प्रेम की भाषा
प्रेम की भाषा
एक समय एक मदारी किसी गाँव में अपना खेल दिखा रहा था। उस जगह बच्चो की भीड़ लगी हुई थी। मैं भी उस भीड़ को देखकर वहाँ खेल देखने चला गया। मदारी के पास दो बन्दर थे। जो रस्सी से बंधे हुए थे। मदारी उनसे जो कहता, दोनो बन्दर वैसा ही करते। मदारी ने कहा, "नाच जमूरे नाच" बन्दर नाचने लगता। दूसरे बन्दर से कहता, अगर तेरी बहू तुझे छोड़कर मायके चली जायेगी तो तू क्या करेगा? बन्दर अपने दोनों हाथों से अपनी आँखें बन्द कर लेता। फिर मदारी कहता, "इस पहिये के अंदर से छलांग लगा, बन्दर छलांग लगाने लगते। ये सब तमाशा देख कर बच्चे खूब ताली बजाते और मदारी अपना खेल बन्द करके कहता, "जाओ जमूरों जो लोग पैसा दें ले आओ..." दोनो बन्दर पैसा इकट्ठा करते और सब तमाशा देख कर चले जाते।
मैं ये सब बड़े गौर से देख रहा था। मदारी सारे पैसे अपने थैले में रखकर एक पेड़ की छाया में बन्दरों को बांध कर पोटली से खाना निकालकर खाने लगता। बन्दर बेचारे उसकी तरफ टक-टकी लगाकर देख रहे थे, मानो ये मन में सोच रहे थे कि, "हमें भी भूख लगी है।" मदारी अपने खाने में मस्त था। ये सब देखकर मुझे दया आ गयी। मुझे मेरे स्कूल के गुरु जी की एक बात याद आ गयी। कि किसी जीव पर अत्याचार होते मत देखो।
मैंने मदारी से कहा कि, "तुम जो ये तमाशा दिखाते हो, ये बन्दर जो तुम बोलते हो वैसा ही करते है, क्या ये तुम्हारी भाषा समझते है।"
उसने कहा, "नहीं लड़के ये तो डंडे की भाषा और इनके गले में बंधी ये रस्सी जब मैं खींचता हूँ तो डर के मारे ये डर की भाषा समझते है।" इतना कहकर मदारी पानी पीने चला गया। मैंने गुरु जी की बात ध्यान में रखकर चुपके से दोनों बन्दरो की रस्सी गले से खोल दी। दोनो बन्दर तेजी से छलांग लगाकर भाग गए।
इतने में मदारी ने जब ये देखा तो मुझ पर आग बबूला होकर कहने लगा, "ऐ लड़के तूने ये क्या किया, मेरी रोजी रोटी छीन ली।"
मैंने उससे कहा, "भगवान ने तुमको इतने अच्छे हाथ पैर दिए है, मेहनत करके भी तो रोजी-रोटी कमा सकते हो, बेचारे उन बन्दर पर क्यों अत्याचार कर रहे हो जो कुछ भी नही बोल सकते।" मदारी मेरी बात सुनकर चुप चाप चला गया।
अगली सुबह जब मैं स्कूल से तैयार होकर घर से बाहर निकला तो मैं अंचभित हो गया। मैंने देखा दोनों बन्दर मेरे घर के आंगन में लगे नीम के पेड़ पर से मुझे देख रहे थे, और ऐसा प्रतीत हो रहा था, की मुझे कल के कार्य के लिए धन्यवाद दे रहे है। मैंने अपने लंच बॉक्स से दो रोटी निकालकर उन्हें दिखाई तो दोनों बन्दर बड़े ही प्रेम से रोटी लेकर पेड़ पर चढ़कर खाने लगे। अब प्रतिदिन दोनो बन्दर मुझसे ऐसे हिल मिल गए हो मानो जैसे मेरे घर के ही सदस्य हो। उस दिन मुझे पता चला कि मेरे गुरु जी ने जो प्रेम के बारे में और उपकार के बारे में बताया कि प्रेम और उपकार एक ऐसा वशीकरण मंत्र है जिससे संसार मे सभी को जीता जा सकता है। और प्रेत्यक जीव-जंतु प्रेम की भाषा समझते है, न कि डंडा और हिंसा की भाषा।