parda
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आज निया ने निर्णय ले ही लिया था घर छोड़ने का।उसने रोनित को काॅल किया।
‘‘ हैलो निया इस समय, सब ठीक है न ?’’रोनित ने उनींदी आवाज में कहा ।
‘‘ नहीं रोनी, मैंने सोच लिया है, अब मैं सचिन के साथ और नहीं रह सकती ,‘‘ निया ने कहा।
‘‘ अरे अचानक ऐसा क्या हो गया ?’’
‘‘ रोनी अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होता, जब देखो एक ही बात ,उसे तुमको ले कर शक हो गया है। कहता है जाॅब छोड़ दो । अब तुम ही बताओ मैं क्या करूँ ?’’
‘‘ निया रात के एक बज रहे हैं, हम कल बात करेंगे ’’ कह कर रोनित ने मोबाइल बन्द कर दिया।
निया अपने स्टडी रूम में ही सेटी पर लेट गयी। आज फिर सचिन से उसकी लड़ाई हो गयी थी। क्या करे वह लाख सोचती है कि सामान्य रहे पर सचिन की आदतें उसे इरीटेट कर ही देती हैं, उस पर उसका दिन-रात टोकना। अभी एक साल पहले तक सब कुछ ठीक था या यह कह लें कि निया को ठीक लगता था। लाइफ सामान्य ढंग से चल रही थी। पर जीवन कितना मधुर हो सकता ह,ै यह उसे तब अनुभव हुआ जब रोनित उसके जीवन में आया। एक साल पहले ही रोनित ने उसकी कम्पनी में मैनेजर के पद पर ज्वाइन किया था। उसके प्रभावशाली व्यक्तित्व से तो वह पहले दिन ही प्रभावित हो गयी थी। धीरे-धीरे उसका सुदर्शन व्यक्तित्व, बोलने का ढंग, स्टाइल, सब उसे आकर्षित करने लगे।
उस दिन निया ने आफिस में प्रवेश किया ही था कि राजन ने कहा ‘‘ मैडम आपको मैनेजर साहब बुला रहे हैं।’’
कुछ दिनों से निया रोनित के अपने प्रति आकर्षण को भी भली-भाँति अनुभव करने लगी थी जो उसको एक सुखद अनुभूति से भर देता। अब रोनित के सामने पड़ते ही वह सामान्य नहीं रह पाती थी। निया के हृदय की धड़कन तीव्र हो गयी।
‘‘ मे आई कम इन सर’’ निया ने रोनित के केबिन का दरवाजा खोलते हुए पूछा।
रोनित ने अगले दिन होने वाली मीटिंग के बारे में कुछ निर्देश दिये। जब निया उठ कर चलने को हुई तो रोनित ने अनायास ही कहा ‘‘ निया क्या आज हम लोग लंच टाइम में कहीं काफी पीने चल सकते हैं ?’’
निया अचानक दिये गये इस प्रस्ताव पर सकपका गयी। उसको समझ न आया कि क्या कहे। सच तो यह था कि भले आज का प्रस्ताव अप्रत्याशित रहा हो, उसे परोक्ष रूप से इसकी प्रतीक्षा बहुत दिनों से थी। उसके असमंजस का लाभ उठाते हुए रोनित ने कहा ‘‘ मैं ठीक डेढ़ बजे रिंग रोड वाले कैफे में पहुँच जाऊँगा, तुम भी अपनी फाइल का काम पूरा करके वहीं आ जाना।’’ यह कहते हुए निया के उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना वह कम्प्यूटर पर काम में व्यस्त हो गया।
निया अपनी सीट पर आ कर बैठ गयी। वह समझ रही थी कि वह जो कर रही है अनुचित है पर चाह कर भी रोनित को मना नहीं कर पायी। उस दिन उनके मध्य संकोच की जो दीवार गिरी तो दोनों एक दूसरे के समीप आते ही चले गये।
ऐसा नहीं कि सचिन ने उसके बदलाव को अनुभव नहीं किया।वैसे भी आजकल उसे सचिन में कुछ अधिक ही कमियाँ दिखायी पड़ती थीं, कभी उसके कपड़ों की पसंद तो कभी उसके बोलने के स्टाइल, पर कारण उसकी समझ से परे था। एक दिन सचिन ने निया के मोबाइल पर रोनित के मेसेज देख लिये, उस दिन उसका माथा ठनका।उसने कहा ‘‘ निया तुम्हारा बाॅस किस तरह के मेसेज करता है ?’’
