परछाई
परछाई
भीमा, गांव का साधारण किसान था। भीमा की उम्र लगभग 50 वर्ष रही होगी। भीमा अक्सर किसानी के कार्य से शहर जाता था। आज भी भीमा शहर गया था। हमेशा भीमा समय घर पहुँच जाता था परंतु आज शहर से गांव पहुंचने में बहुत देर हो गई थी। रात के करीब 12:30 बजे होंगे, बरसात का समय था। हवायें सर् -सर् आवाज कर तेज बह रही थी। काला घना अंधकार छाया हुआ था। वैसे तो भीमा निडर स्वभाव वाला व्यक्ति था परंतु न जाने आज क्यों उसकी हिम्मत जवाब दे रही थी। उसकी आँखों के सामने दादी द्वारा बचपन में सुनाई गई भूतों की कहानियों के दृश्य तैर रहे थे। भीमा पसीने में तर बतर हो तेज गति से चला जा रहा था। इसी भयावह स्थिति के बीच उसे अपना गांव दिखा। भीमा को ऐसा लगा मानो वह मृत्यु शैया से उठकर आया हो। भीमा ने सुकून भरी सांस ली और आगे बढ़ा।
भीमा चलते हुये एकाएक ठहर गया। उसे लगा मानो कोई उसका पीछा कर रहा हो। तभी एकाएक उसकी दृष्टि पास वाली दीवार पर पड़ी। भीमा घबरा गया। उसे विश्वास हो रहा था कि सचमुच कोई भूत प्रेत उसका पीछा कर रहा है। उसने हिम्मत करके पीछे मुडकर देखा तो पीछे कोई नहीं था। कुछ दूरी पर कुंदन के घर के बाहर बल्ब जल रहा था। वो समझ गया कि यह उसी की परछाई है जो बल्व की रोशनी में दिखाई दे रही है। चेहरे पर खुद की मूर्खता के लिये मुस्कान लिये आगे बढ़ गया और शायद, विचार करते हुए कि भूत प्रेत कुछ नहीं होता।