प्लेटोनिक लव

प्लेटोनिक लव

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‘ तुम बस पूरे दिन अपनी किताबों या कल्पनाओं में खोई रहना, आस पास क्या हो रहा है, इससे कोई मतलब भी है तुम्हें।’ दरवाजा खुलते ही शीला दनदनाती हुई अंदर घुसते हुए बोली ।

और कोई होता तो प्रिया तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अपना आक्रोश प्रकट करने से नहीं चूकती पर शीला उसकी प्रिय सखी ही नहीं उसकी रचनाओं की एक अच्छी समीक्षक रही है। सच कहें तो उसकी निष्पक्ष आलोचनाओं के कारण ही वह अपनी लेखनी में धार और सुधार ला पाई हैअतः उसका तीखा स्वर सुनकर भी उसनेे संयत स्वर में पूछा,‘ क्या बात है शीला, आज इतनी उखड़ी-उखड़ी क्यों हो ?’

‘तुम जानती हो, शिखा मेरी बेटी जैसी ही है । जितनी तुम्हें उसकी परवाह है उतनी मुझे भी है। मैंने तुमसे कई बार घर में पेइंग गेस्ट, वह भी लड़का रखने से मना किया था पर तुम नहीं मानी । अब भुगतोकल शिखा और रवि मुझे काफी हाउस में साथ-साथ दिखे, वह भी अकेले। शीला के’ चेहरे पर चिंता के साथ आक्रोश भी झलक आया था ।

‘ रियली, शिखा से मुझे ऐसी उम्मीद नहीं थी, मैंने उसे हर तरह की छूट दी है तो इसका यह मतलब तो नहीं कि उसका वह नाजायज फ़ायदा उठाये ।’ शीला से ज्यादा प्रिया यह बात शायद स्वयं से ही कह रही थी ।

‘ विश्वास न हो तो शिखा से पूछ लोलेकिन आजकल के बच्चों की तरह वह भी कोई न कोई बहाना बना ही देगी। वैसे भी बेटियों को इतनी छूट देना उचित नहीं है।’ शीला ने उखड़े स्वर में कहा ।

शीला चली गई पर प्रिया के मन में हलचल मचा गई। घर काफी बड़ा था । मनीष का टूरिंग जाॅब था अतः उसने सोचा क्यों न किसी को पेइंगगेस्ट बना लिया जाए। बैठे बिठाये आमदनी भी हो जायेगी तथा घर में पसरे सूनेपन से भी शायद मुक्ति मिल जाये ।

रवि एमएससी करने के पश्चात एमबीए कर रहा था, उसके पिता के स्थानांतरण के कारण उसे अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिये एक कमरा चाहिए था । उसी समय उनका पेइंग गेस्ट का इश्तहार देखकर उन्होंने उससे संपर्क किया। उसे भी उसे रखने में कोई आपत्ति नहीं हुई थी वरन् उसे लगा कि मनीष के न रहने पर वक्त बेवक्त सहायता भी मिल जाया करेगी ।

यह जानकर कि उसने फिजिक्स में पोस्टग्रेजुएशन किया है। फ़िज़िक्स विषय के साथ ग्रेजुएशन करती उसकी बेटी शिखा ने रवि से पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो उसने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। प्रिया कोे लगा यह तो और भी अच्छा हुआ किराया तो मिल ही रहा है साथ ही साथ टियूशन का खर्च भी बच जायेगा पर वह सोच भी नहीं सकती थी कि देखने में सौम्य और सुशील यह लड़का पढ़ाई के बहाने उसकी लड़की को बरगला भी रहा है।

यह सच है कि वह आधुनिक विचारों की है अक्सर उसने अपने पात्रों के जरिए नारी स्वतंत्रता की वकालत की है । यहाँ तक कि इन्हीं विचारों के चलते प्रेम विवाह को भी जायज़ ठहराया है किन्तु जब अपने पर पड़ी तो वह अचानक असंतुलित हो उठी। शायद इसीलिये कहा जाता रहा हो कि इंसान की अपने लिये सोच कुछ और तथा दूसरे के लिये सोच कुछ और हो जाती है ।