निया बिगड़ गयी ‘‘ तुमने मेरा मोबाइल क्यों देखा ?’’
‘‘ अरे मैं हसबैंड हूँ तुम्हारा ’’
‘‘ तो क्या मेरी कोई स्पेस नहीं है ?’’
‘‘ पर मेरी बीबी से कोई फलर्ट करे इतनी स्पेस मैं नहीं दे सकता।’’
‘‘ इतने दकियानूसी मत बनो रोनित सिर्फ मेरा दोस्त है और दोस्तों मंे थोड़ा बहुत हँसी-मजाक चलता है।’’
एक बार सचिन के मन में गाँठ पड़ गयी तो उसमें अनेक सूत्र उलझने लगे गाँठ बढ़ने लगी,झगड़े बढ़ने लगे।
एक दिन सचिन ने कहा ‘‘ निया मैं देख रहा हूं तुम दिन पर दिन बदलती जा रही हो।’’
‘‘ समय के साथ बहुत बदलता है इंसान वैसा ही नहीं रह सकता न ।’’
‘‘पर तुम कुछ ज्यादा ही बदल गयी हो, वैसे भी आजकल न तो तुमको मुझमें इन्टरेस्ट रह गया है, न घर में, आफिस से देर में लौटती हो बात क्या है ?’’
‘‘ हाउ मीन यू आर, मुझ पर शक कर रहे हो।’’
बात जो प्रारम्भ हुई तो बढ़ते-बढ़ते घमासान युद्ध मंे बदल गयी। अब तो रोज ही दोनांे एक दूसरे पर आरोप पर प्रत्यारोप लगाने लगे।
सचिन जितना अधिक शक करने लगा था, वह रोनित के और समीप होती जा रही थी।
एक दिन मिलने पर उसे अनमना देख कर रोनित ने कारण जानना चाहा तो निया ने अपने और सचिन के मध्य के मन-मुटाव की पूरी कहानी बता दी। रोनित ने कहा ‘‘ अरे तुम सेल्फ डिपेंडेंट हो बहुत रोकटोक करे तो अलग हो जाओ।’’
निया ने उसकी आँखों में देखते हुए पूछा ‘‘ क्या तुम मेरा साथ दोगे ?’’
‘‘अरे मैं तो सदा तुम्हारे साथ हूँ डार्लिंग ’’ कहते हुए उसने निया को बाहों में भर लिया। ....सोचते-सोचते निया सो गयी।
सुबह होते ही निया घर छोड़ कर निकल पड़ी। उसने रोनित को काल किया ‘‘ रोनित मैंने घर छोड़ दिया है तुम्हारे पास आ रही हूँ।’’
रोनित नेे खीज कर कहा ‘‘ घर छोड़ने से पहले मुझसे पूछ तो लेती। मैं तुम्हें अपने घर तो नहीं रख सकता न,घर में क्या कहूँगा ?’’
निया अवाक थी ‘क्या इसी रोनित के लिये वह घर छोड़ रही है।’ अपने में खोयी निया ने पीछे से आ रही गाड़ी का हार्न ही नहीं सुना और गाड़ी से धक्का खा कर गिर पड़ी और बेहोश हो गयी । उसकी आँख खुली तो उसने सचिन को खड़े पाया। उसका चेहरा उसकी चिन्ता का साक्षी था। वह बोला ‘‘ ऐसा भी क्या गुस्सा कि बिना बताये निकल पड़ी तुम्हें कुछ हो जाता तो मेरा क्या होता ?’’ पर्दा
आज निया ने निर्णय ले ही लिया था घर छोड़ने का।उसने रोनित को काॅल किया।
‘‘ हैलो निया इस समय, सब ठीक है न ?’’रोनित ने उनींदी आवाज में कहा ।
‘‘ नहीं रोनी, मैंने सोच लिया है, अब मैं सचिन के साथ और नहीं रह सकती ,‘‘ निया ने कहा।
‘‘ अरे अचानक ऐसा क्या हो गया ?’’
