्होंने एक बलोच के लिए हमदर्दी दिखाई थी उसकी जान बचाने की कोशिश की थी। मेरे आँखों के सामने उनका इंतकाल हो गया। और कठमुल्लों ने क्या-क्या नहीं कहा अम्मी को कि तुम्हारी बेटी का हलाला करवाएंगे। मेरी माँ एक मजबूत औरत है वह कुछ भी स्विकार करेंगी पर उनकी बेटी को जिल्लत का सामना करना पड़े यह किसी किमत पर उन्हें कुबूल नहीं होगा।”
“लेकिन, यहाँ हर घड़ी खतरा.......”
ईबराह ने उसे बीच में ही रोक दिया - “आप मुझे महफुज देखना चाहते हैं तो मुझे अपने आगोश में रहने दें उसी दिन की तरह। मेरे जींदगी में सबसे अच्छा दिन था वह।”
“आप क्या कह रही हैं।”
“सही कह रही हुँ आप दिल से कहें कि आप नहीं चाहते मुझे, मुझे आपकी आँखों में रोज दिखता है..... या आप किसी और के साथ हैं लिव इन में तो नहीं ?”
“नहीं मैं भला....आपको ऐसा लगता है....मेरी दीदी मेरी सबसे बड़ी दोस्त भी है वह हमेशा कहती है कि अपने जीवनसाथी को देने के लिए सबसे बड़ा तोहफा है कौमार्य।”
”सही कहा दीदी ने....उन्हें इल्म होगा इस गुनाह का, जिसके गर्त में हमारी जेनेरेशन जा रही है। पर मैं वादा कर सकती हुँ कि मेरे आपके करीब रहने से आपके कैरियर या कहीं और कोई दिक्कत नहीं होगी।”
“लेकिन आपका मुल्क....आपकी अम्मी उन्हें फिर से परेशानी उठानी होगी।”
“मेरा मुल्क मेरा मुल्क है और उसके लिए मेरा बेपनाह प्यार है और रही बात कठमुल्लों कि तो मैंने आपको कहा न कि मेरी अम्मी दुनिया की सबसे बहादुर अम्मी है। और मैं ये बातें जज्बात में बिलकुल नहीं कह रही। वह हमेशा मुझसे कहती हैं कि जीवन में जो कोई तुम्हारे पिता की तरह मिल जाए उसमें मेरी रजामंदी जानो। बस वह बाॅयोलाॅजिकली करेक्ट हो।” दोनों हँस पड़ते हैं इसपर।
“और जो मैंने बीच रास्ते आपको छोड़ दिया तो।”
“जो बंदा अपनी किताबों को भी अपने सीने से लगाकर रखता हो और अपने बहन की राखी महीनों अपनी कलाई से छूटने नहीं देता, वह मुझे छोड़ देगा ये मैं नहीं मानती।”
युक्रेन की युद्धरत भूमि पर भी प्रेम की कोपलें फूट रही थीं।