अभी सोच ही रही थी कि घर में शिखा ने प्रवेश किया चेहरे पर वही पहले जैसी निर्दोष मुस्कराहट आते ही बोली,‘ ममा, भूख लगी है, खाने को कुछ दो न ।’

एक बार सोचा कि उससे जबाब तलब करे पर सदा की तरह खाना खाते हुए अपने कालेज की दिन भर की बातें सुनाते देखकर न जाने कुछ भी कहने सुनने का दिल नहीं किया। वैसे भी खाना खाते समय किसी से भी कुछ कहना सुनना उसे सदा से ही पसंद नहीं था। उसका मानना था गुस्से में या बेमन से खाया खाना शरीर को नहीं लगता है अतः खाते समय वह स्वयं भी तनाव मुक्त रहना चाहती थी तथा हल्की फुल्की बातें करके दूसरों को भी तनावमुक्त रखना चाहती थी ।

खाना खाकर शिखा अपने कमरे में चली गई तथा थोड़ी देर बाद आकर बोली, ‘ममा, मैं रवि से पढ़ने जा रही हूँ ।'

यह उसका रोज का नियम था पर आज उसका जाना उसे अच्छा नहीं लग रहा था और न ही बिना कारण बतायो उसे जाने से रोक पा रही थी । वह स्वयं पर भी संयम नहीं रख पाई तथा थोड़ी देर बाद स्वयं उनके कमरे में पहुँच गई। रवि शिखा को पढा रहा था। दोनों ही उसे देखकर चौंक गये। पहली बार उसे अपने कमरे में आया देखकर हकबकाया रवि बोला,‘ आँटी आपआइये बैठिये ।

कमरा पूरी तरह व्यवस्थित था जबकि शिखा का कमरा पूरी तरह अव्यवस्थित रहता था। किताब, कपड़े, पेन पेंसिल यहाॅं वहाँ ऐसे ही बिखरे रहते थे । कॉलेज जाने के पश्चात आधा घंटा तो उसे उसका कमरा व्यवस्थित करने में लग जाता था। कभी शिकायत भी करती तो अनसुना कर जाती या पलटकर जबाव देते हुए कहती‘आप क्यों ठीक करती हैंजैसा है वैसा ही पड़ा रहने दिया करो। कमरा ठीक करने के चक्कर में आप मेरा सामान इधर-उधर रख देती होढूँढने में मेरा समय व्यर्थ बरबाद होता है ।’

भला यह भी कोई बात हुईकरो भी और सुनो भीचिढ़कर मनीष से कहती तो कहते‘अभी बच्ची हैजितनी मौजमस्ती करनी है अभी कर लेने दोफिर तो पूरी जिंदगी गृहस्थी की चक्की में पिसना ही है। ’

पापा की शह पाकर वह उसकी बातों को अनसुनी करने लगी थीउसे कमरा ठीक करना समय की बरबादी लगता था । चाहकर भी वह मनीष या शिखा को यह नहीं समझा पाती थी कि बचपन की हर अच्छी या बुरी आदत इंसान जल्दी नही छोड़ पाता। अव्यवस्था किसी की जिंदगी का अंग बन जाए तो सुव्यवस्था शायद रास ही न आयेपर कोई समझाना ही नहीं चाहता था ।

‘ तुम पढ़ाओ, मैं तो ऐसे ही चली आई थी ।' कहकर प्रिया लौट आई कुछ भी तो अनुचित नहीं था। रवि पढ़ा रहा था तथा ध्यान से पढ़ रही थी पर फिर भी पता नहीं क्यों वह सहज अनुभव नहीं कर पा रही थी ।

यही कारण था रात्रि को सोने से पूर्व वह शिखा के कमरे में गई, उसे देखकर शिखा ने कहा,‘ ममा, नींद नहीं आ रही क्या या पापा की वजह से परेशान हो ? उनका फोन भी कई दिनों से नहीं आया। इस बार पापा को कुछ ज्यादा ही दिन लग गये। शिखा ने मासूम बच्ची वकी तरह उसकी गोदी में अपना सिर रखते हुए कहा ।

‘ हाँ बेटा, लेकिन उससे भी ज्यादा दूसरी बात मेरे मन को परेशान कर रही है ।'

‘ क्या बात है ममा ?’