‘‘ रोनी अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होता, जब देखो एक ही बात ,उसे तुमको ले कर शक हो गया है। कहता है जाॅब छोड़ दो । अब तुम ही बताओ मैं क्या करूँ ?’’
‘‘ निया रात के एक बज रहे हैं, हम कल बात करेंगे ’’ कह कर रोनित ने मोबाइल बन्द कर दिया।
निया अपने स्टडी रूम में ही सेटी पर लेट गयी। आज फिर सचिन से उसकी लड़ाई हो गयी थी। क्या करे वह लाख सोचती है कि सामान्य रहे पर सचिन की आदतें उसे इरीटेट कर ही देती हैं, उस पर उसका दिन-रात टोकना। अभी एक साल पहले तक सब कुछ ठीक था या यह कह लें कि निया को ठीक लगता था। लाइफ सामान्य ढंग से चल रही थी। पर जीवन कितना मधुर हो सकता ह,ै यह उसे तब अनुभव हुआ जब रोनित उसके जीवन में आया। एक साल पहले ही रोनित ने उसकी कम्पनी में मैनेजर के पद पर ज्वाइन किया था। उसके प्रभावशाली व्यक्तित्व से तो वह पहले दिन ही प्रभावित हो गयी थी। धीरे-धीरे उसका सुदर्शन व्यक्तित्व, बोलने का ढंग, स्टाइल, सब उसे आकर्षित करने लगे।
उस दिन निया ने आफिस में प्रवेश किया ही था कि राजन ने कहा ‘‘ मैडम आपको मैनेजर साहब बुला रहे हैं।’’
कुछ दिनों से निया रोनित के अपने प्रति आकर्षण को भी भली-भाँति अनुभव करने लगी थी जो उसको एक सुखद अनुभूति से भर देता। अब रोनित के सामने पड़ते ही वह सामान्य नहीं रह पाती थी। निया के हृदय की धड़कन तीव्र हो गयी।
‘‘ मे आई कम इन सर’’ निया ने रोनित के केबिन का दरवाजा खोलते हुए पूछा।
रोनित ने अगले दिन होने वाली मीटिंग के बारे में कुछ निर्देश दिये। जब निया उठ कर चलने को हुई तो रोनित ने अनायास ही कहा ‘‘ निया क्या आज हम लोग लंच टाइम में कहीं काफी पीने चल सकते हैं ?’’
निया अचानक दिये गये इस प्रस्ताव पर सकपका गयी। उसको समझ न आया कि क्या कहे। सच तो यह था कि भले आज का प्रस्ताव अप्रत्याशित रहा हो, उसे परोक्ष रूप से इसकी प्रतीक्षा बहुत दिनों से थी। उसके असमंजस का लाभ उठाते हुए रोनित ने कहा ‘‘ मैं ठीक डेढ़ बजे रिंग रोड वाले कैफे में पहुँच जाऊँगा, तुम भी अपनी फाइल का काम पूरा करके वहीं आ जाना।’’ यह कहते हुए निया के उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना वह कम्प्यूटर पर काम में व्यस्त हो गया।
निया अपनी सीट पर आ कर बैठ गयी। वह समझ रही थी कि वह जो कर रही है अनुचित है पर चाह कर भी रोनित को मना नहीं कर पायी। उस दिन उनके मध्य संकोच की जो दीवार गिरी तो दोनों एक दूसरे के समीप आते ही चले गये।
ऐसा नहीं कि सचिन ने उसके बदलाव को अनुभव नहीं किया।वैसे भी आजकल उसे सचिन में कुछ अधिक ही कमियाँ दिखायी पड़ती थीं, कभी उसके कपड़ों की पसंद तो कभी उसके बोलने के स्टाइल, पर कारण उसकी समझ से परे था। एक दिन सचिन ने निया के मोबाइल पर रोनित के मेसेज देख लिये, उस दिन उसका माथा ठनका।उसने कहा ‘‘ निया तुम्हारा बाॅस किस तरह के मेसेज करता है ?’’
