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Rahasyamaya Stories

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प्राचीन रहस्मय मंदिरों की कहानी और उनके राज - रहस्यमय

प्राचीन रहस्मय मंदिरों की कहानी और उनके राज - रहस्यमय

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वैसे तो भारतवर्ष में अनेको-अनेक प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर हैं, इनमें से कई मंदिरों के बारे में आपने बहुत रोचक बातें सुनी भी होंगी। आइए आज हम आपको कुछ प्राचीन और रहस्यमय मंदिरों के बारे में जानकारी देते हैं।


तिरुपति बालाजी मंदिर के रोंगटे खड़े कर देने वाले तथ्य


सबसे पहले हम आपको बताते हैं भारत के प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी मंदिर के बारे में। यह मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है। क्या आप जानते हैं कि यहां पर स्थित वेंकटेश्वर स्वामी बालाजी की मूर्ति को किसी इंसान के द्वारा नहीं बनाया गया था? ऐसी मान्यता है कि यह मूर्ति स्वयं ही प्रकट हुई थी। श्री तिरुपति बालाजी महाराज को विष्णु भगवान का अवतार माना जाता है। क्या आपको पता है कि तिरुपति बालाजी की मूर्ति के सिर पर जो बाल है वह कभी उलझते नहीं हैं और हमेशा मुलायम बने रहते हैं? बालाजी के माथे पर चोट का निशान है जहां चंदन का लेप लगाया जाता है। यदि आप बालाजी की मूर्ति के पास जाकर ध्यान से सुनेंगे तो आपको उसमें से समुद्र की लहरों की ध्वनि सुनाई देगी। आपको यह बात और भी हैरान कर देगी कि यहां पर गर्भ गृह में एक दीपक कई हजारों सालों से बिना घी और तेल के लगातार जल रहा है।


पद्मनाभ स्वामी मंदिर के अंतिम दरवाज़े का रहस्य


केरल राज्य में भी विष्णु भगवान का एक अनोखा मंदिर! जो पद्मनाभस्वामी मंदिर नाम से जाना जाता है। यह काफी प्राचीन मंदिर है और आप इसे दुनिया का सबसे अमीर धार्मिक स्थल कह सकते हैं। एक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी सुंदरराजन ने जनहित याचिका दायर कर के इस मंदिर के उस खजाने को खुलवाने की अपील की जो मंदिर के चढ़ावे से अलग था। यहां ऐसे 6 तहखाने मिले जिन्हें जब सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार खोला गया तो उसमें लगभग एक लाख करोड़ से भी ज्यादा का सोना और अन्य कीमती हीरे-जवाहरात पाए गए। यह सब केवल पांच तहखाने से मिला खजाना है। यहां का छठा तहखाना जिसे वॉल्ट बी के नाम से जाना जाता है, अभी तक नहीं खोला गया है और इसके ना खोले जाने का कारण भी बहुत दिलचस्प है। उसके दरवाजे पर दो नागों की मूर्ति बनी हुई है। इसके अलावा वहां ना ही कोई चाबी लगाने का स्थान है और ना ही कोई अन्य साधन जिससे उस दरवाजे को खोला जा सके। ऐसा माना जाता है कि एक विशेष मंत्र के उच्चारण के बाद ही इसे खोला जा सकता है और उस मंत्र को उच्चारित करने वाला व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से अत्यंत शुद्ध होना चाहिए। यहां के पुजारी यह भी मानते हैं कि इस द्वार को खोलने का मतलब है दैवीय आपदाओं को न्योता देना, इसीलिए वह इसे खोलना नहीं चाहते। श्रद्धालुओं और पुजारियों की इस दैवीय आपदा की आशंका को और बल मिला जब पहले के दरवाजों के खुलने के कुछ ही हफ्तों के भीतर याचिकाकर्ता श्री सुंदरराजन की असामयिक मृत्यु हो गयी। माना जाता है कि उस अंतिम दरवाजे की सुरक्षा दो नाग करते रहते हैं और एक अन्य लोककथा के अनुसार जो भी इस दरवाजे को खोलने या खुलवाने का प्रयास करेगा, उसको कांजीरोट्टू नाम के मायावी यक्ष के द्वारा अनेक विपदाओं का सामना करना पड़ेगा। इसलिए श्रद्धालुओं और पुजारियों की आस्था का सम्मान करते हुए प्रशासन ने भी फिलहाल तो इस अंतिम दरवाजे को खोलने का विचार त्याग ही दिया है, तो हम और आप अब केवल अनुमान ही लगा सकते हैं कि के इस अंतिम बंद दरवाजे वॉल्ट बी के पीछे आखिर है क्या।