‘ बेटा, शीला आँटी कह रही थीं कि तुम और रवि काफी हाउस में।’ अधूरा वाक्य छोड़ते हुए प्रिया ने उसकी तरफ़ तीखी नजरों से देखते हुए कहा ।

‘ कल रवि का जन्मदिन था । वह ट्रीट के लिये ले गया था । सारी ममा, मैं बताना भूल गई थी अचानक पता लगने के कारण उसे कोई गिफ्ट भी नहीं दे पाई। ' शिखा ने क्षमा माँगते हुए कहा पर गिफ्ट न दे पाने की मायूसी आँखों में झलक आई थी ।

‘ कहीं तुम दोनों के बीच कहीं कुछ चल तो नहीं रहावरना यह ट्रीट और गिफ्ट का चक्कर।’ वाक्य अधूरा छोड़ते हुए भेदती नजरों से उससे पूछा ।

‘ डोंट भी सिली ममा, वी आर ओनली फ्रेंड्स, नथिंग एलस, बिलीब मी।’ सीधे बैठते हुए शिखा ने कहा ।

‘ बेटा, इस तरह के हर रिश्ते की शुरूवात फ़्रेंडशिप से होती हैपर यह हमेशा ध्यान रखना तुम लड़की हो। जरा सा भी दाग लड़की के पूरे जीवन को नष्ट कर देता है ।’ प्रिया ने उसे समझाते हुए कहा ।

‘ मैं बच्ची नही हूँ, ममा, अच्छे बुरे का ज्ञान है मुझे। ममा, मैं अच्छी तरह जानती हूँ कि उम्र का यह पड़ाव प्यार व्यार में पड़ने का नहीं है वरन् कैरियर बनाने का है अतः इस समय मेरा पूरा ध्यान अपने कैरियर की ओर है। इस सबकी ओर तो मैं सोच भी नहीं सकती।’ शिखा ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा ।

शिखा की आँखों में सच्चाई थी । अगर ऐसा वैसा कुछ भी होता तो वह उससे आँखें मिलाने का साहस नहीं कर पाती। वास्तव में उसकी दृढ़ता और निष्पक्षता से कह़ी बातों ने उस पल उसके मन के सारे संशय दूर कर दिये थे।

दूसरे दिन शीला ने उससे पूछा, दोनों के बीच का वार्तालाप सुनकर वह बोली, ‘आज की पीढ़ी अपने अभिवावकों को बेवकूफ़ बनाना खूब जानती है। संभलकर रहनाएक लड़का और एक लड़कीअपोजिट सेक्स के बीच में दोस्तीमैं विश्वास नहीं कर सकती ।’

शीला की बातों ने एक बार फ़िर प्रिया के मन की दबी चिंगारी में हवा फूँक दी थी लेकिन शिखा की निर्दोष आँखें उसे धोखा नहीं दे सकती, यह भी उसका मानना था किन्तु फिर भी जब-जब वह उसके पास पढने जाती तब-तब संशय रूपी नाग उसे डसने लगता और वह विचलित हो उठती। वस्तुतः शक का कीड़ा उसके जेहन में घुसकर उसे असंतुलित बनाने लगा था ।

इसी मनःस्थिति में एक दिन प्रिया ने शिखा की अनुपस्थिति में उसके कमरे की पूरी छानबीन करते हुए, उसकी बुक्स एवं कपड़ों की पूरी अलमारी उलट-पलट डालीपर निराशा ही हाथ लगी। आने पर शिखा ने जब अपने कमरे की यह हालत देखी तो बिगड़ते हुए बोली,‘ यह क्या कर दिया ममाइसे ठीक करने में मेरा कितना समय बरबाद हो जायेगा। कल मुझे अपना प्रोजेक्ट भी जमा करना है।’

‘ मेरी डायरी नहीं मिल रही थीइसलिये।’ प्रिया न चाहते हुए भी झूठ बोल गई ।

‘ आप भी ममा, अपनी चीजें इधर-उधर भूल जाती हो फ़िर ढूँढती फिरती हो। वैसे भी आपकी डायरी यहाँ कहाँ से आई ? मैं तो आपका कोई भी सामान नहीं छूतीऔर आप भी अपना काम अपने कमरे में ही बैठकर करती हैंफिर इस तरह तलाशी लेने का क्या मतलब?’ 