निया बिगड़ गयी ‘‘ तुमने मेरा मोबाइल क्यों देखा ?’’
‘‘ अरे मैं हसबैंड हूँ तुम्हारा ’’
‘‘ तो क्या मेरी कोई स्पेस नहीं है ?’’
‘‘ पर मेरी बीबी से कोई फ्लर्ट करे इतनी स्पेस मैं नहीं दे सकता।’’
‘‘ इतने दकियानूसी मत बनो रोनित सिर्फ मेरा दोस्त है और दोस्तों में थोड़ा बहुत हँसी-मजाक चलता है।’’
एक बार सचिन के मन में गाँठ पड़ गयी तो उसमें अनेक सूत्र उलझने लगे गाँठ बढ़ने लगी,झगड़े बढ़ने लगे।
एक दिन सचिन ने कहा ‘‘ निया मैं देख रहा हूँ तुम दिन पर दिन बदलती जा रही हो।’’
‘‘ समय के साथ बहुत बदलता है इंसान वैसा ही नहीं रह सकता न ।’’
‘‘पर तुम कुछ ज्यादा ही बदल गयी हो, वैसे भी आजकल न तो तुमको मुझमें इन्टरेस्ट रह गया है, न घर में, आफिस से देर में लौटती हो बात क्या है ?’’
‘‘ हाउ मीन यू आर, मुझ पर शक कर रहे हो।’’
बात जो प्रारम्भ हुई तो बढ़ते-बढ़ते घमासान युद्ध में बदल गयी। अब तो रोज ही दोनों एक दूसरे पर आरोप पर प्रत्यारोप लगाने लगे।
सचिन जितना अधिक शक करने लगा था, वह रोनित के और समीप होती जा रही थी।
एक दिन मिलने पर उसे अनमना देख कर रोनित ने कारण जानना चाहा तो निया ने अपने और सचिन के मध्य के मन-मुटाव की पूरी कहानी बता दी। रोनित ने कहा ‘‘ अरे तुम सेल्फ डिपेंडेंट हो बहुत रोकटोक करे तो अलग हो जाओ।’’
निया ने उसकी आँखों में देखते हुए पूछा ‘‘ क्या तुम मेरा साथ दोगे ?’’
‘‘अरे मैं तो सदा तुम्हारे साथ हूँ डार्लिंग ’’ कहते हुए उसने निया को बाहों में भर लिया। ....सोचते-सोचते निया सो गयी।
सुबह होते ही निया घर छोड़ कर निकल पड़ी। उसने रोनित को काल किया ‘‘ रोनित मैंने घर छोड़ दिया है तुम्हारे पास आ रही हूँ।’’
रोनित नेे खीज कर कहा ‘‘ घर छोड़ने से पहले मुझसे पूछ तो लेती। मैं तुम्हें अपने घर तो नहीं रख सकता न,घर में क्या कहूँगा ?’’
निया अवाक थी ‘क्या इसी रोनित के लिये वह घर छोड़ रही है।’ अपने में खोयी निया ने पीछे से आ रही गाड़ी का हार्न ही नहीं सुना और गाड़ी से धक्का खा कर गिर पड़ी और बेहोश हो गयी । उसकी आँख खुली तो उसने सचिन को खड़े पाया। उसका चेहरा उसकी चिन्ता का साक्षी था। वह बोला ‘‘ ऐसा भी क्या गुस्सा कि बिना बताये निकल पड़ी तुम्हें कुछ हो जाता तो मेरा क्या होता ?’’
निया की आँखों पर चढ़ा रोनित के प्रेम का पर्दा गिर चुका था, वह सचिन के गले लग फूटफूट कर रो पड़ी।
