शहीद भगत सिंह
शहीद भगत सिंह


आज पन्द्रह अगस्त के दिन झंडा फहराते समय देश के शहीदों की याद आ गईं। लता मंगेशकर का गीत चल रहा था,"ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी"। मष्तिष्क में चलचित्र की भांति विचार चलने लगे।
कितना बलिदान दिया हमारे शहीदों ने आजादी को पाने के लिए, कितनी यातनाये सही। पर हृदय में देशभक्ति का भाव था, देश पर मर मिटने का जुनून था।
याद आ गई शहीद भगत सिंह की जिनको अंग्रेजो द्वारा फांसी दी गई थी। कुछ दिन पहले ही एक चित्र देखा था जिसमें भगत सिंह के दोनों हाथ ऊपर बांधकर कोड़े बरसाए जा रहे थे। पिछला भाग ही चित्र में दिखाई देता था जिसमें उनकी पैंट खिसकी हुई है। उस दिन उस चित्र को देखते ही मानस पटल पर बरसों पहले की घटना चरितार्थ होने लगी।
एक नौजवान जिसने अभी युवावस्था में प्रवेश किया था, जिसके अपने जीवन के सपने अधूरे थे परंतु सपना देश को स्वतंत्र करने का देखा। सपना कठिन व उस समय की परिस्थितियों में भयावह भी था।
शायद अपने दादा के विचारों से प्रभावित थे, इसी कारण रगों में देशभक्ति दौड़ती थी।
क्या जोश रहा होगा उस नौजवान का जिसने जान की परवाह न करते हुये अंग्रेजों से लोहा लेने की ठानी? जिसे जेल में डालकर भयंकर यातनाएं दी गई, फिर भी अपनी देशप्रेम की भावना को विचलित न होने दिया। जेल में अपने कैदी साथी के साथ भूख हड़ताल की जेलखाने में अच्छी व्यवस्था के लिए, कैदियों की बेहतर स्थिति के लिए। अंत में भगतसिंह को मात्र तेईस वर्ष की आयु में फांसी दे दी गई और वो देश के लिए शहीद हो गया। ऐसे वीर बार बार जन्म नही लेते धरती में।
नमन है उन सब शहीदों को, उनकी भावनाओं को, उनकी देशभक्ति को।
आज देश के युवाओं को उन सभी देश के शहीदों से सीख लेने की जरूरत है जिन्होंने अंग्रेजो के अत्याचार सहे पर सर नही झुकाया। यदि आज हर युवा उसी जज्बे से देशप्रेम दिखाए तो किसी भी दुश्मन का इतना साहस नही कि वो देश की तरफ आंख उठाकर देख सके।