पहली बार उसकी आँखों से क्रोध झलक रहा था । गलती प्रिया की थी अतः क्षमायुक्त स्वर में कहा,‘ तुम अपना प्रोजेक्ट पूरा करो। मैं सब ठीक कर दूँगी ।’

‘ नही-नहीं रहने दीजिएमैं कर लूँगी। आप इधर-उधर रख देंगीफ़िर मुझे ढूँढने में परेशानी होगी।’ कहकर वह अपने काम में जुट गई ।

क्या हो गया है नौजवान पीढ़ी को जो अपने माता-पिता से ऐसे बातें करती हैएक हमारा समय था चाहे हम सही हों या गलत कभी पलटकर जबाब नहीं दे पाते थे ।

आज उसे स्वयं से शर्म आ रही थी क्या होता जा रहा है उसे। शक हर बात पर शकअच्छा भला चल रहा थापता नहीं किस घड़ी में पेंइग गेस्ट रखने का विचार आया। रखा भी तो एक लड़काघर में जवान लड़की हैकुछ तो सोचा होता। मनःस्थिति ऐसी हो गई थी कि मन की इस बात को न तो वह किसी से कह पाती थी और न ही बिना कारण रवि को रूम छोड़ने के लिये कह सकती थी। जहाँ पहले उसका पूरा समय अपने स्टडी रूम में बीतता था वहीं अब शिखा के ऊपर निगरानी करने में बीतने लगा। खास तौर पर तब जब वह पढ़ने के लिये रवि के पास जाती । भले ही वह दूर बैठी रहती लेकिन कान उनके कमरे से ही सटे रहते ।

आग में घी का काम किया वैलेन्टाइन डे पर दिये गिफ्ट के आदान प्रदान पर, यद्यपि शिखा रवि के साथ-साथ अपने दो अन्य मित्रों के लिये भी उपहार लाई थी तथा सभी उपहारों को उसने उसे पहले ही दिखा दिया था पर फिर भी प्रिया मन में भड़के आक्रोश को छिपा नहीं पाई तथा बोली, ‘ यह सब क्या है शिखा ?’

‘ ममा, वैलेन्टाइन डे पर अपने प्रिय मित्रों को देने के लिये मेरी सहेलियां उपहार खरीद रही थीं तो मैंने भी खरीद लियेआखिर इसमें बुरा क्या है ?’

‘ अगर वह तुम्हारा सिर्फ फ़्रेंड है तो फ्रेंडशिप डे पर गिफ्ट देतीवैलेन्टाइन डे पर क्यों दे रही हो?’

‘ ममा, यह आज की पीढ़ी का एक दूसरे के प्रति प्यार और सम्मान का इजहार करने का तरीका है और कुछ नहीं ।'

आज की पीढ़ीपाश्चत्य संस्कृति के रंग में डूबीअपनी संस्कृति और सभ्यता को ही भूलती जा रही है। माता पिता के खून पसीने की कमाई को बेमलब के उपहारों और कार्डोें में फूँकने में जरा भी दर्द नहीं आतासोचकर भुनभुना उठी थी प्रिया ।

 शिखा को भी उसके चार अन्य दोस्तों ने वेलेन्टाइन डे पर गिफ्ट दिया था उसने सभी गिफ्ट सहज रूप में दिखाये थेकहीं कुछ दुराव छिपाव नहीं। ऐसे में कहीं कुछ भी गलत कैसे हो सकता है ? इन विचारों द्वारा स्वयं को बार-बार समझाने की चेष्टा करती पर फिर भी सहज नहीं हो पा रही थी ।

