फुलवारी फूलों की है काँटे न बो
फुलवारी फूलों की है काँटे न बो
"देखा माँ !"
"मैं जब भी आप से फोन पर बात करती हूँ मीशा ज़रूर आकर डिस्टर्ब करती है "अंशू ने झल्ला कर कहा।
"तू मुझसे बाद में बात कर लेना बेटू बच्ची को पहले अटैण्ड कर। पता नहीं बाल मन में क्या जिज्ञासा उठी है ? "माँ ने अंशू को समझाया।
थोड़ी देर बाद अंशू ने मीशा से फुर्सत पाकर मम्मा को दोबारा फोन किया।
" देखिये न माँ। कोई विशेष काम न था उसे। बस उसकी ज़िद होती है जब मैं या तो फोन पर और या किसी घर आए मेहमानों से बात कर रही होती हूँ तो मीशा को बिल्कुल पसंद नहीं आता। उसको लगता है कि मम्मा मेरे अलावा किसी को अटैन्शन न दे। आपको पता है न वैसे दिन भर मुझसे अलग सारे कमरों में, पापा के पास, दादी के पास, चाचू के पास आराम से घूमती-फिरती रहती है लेकिन मैं कहीं व्यस्त हुई तो तुरन्त आ कर गोदी में बैठ जाती है। ये हाल है आपकी लाड़ली मीशू का। "
माँ हँसकर बोलीं-" तू भी बचपन में ऐसी ही चिपकती थी मुझसे। "
माँ फिर कहने लगीं -" सुनो बेटा। यह बच्चे की एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि वह अपने सबसे प्रिय जन को सदैव अपनी ओर आकर्षित कर के रखना चाहता है और माँ से ज़्यादा प्रिय बच्चे को कुछ नहीं । माँ को बच्चा अपने में उलझा कर रखना चाहता है और इसीलिए वह उस समय दखल देता है जब वह प्रिय व्यक्ति यानि माँ किसी अन्य कार्य में व्यस्त होती है। यह उसे सहन नहीं होता। यह बाल मनो विज्ञान का एक खास पहलू है। "
" बच्चों की जिज्ञासु प्रवृत्ति होती है और उसके लिए संसार की प्रत्येक वस्तु एक अजूबा होती है। माँ और घर के सभी बड़ों का यह कर्तव्य होता है कि दूसरों से बातें करते समय बच्चे के बाल सुलभ प्रश्नों को नज़र अंदाज़ करें और न ही टाल-मटोल करें क्योंकि ऐसा करने से बच्चे का मनोबल टूटता है और उसके मन में कुंठा उत्पन्न होती है। यही कुंठा व अवहेलना बालक के व्यक्तित्व के विकास में बाधक होता है। "
" एक बात और। जब बच्ची स्कूल से घर आए तो तुम सारा काम छोड़कर थोड़ी देर उसके साथ बैठो। उसके साथ खेलो और बातों-बातों में उससे स्कूल की सारी दिनचर्या के विषय में पता करो। उसे अपने इतने विश्वास में लो। यह समझाओ कि बेटा माँ तो बच्ची की माँ भी होती है, सहेली भी और बहन भी। फिर देखना वह अपने दिल की कोई दबी हुई बात भी तुम्हारे सामने रख देगी। बच्चे का विश्वास जीतना बहुत आवश्यक है।"
" उसे धीरे-धीरे समाज की ऊंच-नीच व भले-बुरे की जानकारी बच्चों को समझाने के स्टाइल में दो। यह उसके संरक्षण व बचाव के लिए बहुत ज़रूरी है बेटू।"
" तो आज के लिये इतना ही लेक्चर काफ़ी है बाल मनोविज्ञान के बारे में।" मम्मा ने चुटकी ली।
अंशू माँ की बात से काफी आश्वस्त होते हुए बोली -" वास्तव में आपका कहना सही है माँ। अनजाने में बच्ची पर मैं ज़्यादती कर रही थी। आपने सही समय पर चेता दिया माँ। "
" थैंक्यू सो मच प्यारी माँ। "