chandraprabha kumar

Action Fantasy

4.5  

chandraprabha kumar

Action Fantasy

प्रेम गली अति सॉंकरी

प्रेम गली अति सॉंकरी

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जब बात सब जगह फैल गई तो हमें भी पता चला कि अमिता ने उस लड़के से शादी कर ली जो कह रहा था कि शादी करूँगा तो उसी से ,नहीं तो ज़हर खा लूँगा !

 यह शादी कैसे कर ली ? अमिता तो सॉंवली सलोनी आकर्षक स्मार्ट लड़की थी,कॉलेज में सबकी प्रशंसा की पात्र। पढ़ाई में मेधावी थी, साथ ही उच्चपदस्थ माता-पिता की सन्तान थी। लड़का साधारण परिवार का था, अभी सैटिल भी नहीं हुआ था। वह बी. ए. की पढ़ाई कर रहा था, बी. ए. भी पूरा नहीं हुआ था। अभी कुछ कमाता नहीं था। 

मॉं- बाप की मर्ज़ी के खिलाफ जाकर अमिता ने यह शादी की थी। क़िस्सा यह था कि लड़के की बहिन अमिता के साथ पढ़ती थी। दोनों का एक दूसरे के घर में आना-जाना था। सहेली के भाई शिशिर ने अमिता को देखा तो पसन्द करने लगा। फिर शादी के लिये ज़ोर देने लगा। अमिता भी लड़के को पसन्द करती थी पर इतनी जल्दी शादी करने के पक्ष में नहीं थी। 

एक दिन लड़के की बहिन दौड़ती हुई अमिता के पास आई और घबराकर बोली-“ भाई की तबियत ख़राब है, लगता है कि भाई ने ज़हर खा लिया है, कह रहा है कि शादी करूँगा तो अमिता से ही”।वह अमिता को बुलाने आई थी। 

अमिता के घरवालों ने मना भी किया कि ‘मत जाओ’ ,पर अमिता सहेली के साथ चली गई। 

 वहॉं जाकर देखा कि सहेली का भाई शिशिर ‘हाय’ -‘हाय’ कर रहा था। इलाज चल रहा था, डाक्टर आकर दवाई दे गया था। 

कोमल मन अमिता पसीज गई, उसने शिशिर की सेवा- शुश्रूषा की और उससे शादी करने के लिये मान गई। 

घरवालों के विरोध के बाद भी शादी हो गई। कुछ दिन अच्छे से बीते। लड़के के मॉं-बाप ने अमिता का लाड़ -प्यार किया कि उसकी वजह से उनके लड़के की जान बची। 

पर लड़का कमाता नहीं था। अमिता को ससुराल में ही रहना पड़ रहा था। वहीं से कॉलेज जाकर उसने किसी तरह अपना बी.ए. पूरा किया और साल भर के अन्दर ही एक सुन्दर सी लड़की की मॉं भी बन गई। लड़की बिल्कुल बाप की शक्ल पर गई थी। दादी ने पोती का पालन-पोषण किया। शिशिर ने भी किसी तरह बी. ए. तो पास कर लिया ,पर नौकरी कहीं नहीं मिल पाई। 

शिशिर अपने परिवार व ससुराल वालों की सहायता से अमिता को साथ लेकर अमेरिका चला गया, वहीं नौकरी पकड़ शिशिर अमिता के साथ रहने लगा। उनकी बेटी दादी के पास ही रहकर पलने लगी। 

 अमिता उच्च परिवार से थी, उच्च रहन- सहन की आदी थी। लड़का उसके स्तर का नहीं था, न ही उतना सुसंस्कृत था। इस पर एक विपदा और आई- अमेरिका के स्वतंत्र वातावरण में शिशिर ने अन्य लड़कियों के साथ घूमना शुरू कर दिया और अमिता उपेक्षिता हो गई। घर की सारी व्यवस्था उसको करनी होती थी। साथ ही खाना पकाना, घर की सफ़ाई, कपड़ों की धुलाई आदि सभी काम उसके ज़िम्मे थे। 

शिशिर के प्यार में पागल होकर वह उसके साथ आ तो गई थी, बेटी को भी सास के पास छोड़ दिया था, पर वास्तविकता से टकराकर उसके सपने चकनाचूर हो गये। दोनों में मनमुटाव शुरू हुआ फिर आए दिन लड़ाई होने लगी। 

 कुछ दिनों बाद अमिता के माता- पिता के पास सूचना आई कि शिशिर और अमिता अलग रह रहे हैं। विदेश में अलग रहकर कैसे अमिता ने अपनी जीविका चलाई होगी,कैसे आर्थिक समस्या से निपटा होगा, वही जाने । काफ़ी संघर्ष भरे दिन रहे उसके। 

आख़िरकार दोनों में डायवोर्स हो गया। उसे वहीं तलाक़ देकर शिशिर भारत अपने माता-पिता के पास लौट आया। बाहर विदेश में अमिता अकेली रह गई। उसका पति बिना उससे वादा निभाये लौट गया और उसकी पुत्री सास के पास पल रही थी। विषम परिस्थिति में अमिता थी ,पर उसने धैर्य नहीं खोया। मॉं बाप की मर्ज़ी के खिलाफ़ शादी की थी, इसलिये लौटना नहीं चाहा। 

वहॉं रहकर उसे कुछ काम मिल गया। उसने अपनी योग्यता भी बढ़ाई। वह सुन्दर सुसंस्कृत थी ही, आभिजात्य भी उसमें था। उसे वहीं अच्छी सी नौकरी मिल गई। वह आत्मनिर्भर हो गई। 

वह अपने पैरों पर सम्मानपूर्वक खड़ी हो गई। उसके बाद पता चला कि वहीं उसने एक विधुर भारतीय से पुनर्विवाह कर लिया, जिसकी पत्नी की मृत्यु एक शिशु पुत्ररत्न छोड़कर हो गई थी। 

 अपने दूसरे पति के साथ अमिता सुखपूर्वक सामंजस्य के साथ रहने लगी। पहिली गलती से उसने सबक़ लिया था कि भावना में बहकर कोई कार्य बिना सोचे समझे नहीं करना चाहिये। बुद्धि से अच्छी तरह सोचविचार कर गुरुजनों से परामर्श कर यथार्थ के धरातल पर खड़े होकर सही निर्णय लेना चाहिये। 

 ‘ज़हर खा लूँगा’ , ‘मर जाऊँगा ‘- ऐसे वाक्य सुनकर किसी का विश्वास नहीं कर लेना चाहिये। ‘तेरे लिये आसमान के तारे तोड़ लाऊँगा’ ऐसा कहने वाला चुपचाप बिना कुछ कहे करे ज़िम्मेदारी छोड़कर भी भाग जा सकता है। 

प्रेम एक उदात्त भाव है जो त्याग चाहता है। जिससे प्रेम किया उसका हित चाहता है। अन्यथा तो स्वार्थ का सम्बन्ध है , जिसे त्रुटिवश प्रेम कह दिया जाता है। प्रेम व्यक्ति को ऊँचा उठाता है, उसके सद्गुणों का विकास करता है। इसमें दो नहीं समाते, दो को एक बनकर सामंजस्य से रहना होता है, एक दूसरे का पूरक बनकर।


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