कशमकश मे दिन बीत रहे थे। रवि और शिखा की परीक्षाएं प्रारंभ होने वाली थी अतः दोनों ही पढ़ाई में व्यस्त हो गये। शिखा भी अब रोज रवि से पढने नहीं जाती थी, कोई प्राब्लम होती तो अवश्य चली जाती थी लेकिन मूड फ्रेश करने के बहाने वह दोनों अवश्य पंद्रह बीस मिनट के लिये मिलते । उनका यह रूख उसे और परेशान करने लगा था ।

 उसके टोकने पर शिखा ने कहा ,‘ ममा,पढ़ते-पढ़ते जब बोर होने लगती हूँ तब थोड़ी देर के लिये मिल लेती हूँ तो आपको बुरा क्यों लगता है। आफ्टर आल ही इज माई बेस्ट फ्रेंड ।’

शिखा का यही वाक्य प्रिय के तन बदन को सुलगा देता थापर वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पाती थी । एक दिन रवि आकर बोला,‘ आँटी, अगले महीने मेरी परीक्षाएं समाप्त हो जाएंगी तब मैं यह रूम छोड़ दूँगा। सामान काफी है अगर आपको कोई आपत्ति न हो तो कुछ सामान छोड़ जाऊँ, जब रिजल्ट लेने आऊँगा तब ले जाऊँगा ।’

जब तक वह कुछ कहती मनीष ने कहा,‘ कोई बात नहीं बेटेजो-जो ले जा सकते हो ले जाओबाकी जब चाहे ले जाना ।’

रवि के जाने पर बिगड़ते हुए मनीष से बोली,‘ जब रूम खाली कर ही रहा है तो अपना पूरा सामान ले जाए।’

‘ तुम भी अजीब मनीमाइन्डेड हो गई हो। महीने भर की ही तो बात हैैउसके बाद किसी और को पेइंग गेस्ट रख लेना ।’ कहकर मनीष अखबार पढ़ने लगे ।

‘ अब किसी को पेइंग गेस्ट नहीं रखूँगी ।’ प्रकट में कहा । 

मनीष ने उसका उत्तर सुनकर हँसते हुए कहा,‘ तुम्हें ही बहुत शौक था पेइंग गेस्ट रखने का, अब क्या हो गया ?’

मनीष की हॅंसी उसके दिल में शूल की तरह चुभी। बिना किसी ठोस सबूत के वह रवि और शिखा के बारे बताती भी तो क्या बताती। उन्हें कैसे बताती कि वह आई बला से शीघ्र पीछा छुटाना चाहती थी पर आपने उसे रोक लिया । वैसे भी वह इतने कम दिनों के लिये घर आते थे कि उन्हें इस तरह की समस्याओं में उलझाकर और परेशान नहीं करना चाहती थी । यही कारण था कि तनाव को वह स्वयं ही झेलती रही थी तथा उन्हें चाहकर भी कुछ नहीं बता पाई । अब सामान की वजह से वह यहाँ आयेगा ही, यदि सामान ले जाता तो कहीं भी रूकता। 

उसके जाने से दिन प्रतिदिन के मानसिक तनाव से मुक्ति तो मिली पर यह सोच-सोचकर चिंता घेर लेती कि अभी वह फिर आयेगा।

रवि चला गया तथा शिखा ने एमबीए में एडमीशन के लिये कोचिंग ज्वाइन कर ली। वह पुनः पढ़ाई में व्यस्त हो गई। शिखा का रिजल्ट निकला वह प्रथम श्रेणी में तथा फिजिक्स में विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण हुई ।इसका श्रेय उसने रवि को दिया तो उसने उसकी बात काटते हुए कहा,‘ पढ़ाने वाले से पढ़ने वाले का महत्व ज्यादा होता है ।’ 

उसकी बात सुनकर मनीष ने उसकी तरफ़ आश्चर्य से देखा पर वह चुप ही रही । हफ्ते भर बाद ही रवि का रिजल्ट निकल आया वह भी प्रथम श्रेणी में पास हुआ था। शिखा ने जब उसे फोन पर सूचना देनी चाही तो प्रिया ने कहा,‘ तुम्हारे अलावा और कोई नहीं है, उसे सूचना देने वाला ।'

