प्रभा का संस्कार
प्रभा का संस्कार


अगले दिन पिताजी पत्नी और बच्चों को लाने के लिए ससुराल गए, और शाम को आने के बाद प्रभा की मां बैठी थी।
जब प्रभा के पिताजी शाम को दफ्तर से आए, तो पूछा ! क्या ? सोच रही हो, तो मां बोली प्रभा की शादी के बारे में सोच रही हूँ। तभी पिताजी मुस्कुरा कर बोले ! कि कहीं से बात करके आई हो क्या ? तब प्रभा की मां ने बोला ! कि मनोज के बारे में सोच रही हूं।
अच्छा ! कैसा लड़का है। लड़का तो सुंदर, सुशील और संस्कारी है।
मनोज की मां को तो कोई आपत्ति नहीं है, मगर पिताजी से बात कर लेते तो उचित रहता।
फिर क्या अगले दिन बात हो गई।
आज बहुत शुभ दिन आया प्रभा की शादी हो गई, और खुशी-खुशी से जीवन यापन करने लगी, अपने संस्कार और कर्तव्यनिष्ठा से सारे घर-परिवार का दिल जीत लिया उसने।
अचानक एक दिन मोहन की मां की तबीयत खराब हुई और डॉक्टर ने बताया कि इनकी किडनी खराब है और दूसरी लगानी पड़ेगी। फिर क्या था ? मोहन के पास इतना धन तो ना था, कि वह दूसरी खरीद सके।
जब प्रभा को यह बात मनोज ने बताई, तो प्रभा ने बस इतना ही कह कर..... अंदर चली गई। और अपने सारे जेवरात लाकर दे दिया। प्रभा ने कहा इससे पैसों का बंदोबस्त कर लो, और मां को मैं किडनी दे दूंगी। मनोज प्रभा के हाथ चूम लेता है, और दोनों अस्पताल चले जाते हैं। जेवरात बेंच कर पैसों का इंतजाम हो गया, और किडनी भी ट्रांसफर हो गई। पैसों को जमा कर दिया गया।
एक माह बाद जब डॉक्टर ने कहा ! कि अब आप इन्हें ले जा सकते हैं। तब मोहन ने सारा इंतजाम करके, मां को घर ले लाया और देखभाल करने लगा।
आज प्रभा के माता पिता को जब इसकी जानकारी मिली तो वह प्रभा को देखने के लिए पहुंचे और बगल के कमरे में प्रभा की सासू मां लेटी थी जो देखकर अत्यंत प्रसन्न हुई और आंखों से आंसू टपकने लगे।
सामने के कमरे में प्रभा थी और अपने पिता को देखकर मुस्कुराने लगी और बोली कैसे हो पिताजी, पिताजी कुछ बोल न सके लेकिन आंसुओं ने सब कुछ कह दिया मां ने बेटी को सीने से लगा लिया और कहा धन्य हो प्रभा।
कोई कुछ बोल न सका मगर आंसुओं के सैलाब ने सब कुछ कह दिया।
" बेटियां दो कुल का उद्धार करती हैं। "