फीकी वर्दी
फीकी वर्दी
एक कहावत है कि कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं । हो सकता है कोई जमाने में यह बात सही होगी । शायद वह जमाना सम्राट विक्रमादित्य का रहा हो या हरिश्चंद्र का हो । लेकिन अब सब जानते हैं कि आज के जमाने में इससे बड़ा मजाक और कोई हो ही नहीं सकता है जितना इस कहावत बन रहा है । अब तो थाने के अंदर घुसकर अपराधी थानेदार की हत्या कर धड़ल्ले से बाहर आ जाते हैं और कोई उनका बाल भी बांका नहीं कर पाता है । पता नहीं कि कानून के हाथ अब कहां चले गए हैं ?
कानून के हाथों का आलम तो इतना है कि न्यायालय के अंदर जज के सामने गवाहों की सरेआम हत्या हो जाती है और कानून अंधा बनकर मूकदर्शक की तरह असहाय नजर आता है । कानून के हाथ लंबे तो छोड़िए छोटे भी नजर नहीं आते हैं । इस संबंध में ज्ञानी लोगों ने पड़ताल की तो थोड़ा पता चला कि जब न्यायाधीश के सामने हत्या हुई है तो फिर कैसा गवाह कौन सा सबूत ? मुझे एक बहुत बड़े वकील ने समझाया कि वे हाथ अब अपराधियों के गिरेबान को पकड़ने में नहीं दिखते हैं बल्कि धन की देवी लक्ष्मी की उपासना में ज्यादा व्यस्त रहते हैं ।
इस बारे में जब मैंने अपना अल्प ज्ञान प्रदर्शित किया तो ज्ञानी जी कहने लगे
"आप तो अव्वल दर्जे के मूर्ख आदमी हैं" ।
मैंने कहा , "जी वो कैसे " ?
तो वे बोले "आप ये भी नहीं जानते कि कानून ने अपनी आंखों पर काली पट्टी बांध रखी है । इसलिए कानून कभी भी कुछ भी देखता नहीं है । वह केवल सुनता है । जब कानून ने कुछ देखा ही नहीं तो वह कैसे उसे सजा दे सकता है" ?
उनकी बातों ने मेरे ज्ञान चक्षु खोल दिए । मैंने उनकी निगाहों से जब देखना शुरू किया तो कुछ कुछ मेरे समझ में आने लगा ।
कानून के जानकार बताते हैं कि कानून का एक सिद्धांत और भी हैं जो बहुत बड़ा है । वह सिद्धांत है " चाहे हजार अपराधी छूट जायें लेकिन एक निरपराध को सजा नहीं होनी चाहिए " । बहुत गजब का सिद्धांत है ये । जब ये सिद्धांत बनाया गया होगा तब यह कल्पना नहीं की गई होगी कि पूरा तंत्र अपराधी को पकड़ने में नहीं अपितु उसे छुड़वाने में लगा रहेगा । इसका अंजाम क्या हुआ कि गवाह, सबूतों के अभाव में अपराधी छूटते रहे । कानून अंधा बना रहा और कानून के हाथ छोटे होते चले गये ।
दरअसल आजकल अपराधियों की एक गैंग बन गई है । जिन्हें हम बोलचाल की भाषा में माफिया कह सकते हैं । इस गैंग में निम्न चार वर्दी होती हैं।
खादी
अपराधी
खाकी
और
काली
इन चारों का गठजोड़ ऐसा बना है कि अपराधी सिरमौर बन गया है । वह जब जिसकी चाहे सरेआम हत्या कर सकता है , बलात्कार कर सकता है अथवा तेजाब फेंक सकता है । लूट, खसोट, डकैती , फिरौती सब कुछ कर सकता है लेकिन मजाल है कि उसका एक बाल भी बांका हो जाये ।
ऐसा क्यों होता है ? एक ही जवाब है कि कानून के हाथ अब इतने लंबे नहीं रहे जो अपराधियों की गर्दन तक पहुंच जायें ।अब तो कानून के हाथ इतने छोटे हो गये हैं कि सामने खड़े अपराधी को पकड़ नहीं सकते लेकिन उसे "सैल्यूट" कर सकते हैं । इतने छोटे हो गये कि अपराधी को पकड़ने की बात तो भूल जाओ खुद की कॉलर नहीं पकड़ सकते हैं । बेचारे कानून के हाथ ? इसके कारण बहुत सारे हैं । उन्हें हर कोई जानता है , यहां गिनाने बैठेंगे तो पोथी भर जाएंगी ।
इस देश में कितने "आयोग" हैं किसी को पता ही नही है शायद । कुछ आयोग तो बहुत प्रसिद्ध हैं जैसे अनुसूचित जाति जनजाति , महिला , अल्पसंख्यक, मानवाधिकार आयोग वगैरह जो न केवल देश में अपितु विदेशों में भी जाने छाते हैं । पर इन आयोगों ने भी कानून के रास्ते में अपने अपने तरीके से कई बाधाएं तो खड़ी की हैं । अब मानवाधिकारों को ही ले लो । आतंकवादियों, अपराधियों , उपद्रवियों, नक्सलियों, अराजकतावादियों, हत्यारों, दुष्कर्मियों के तो मानवाधिकार हैं । इनके मानवाधिकारों की चिंता सब करते हैं मगर आम आदमी ? उसका कोई धणी धोरी नहीं है । न्यायालयों , आयोगों के डर के कारण पुलिस अपराधियों के खिलाफ कोई कड़ी तो क्या साधारण सी कार्यवाही भी नहीं करती है । कानून के हाथ छोटे करने में इनका बहुत बड़ा योगदान है ।
खादी : ये तो माई बाप हैं अपराधियों के । अपराधियों को सारा खाद पानी यहीं से तो मिलता है । खूब सेवा करते हैं ये खादी की तभी तो इनको मेवा भिलती है । जब कोई "भक्त" भगवान की सेवा करता है तो भगवान का भी कुछ कर्तव्य बनता है कि नहीं ? खादी की क्या जिम्मेदारी है ? यही कि वह इनको संरक्षण प्रदान करे , सो करती है । आखिर चुनावों में इनकी मदद भी तो ली जाती है । दोनो एक दूसरे की भद्द करते हैं । अब तो इन्हीं के कहने से पुलिस वालों के स्थानांतरण , पदस्थापन सब होते हैं । फिर आप ही बताइये , कानून के हाथ लंबे होंगे या छोटे ?