‘ तुम्हें भी पता नहीं क्या हो जाता है प्रियारवि ने शिखा की पढ़ाई में कितनी सहायता की थी, वस्तुतः उसकी वजह से ही शिखा को फिजिक्स में विशेष योग्यता मिली है। अब अगर वह फोन करके उसे उसका रिजल्ट बताते हुए कांग्रेजुलेट करना चाहती है तो तुम्हें आपत्ति क्यों है ?’ मनीष ने उसे टोकते हुए कहा ।

अब वह उन्हें कैसे समझाती कि पिछले दिनों वह किस तरह के तनाव से गुजरी है और अब फिर वही तनाव। दूसरे दिन ही रवि आ गया संशय के नाग फिर फन फैलाने लगे। रूम खाली था अतः वह वहीं रहा। सारी फारमेल्टी पूरी करने में हफ्ता निकल गया। इस बार वह अपने कमरे में नहीं वरन् उनके साथ ही शाम की चाय पीता तथा खाना भी खाता। इस बार वह उनका मेहमान जो थामनीष भी उसकी तारीफ़ करते नहीं थकते थे ।

एक दिन शाम को वे चाय पी रहे थे कि उसने कहा,‘ आँटी, अंकल, मैं कल जा रहा हूँ, पर आप लोगों के साथ बिताये पल मैं कभी नहीं भूल पाऊँगा। शायद आप सब के सहयोग के कारण ही मैं अपनी पढ़ाई सहज वातावरण में पूरी कर पाया । अगले हफ्ते मैं बैंगलोर ज्वाइन कर लूँगा। एपाइन्टमेंट तो पहले ही हो गया था पर रिजल्ट की वजह से ज्वाइन नहीं कर पा रहा था । बैंगलोर अच्छी जगह हैकभी आइयेगा ,घूमने की काफी अच्छी जगह है। आप सबको अपने बीच पाकर मुझे अच्छा लगेगा।’

रवि चला गया तथा जाते हुए उसे तथा मनीष को स्मृतिचिंह के रूप में फोटोफ्रेम तथा शिखा को पेन सेट दे गयाप्रिया सोच रही थी वह व्यर्थ ही इतने दिन तनाव और अविश्वास के साये में जीती रही। दिमाग में पैठे शक के कीड़े को निकालकर देखा तो पाया रवि अब उसे बुरा नहीं लग रहा था। वास्तव में इतना अच्छा और नेकदिल इंसानशायद ढूँढने से भी न मिले।

शीला को जब रवि के रूम छोड़कर जाने का पता चला तो उसने भी आश्चर्य से कहा,‘ एक लड़का और एक लड़की के बीच सिर्फ दोस्ती मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है ।'’

पर प्रिया को लग रहा था कि कहाँ तो हम इक्कीसवी सदी में रह रहे हैं पर मन से अभी भी अठारहवीं सदी में ही जी रहे हैं तभी तो आज भी हम एक लड़के और लड़की के विशुद्ध प्रेमप्लेटोनिक लव को सहज रूप में नहीं ले पातेे। 

अब हमें अपने विचारों में परिवर्तन लाना होगानई पीढ़ी को सदा संदेह और संशय की नजर से देखना उनके प्रति ज्याददाती करना हैमाना सब एक जैसे नहीं होते लेकिन फिर भी स्वस्थ नजरिया अपनाकर उन्हें एक नई दिशा देकर सहज और स्वस्थ वातावरण में पनपने का अवसर तो हम दे ही सकते हैं शायद इसी में समझदारी है। उसे शिखा की बातें याद आई'ममा, आज की पीढ़ी विवाह के बजाय कैरियर पर ज्यादा ध्यान देती है। शादी विवाह तो होता रहेगालेकिन कैरियर बनाने का यह समय निकल गया तो पूरी जिंदगी पछताना ही पड़ेगा।

एकाएक प्रिया को शिखा के साथ-साथ नई पीढ़ी की सोच पर गर्व हो आया जो कूप मंडूकता से उबरकर संबंधों को सहज रूप में लेने में विश्वास करने लगी है।


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