ऑनलाइन
ऑनलाइन


हैलो।
हैलो, प्रणाम सर, कैसे हैं आप, आजकल क्या चल रहा है प्रयाग ने साहित्यकार सरस्वती सागर से पूछा।
सब ठीक है, वैसे इस कोरोना काल में कुछ किया नहीं जा सकता सो शांति से बैठे हैं।
हाँ, पर आजकल तो ऑनलाइन बहुत कुछ हो रहा है सर, ढेरों साहित्यिक कार्यक्रम भी ऑनलाइन आ रहे हैं।मैं
हाँ हाँदेखा था तुम्हें पर हमें तो ये सब नौटंकी लगताहै।अरे, जिसे देखो फेसबुक पर लाइव बतिया रहा है, बेसूरे राग आलाप रहा है, सामने कोई सुन भी रहा है या नहीं कुछ अता-पता नहींअपने चमचों को कहकर ढेरों लाइक ओर कमेंट डलवा देते है हो गया कार्यक्रम।टैकनोलॉजी का दरुपयोग कर रहे हैं नसपीटे ये ऑनलाइन कार्यक्रम भी कोई कार्यक्रम होता है भला सरस्वती सागर जी ने मन की भड़ास निकालते हुए कहा।
अच्छा बताओ, फोन कैसे किया था।
कुछ नहीं सर, मैं तो आपका ऑनलाइन इंटरव्यू लेने की सोच रहा था पर लगता है आप तो ऑनलाइन कार्यक्रम के खिलाफ है तोफिर रहने दीजियेप्रयाग ने कहा।
अरे नहीं तुम तो बुरा मान गये। बताओ कब लोगे इंटरव्यूसरस्वती सागर जी ने बात के लहजे को मुलायम करते हुए।
सर कल ले लेते हैं पर मेरे पेज पर देखने वाले ज्यादा नहीं होते
अरे कोई बात नहीं, हम कह देगें आपस वालों को, लगभग सौ लोगन तो हम जुटा लेहींसरस्वती सागर ने प्रयाग की बात को काटते हुए कहा।
तो फिर ठीक है कल दस बजे ऑनलाइन रहिएगा, मैं जोङ़ता हूँ आपको।
जरा पोस्टर बनाकर भिजवा देना प्रयाग, ताकि सारे ग्रुप्स में भेज सकूँ।
बिल्कुल गुरुजी,आज रात तक आपको
पोस्टर मिल जाएगा।
ठीक हैमैं तैयार रहूँगा कल दस बजे, कहकर सरस्वती सागर अपने पहले ऑनलाइन कार्यक्रम की भूमिका सोचने लगे।
पोस्टर बनाते हुए प्रयाग के मन में उथल- पुथल मची थी।वो सोच रहा था क्या किसी भी बात का विरोध तब तक ही रहता है जब तक स्वयं उसमें शामिल न हो।
जो खुद को न मिले तो बुरा और मिलते ही शिकयते रफा-दफा फिर चाहे वो मंचीय कार्यक्रम हो या फिर ऑनलाइनऐसे साहित्यकार भला कौनसे प्रतिमान स्थापित करेंगे साहित्य और समाज में। जहाँ कथनी-करनी की समानता नहीं, उन्हें साहित्यकार कहे तो कैसेसोचते हुए प्रयाग कल के कार्यक्रम को कैंसिल करने की मानसिक तैयारी करने लगा।
पोस्टर का अधूरा छोड़कर लेपटॉप बंद करते हुए उसे मानसिक शांति का अहसास हो रहा था।