Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win

Nand Kishore Bahukhandi

Tragedy

4.2  

Nand Kishore Bahukhandi

Tragedy

पिता की विवशता

पिता की विवशता

4 mins
54


सुबह चार बजे फोन की घण्टी बजते ही निद्रा टूटी। फिर सोचा कि भारत और न्यूयॉर्क के समय में तो अंतर है। दिल्ली से श्रीमती का फोन था। फोन पर खबर सुनते ही हाथ पांव शिथिल हो गए। मस्तिष्क सुन्न हो गया। मेरा इकलौता बेटा राजेश अब इस दुनिया में नही रहा। कानों को विश्वास ही नही हो रहा था।  

पत्नी रोती रही, दिलासा देती रही, घबराना नही और भी न जाने क्या क्या। पर मैं तो जैसे शून्य में चला गया था। पत्नी ने क्या क्या कहा, कुछ सुना ही नही। आंखों से बस आंसू बहे जा रहे थे। जब तन्द्रा टूटी तो फोन कट चुका था।  

दीवार पर टँगी बेटे की फ़ोटो के पास जाकर एकटक उसे निहारता रहा। मस्तिष्क में चलचित्र की भांति पुरानी यादें दौड़ने लगी।  

कितना खुश था मैं जब मुझे मैनेजमेंट करने के बाद विदेश में नौकरी मिली वो भी अमेरिका में। मां बापू भी बेहद खुश थे। हाँ कभी कभी मां अकेले में रोती रहती थी। वो मुझे विदेश भेजने को राजी नही थी। पिताजी मां को समझाते, जाने दे उसे। अपने सपने पूरे करने दे। हमारी तो जैसे तैसे कट गई, उसे अपनी उड़ान भरने दे। ऐसा नही था कि पिताजी दुःखी नही थे। बस अपने आंसू चश्मे के अंदर छिपा लेते थे। जाने से पहले घर में फोन लगवा दिया था ताकि मां बाबू जी से बातें होती रहें।  

 मैं न्यूयॉर्क आ गया। मेरी शादी भी मां बाबू जी ने ऐसी ही लड़की से करवाई जो विदेश में ही काम करती हो।  

हम दोनों पति पत्नी भी बहुत खुश थे। कुछ समय पश्चात हमारे घर में राजेश का आगमन हुआ। हम दोनों बहुत खुश थे। भारत से मां बाबू जी को भी बुलवा लिया था। छः महीने वे साथ रहे। समय का चक्र चलता रहा।

बेटा राजेश बड़ा होता गया। हम लोग समय समय पर भारत आते, मां बाबू जी भी बहुत खुश होते। बाबू जी जब तक मैं भारत में रहता, राजेश के साथ ही खेलते, उसे अपने साथ ही सुलाते। कई सालों तक यही क्रम चलता रहा। पर मुझे न जाने क्यों न्यूयॉर्क में अब रहना अच्छा न लगता। रह रह कर अपने देश की याद आती। मेरे बेटे राजेश ने भौतिक शास्त्र में पी.एच. डी. कर ली थी। मेरे मन में विचार आया कि राजेश को भारत में ही भेजकर नौकरी करवाई जाए। जबकि अमेरिका में उसे नौकरी की कमी न थी। फिर भी हम दोनों पति पत्नी ने यही तय किया कि राजेश को वापस भेजा जाए।  कुछ दिन दादा दादी के साथ रहकर भारत में ही नौकरी की तलाश करेगा। जैसे ही राजेश भारत में व्यवस्थित हो जाएगा, हम दोनों पति पत्नी भी न्यूयॉर्क छोड़कर भारत वापस चले जायेंगे। भाग्य से राजेश को पानीपत के कॉलेज में प्रोफेसर की नौकरी मिल गई।  

अभी मुश्किल से एक साल ही हुआ था राजेश को नौकरी करते। अचानक राजेश की मौत की खबर ने मुझे अंदर तक हिला दिया। पूरे विश्व में कोरोना की महामारी आई हुई है। पत्नी को भारत गए मुश्किल से पंद्रह दिन ही हुये थे। बेटे को मिलने का मन था। मेरा एक महीने बाद भारत आने का तय था। पत्नी को दिल्ली पहुंचते ही पन्द्रह दिन के लिए क्वेरेनटिन कर दिया गया। अभी भारत गए हुए चार दिन भी नही हुए थे कि बेटे की मौत की खबर मिल गई। जिस बेटे से मिलने गई थी उससे मिल भी न पाई।  

मैं यहां न्यूयॉर्क में विवश बैठा हूँ। सारी अंतरराष्ट्रीय उड़ाने बन्द हैं। कैसे जाऊं, कम से कम अपने इकलौते बेटे के अंतिम दर्शन तो कर लेता।  

बेटे की फ़ोटो के पास से उठने का मन नही हो रहा। बार बार आंसू पोंछता हूँ, बेटे से बार बार यही कहता हूं। मैं कितना अभागा पिता हूँ जो अपने बेटे को कन्धा भी नही दे सकता। हर पिता की यही इच्छा होती है कि उसका बेटा उसे कन्धा दे। पर मेरा दुर्भाग्य, न बेटे का अंतिम दर्शन कर सकता हूँ और न ही उसका कोई कर्म।

पत्नी जैसे तैसे करके प्रशासन से मिलकर बेटे की मौत का बताकर एक दिन की अनुमति ली और मेरे रिश्ते के भाई के साथ बेटे के शहर जाकर उसका अंतिम संस्कार की। आज वो दिल्ली में क्वेरेनटिन है। मां बाबू जी के पास भी नही जा सकती कोरोना महामारी के कारण। मैं यहां न्यूयॉर्क में अकेला।  

आज राजेश की मौत को एक महीना हो गया। बस अब इंतजार है भारत जाने का ताकि एक बार पत्नी से मिलकर जी भर रो लूं। मन भरा हुआ है। शायद पत्नी की भी यही हालत हो। पछतावा भी है कि न मैं राजेश को भारत भेजता और न ही यह हादसा होता।

कोरोना महामारी ने हम तीनों को अलग कर दिया। पत्नी और मैं हजारो मील दूर और बेटा सदा के लिए दूर।


Rate this content
Log in

More hindi story from Nand Kishore Bahukhandi

Similar hindi story from Tragedy