काली वर्दी : येन केन प्रकारेण आतंकवादियों, अपराधियों, उपद्रवियों को बचाना ही इनका काम रह गया है । इसके लिए साम, दाम, दंड, भेद सब हथकंडे अपनाए जाते हैं । दशकों तक मुकदमे को लटका कर रखना न्याय नहीं अन्याय है ।
इस प्रकार इन सबका एक गैंग बन गया है और ये सब मिलकर आम आदमी की नहीं बल्कि अपराधियों की मदद करते हैं । अपराधी को छोटे से बड़ा बनाते हैं । बड़ा बन जाने पर वह अपराधी राजनीति में आ जाता है और बड़ा नेता बन जाता है । पुलिस तो इनके लिये पलक पांवड़े बिछाए रहती है कि कब कोई अपराधी आये और कब वे उससे पूरी कीमत वसूलें । अभय दान देने की कीमत पुलिस ही तो वसूल करती है । इस देश के लोग "गांधीजी " से बहुत प्यार करते हैं । हाथों में जब तक "गांधीजी" नहीं आ जायें, कोई काम नहीं करते हैं । "गांधीजी" से इतना प्यार है देशवासियों को कि उन्हें न केवल जेब में रखते हैं अपितु सूटकेस में, तिजोरी में , बोरी में और न जाने कहां कहां रखते हैं । गांधीजी कितने खुश होंगे कि उनके बिना एक पत्ता भी नहीं खड़कता है गांधी के देश में । इसे कहते हैं सम्मान । ऐसा सम्मान किसी और देश में किसी भी नेता का नहीं मिलेगा जैसा गांधीजी का हमारे देश में है । वैसे एक और बात बहुत प्रचलित है कि जब सैंया भये कोतवाल तो अब डर कैसा ? ये अपराधी लोग कोतवाल को अपना रक्षक मानते हैं और फिर थाने की छत्रछाया में ही पनपते हैं । हमारे देश में भांति-भांति के माफिया गिरोह पाये जाते हैं । जैसे
शराब माफिया
बजरी
खनन
भू माफिया
सट्टा
अपहरण एवं फिरौती
पैट्रोल डीजल
नकल
रंगदारी
और भी ऐसे कई उद्योग हैं जहां पर ये माफिया खुलकर खेलते हैं ।
थोड़े दिनों पहले हुआ कानपुर कांड, जिसमें एक गैंगस्टर ने आठ पुलिस वालो को गोली से सरेआम उड़ा दिया था , हमें यह सोचने पर मजबूर कर रहा है कि "घर को लग गई आग घर के चिराग से" । जब थानेदार ही गैंगस्टर का मुखबिर हो तो पुलिस का क्या हश्र होगा, यह इस कांड ने बता दिया है । एक ऐसा इनामी अपराधी जिस पर करीब पचास प्रकरण चल रहे हों , की जमानत कौन ले लेता है ? क्या ऐसे जज के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं बनती है ? जिन पुलिस वालों ने इस जैसे अपराधियों को अभय दान दे रखा था , उनको सींखचों में बंद कौन करेगा ? जब तक उनकी वर्दी नहीं उतरेगी , उन्हें भी हत्या का सह अपराधी नहीं बनाया जायेगा तब तक कानून के हाथ छोटे के छोटे ही रहेंगे । कोई ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए ।
खादी की तो बात ही निराली है । आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को चुनने वाले लोग कौन हैं ? जब लोग धर्म , जाति , मुफ्त के माल के आधार पर अपना "मत" देते हों तब वहां कुछ भी उम्मीदनहीं रखनी चाहिए ।
जब तक अपराध और उसके संरक्षकों पर सीधा और सख्त प्रहार नहीं किया जायेगा तब तक कुछ नहीं हो सकता है । इसके बिना यह वर्दी फीकी थी ,फीकी है और फीकी ही रहेगी ।