गुवाहाटी के कामाख्या देवी मंदिर की हैरान कर देने वाली रस्म


महामाया के नाम से प्रसिद्ध असम के नीलांचल पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर को हमारे देश के कुल 108 शक्तिपीठों के 18 सबसे प्रमुख शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। तांत्रिक साधना करने वाले भक्तों के लिए भी यह मंदिर एक विशेष स्थान रखता है जो यहां देश के दूर-दराज वाले इलाकों से अनुष्ठान या साधना करने के लिए आते हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार यह मंदिर कामरूप में स्थित है जहां भगवान शिव की पत्नी की योनि कट जाने के बाद गिरी थी। हर साल बरसात के मौसम यानी लगभग जून के महीने में इस महान मंदिर के पास से गुजरने वाली ब्रह्मपुत्र नदी लाल हो जाती है। यह इस पौराणिक कथा के सच होने का सबसे बड़ा सबूत भी है क्योंकि भक्तों का ऐसा विश्वास है कि यह देवी माँ के मासिक धर्म का समय होता है और तब कुछ दिनों के लिए इस मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। इस तरह से मासिक धर्म को भी दैवीय प्रक्रिया मानते हुए उन दिनों को त्यौहार की तरह मनाए जाने की रस्म होती है और माँ कामाख्या अंबुबाची मेला लगता है। पुराणों में भी इस मंदिर को एक विशेष शक्तिपीठ कहा गया है जिससे पता चलता है कि हमारे महान देश में स्त्री को प्राचीन समय से ही शक्ति का प्रतीक मानते हुए हमेशा आदर किया गया है।


वृन्दावन का अलौकिक निधि वन जहां पेड़ रात में गोपिकाएं बन जाते हैं


यह वो जगह है जहां पर श्रीकृष्ण ने अपना बचपन गुज़ारा था और रासलीला रची थी। यह तो सभी जानते हैं कि जाने-माने संत बाबा हरिदास (जिन्होंने इतिहास प्रसिद्ध गायक तानसेन और बैजू बावरा को संगीत सिखाया) ने श्रीकृष्ण और राधा जी को अपनी अनन्य भक्ति से प्रसन्न कर के उन्हें वृन्दावन में फिर से प्रकट किया था। उनको राधा जी की सबसे अच्छी सहेली ललिता सखी का अवतार माना जाता है। भगवान कृष्ण और राधिका ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि वो दोनों संयुक्त होकर हमेशा उनके साथ बांके बिहारी के रूप में रहेंगे। इसलिए उन्हीं के द्वारा बनाए गए निधि वन मंदिर में कृष्ण आज भी गोपिकाओं संग आते हैं। यहां के तुलसी जी के पेड़ अपने-आप में निराले हैं क्योंकि एक इंसान की ऊंचाई या उससे भी लम्बे तुलसी जी के पेड़ शायद आपने कहीं नहीं देखे होंगे जबकि यहां इन पेड़ों की ही बहुतायत है, पूरा वन है तुलसी का। चूंकि तुलसी जी का एक नाम वृंदा भी है, इसीलिए इस जगह का नाम वृन्दावन पड़ा। वैसे तो संत हरिदास जैसे महान संत की कहानी अपने-आप में इस बात को प्रामाणिकता प्रदान करने के लिए पर्याप्त है परंतु इस तरह से बड़ी ऊंचाई वाले तुलसी के विलक्षण पेड़ों का यहां इस तरह होना इस कृष्ण लीला का सबसे बड़ा साक्षी है। यही नहीं यहां रात को मंदिर पूरी तरह से बंद रहता है, कोई इंसान नहीं रुकता, पुजारी भी नहीं क्योंकि भगवान के तेज को सहन कर पाना हम नश्वर इंसानों के बस की बात नहीं होती। सुबह जब पुजारी यहां आते हैं तो कमरे में चद्दरों पर सिलवटें मिलती हैं और पान, मिठाई, इत्यादि थोड़े-थोड़े खाए हुए दिखते हैं जिन्हें प्रसाद के रूप में भक्तों में बाँट दिया जाता है।


तो देखा, आपने प्रेम की उच्चतम अभिव्यक्ति वाले, शक्ति स्वरूपा देवी माँ के रजःस्वला रूप को पूजने वाले और विष्णु भगवान के अलौकिक मंदिर कितने अद्भुत हैं। ये सभी प्राचीन मंदिर ना केवल अपने अंदर बहुत से रहस्य समेटे हुए हैं अपितु इनमें पूजा-अर्चना करने का भी बहुत बड़ा माहात्म्य है।


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