Swati Grover

Fantasy Inspirational

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Swati Grover

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पदमावती

पदमावती

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पूरे भारत में पद्मावती फिल्म को लेकर बवाल मचा हुआ था। टी.वी पर वही खबरें बार-बार आ रही थी और अपने घर में बैठी पदमा सोच रही थी। कौन थी, यह रानी? मेरी तरह सुन्दर या मुझसे भी ज्यादा सुन्दर ? बड़ी बहादुर थी, वो जो आग में जल गयी। पदमा इसी बात पर इतरा रही थी कि उसका नाम, रूप-रंग पद्मावती जैसा ही है, तो वो भी किसी रानी से कम नहीं हैं । वैसे भी उसके माता-पिता ने उसे बड़े नाज़ो से पाला है।


अपने व्यक्तित्व पर इतराती हुई, जब बालकनी में आई तो देखा कि सामने वाले घर का महेश उसे कुछ इशारे कर रहा था। उसने एक तिरछी नज़र डाली और अंदर आ गयी और बड़बड़ाते हुए बोली कि "कहाँ महेश और कहाँ मैं । मेरे लिए तो कोई राजा रतनसेन ही आयेगा। नहीं तो वह कुंवारी ही रह जायेगी, वह महेश जैसे आशिक से शादी नहीं हो सकती। आख़िर उसके भी तो कुछ सपने है ।


पद्मा ने बारहवीं तक पढ़ाई की थीं। आज पत्राचार से फॉर्म भरने जाते हुए वह सोच रही थी कि क्यों बाबा पढ़ाई पर इतना ज़ोर देते रहते है। भला, पद्मावती भी कभी पढ़ती थी ? मन ही मन कुढ़ती हुई, जब यूनिवर्सिटी पहुँची तो देखा कि अपने दोस्तों के साथ खड़ा महेश उसका इंतज़ार कर रहा है। कमीना, मेरा पीछा कर रहा है । क्यों रे! तेरी हिम्मत कैसे हुई, यहाँ तक आने की? तुझे एक साल से प्यार करता हूँ, बता शादी करेगी मुझसे ? "महेश की आँखों में अधिकार और प्रेम के मिले-जुले भाव थें । "तूने अपनी शक़ल देखी है, फ़टीचर कही का । मैं पद्मावती हूँ, तुझ जैसे नमूनों से शादी करने के लिए पैदा नहीं हुई। इसलिए मुझसे दूर रह और अपने हिसाब की लड़की देख ले। तभी तो तुझसे पूछ रहा हूँ, पदमा । महेश उसके करीब आते हुए बोला । अपनी हद में रह, मेरी भी कुछ पसंद है । कहते हुए पद्मा पैर पटकते हुए घर चली गई और सोचने लगी कि बाबा से कहूँगी, "मुझे नहीं पढ़ना।"


महेश को ऐसे ज़वाब की उम्मीद नहीं थीं। उसे पद्मा की बातें, किसी अपमान से कम नहीं लगी । उसे लगा पद्मा को उसके प्यार की क़दर नहीं है । रही-सही कसर दोस्तों ने मज़ाक बनाकर पूरी कर दी। पदमा का रिश्ता बाबा ने तय कर दिया। लड़का सचमुच पदमा के टक्कर का था। सुन्दर, धनी और किसी रियासत के राजकुमार जैसा । पदमा खुश थी, घरवाले रोके की रस्म का सामान ख़रीदने बाहर गए थे और वो पद्मावती फिल्म का विरोध करने वालों की आवाज़ों से तंग आकर घर की खिड़कियाँ बंद कर आराम से सोफ़े पर लेटी थी ।


तभी घंटी बजी, दरवाज़ा खोला तो महेश खड़ा था। तू यहाँ क्या करने आया हैं? चल जा, यहाँ से! मैं तुझे आज अपना बनाने आया हूँ । यह कहकर उसने पदमा को ज़ोर से अंदर की तरफ धक्का दिया और दरवाज़ा बंद कर दिया । पदमा चिल्लाई, मगर शोर के कारण उसकी आवाज़ कौन सुने? बंद खिड़कियाँ खोलने के लिए भागी तो महेश ने उसे अपनी तरफ़ खींच लिया और वह चाहकर भी कुछ न कर सकी । महेश पर वासना इतनी हावी थी कि वह पदमा के साथ ज़बरदस्ती करने लगा। "तेरी शादी होगी तो मुझसे, वरना मैं तुझे किसी के लायक भी नहीं छोडूंगा।" महेश उस समय किसी वहशी से कम नहीं लग रहा था।


पदमा किसी तरह उसकी गिरफ़्त से निकलकर रसोई की तरफ़ भागी और हाथ में माचिस उठाकर बोली, "नहीं मैं तुझे जीतने नहीं दूँगी । उसे महेश साक्षात् खिलजी लग रहा था और ख़ुद को रानी पद्मावती समझकर स्वयं को जलाने के लिए हुई तो माचिस नहीं जली। महेश उसकी तरफ़ बढ़ता आ रहा था। तभी चाक़ू उठाकर उसने उस पर वार करना शुरू कर दिया। लहूलुहान महेश घायल होकर ज़मीं पर गिर गया और करहाने लगा। मगर पदमा को एक ही आवाज़ सुनाई दे रही थी, जो उसके अंतर्मंन से आ रही थी, 'वर्तमान 'पद्मावती की ज़रूरत जौहर नहीं है, आज की नारी मरेगी नहीं मारेगी..... "करणी सेना वालों का हजूम जा चुका था। बिना यह जाने कि आज किस पदमावती के सम्मान की रक्षा करने की ज़रूरत है।


समाप्त



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