प्रभु काका
प्रभु काका


"मन द्रवित हो उठता था, प्रभु काका की दुर्दशा देख। अपनी पत्नी रज्जो के साथ प्रभु काका जैसे-तैसे दिन व्यतीत कर रहे थे।रज्जो ताई को लकवा मार गया था, जिसके कारण वो चारपाई पर पड़ी लोर भरी आँखो से प्रभु काका की दशा निहारती रहती।"
बिहाने भोर में उठ चुल्हा-चौका कर प्रभु काका गाय-भैंसो के चारा-पानी में लग जाते थे। प्रभु काका का शरीर भी उम्र
के साथ ढल रहा था, सम्भवत: शरीर का जोश जवाब देने लगा था। ऊपर से रज्जो की देख-रेख का जिम्मा अब ये सब काका से सम्भाला नहीं जा रहा था।
राघव प्रभु काका का बेटा अपनी पत्नी मनोरमा व दो बच्चों के साथ शहर में रहता था जो सरकारी कार्यालय में एक अधिकारी पद पर तैनात था। राघव वक़्त-वक़्त पर पैसे काका के जीवन निर्वाह के लिये भेज दिया करता था। काका व ताई की सेवा के लिये राघव व मनोरमा के पास वक़्त नहीं था।
"मनोरमा देखने में बहुत भोली प्रतीत होती थी, आभास होता था मानो एक संस्कारी महिला हो किंतु ऐसा बिल्कुल भी नहीं था"। वह चेहरे से जितनी सौंद्रय प्रतीत होती थी ह्रदय से उतनी ही मलीन थी। मनोरमा को गाँव में जीवन बसर करना फूटी आँख भी न भाता था।
"राघव भी ब्याह के बाद पत्नी का गुलाम हो गया था। हर वक़्त मनोरमा के पीछे-पीछे दुम हिलाता रहता, उसकी हर बात में "हाँ में हाँ "मिलाता रहता था। सप्ताह में एक अवकाश मिलता उसे भी वह अपनी पत्नी को घुमाने-फिराने में व्यतीत कर देता किंतु काका व ताई से मिलने का वक़्त नहीं था उसके पास"।
प्रभु काका व रज्जो ताई अपने आँख के तारे को बस एक झलक देखने को तरसते रहते थे। उन दोनों की बस एक ही ख़्वाहिश थी, की राघव सप्ताह में कम से कम बस एक मुलाकात कर जाये।
किंतु मनोरमा आधुनिक युग की स्त्री थी जींस पहनना व घूमना- फिरना उसके मन को अति भाता था। यद्यपि गाँव में न तो घूमने की स्वतंत्रता थी और न ही दक्षिणी सभ्यता पोशाक अपनाने की। गाँव की स्त्रियाँ साड़ी पहने चौखट भीतर पर्दे में जीवन व्यतीत करती थी। जिस रहन-सहन में मनोरमा को ढलने की आदत नहीं थी।
मनोरमा का मायका भी शहर में ही था इसलिये मनोरमा का अपने माता-पिता से अक्सर मिलना-जुलना लगा रहता था। राघव भी मनोरमा संग अपने ससुराल आता-जाता रहता। "एक दिन अचानक मनोरमा की माता की तबियत जरा बिगड़ गयी, राघव व मनोरमा उन्हें अस्पताल लेकर पहुँचे।" राघव अपनी सास के इलाज में व्यस्त था, कि उसके फोन की घंटी बजती है। “पिताजी सासू-माँ बीमार हैं, मैं बाद में बात करता हूँ” इतना कह राघव ने प्रभु काका की आवाज़ सुने बगैर फोन काट दिया।
गाँव में रज्जो ताई की हालत बहुत गम्भीर थी, जिसके कारण काका ने राघव को सूचित करने हेतु फोन किया था। किंतु राघव ने आवाज़ सुने बगैर ही लाईन कट कर दी। प्रभु काका की ऐसी हालत नहीं थी ,कि वे अपनी पत्नी को अस्पताल ले जा सके। काका ने दोबारा फोन करना उचित न समझा।
मनोरमा के माता की तबियत भगवान की दया से बेहतर हो गयी तब थोड़ा फुर्सत मिलने पर राघव को काका के फोन का स्मरण हुआ। वह काका को फोन करता है, फोन पे प्रभु काका की आवाज़ सुन राघव व्याकुलता से पूछता है " पिताजी क्या बात है, आप रो क्यों रहे हैं? तेरी माँ अब नहीं रही बेटा" ,अब तुझे गाँव आने की जरुरत नहीं। इतना सुन राघव हकबक हो धम्म से कुर्सी पर गिर जाता है।