STORYMIRROR

ओब्जर्ववेशन

ओब्जर्ववेशन

2 mins
741


नमिता नन्ही-सी परी की शैतानियाँ देख देख कर हंसते हंसते दोहरी हुई जाती थी। कभी ठुमक-ठुमक चलती तो पैरों में बंधी पायलिया मन मोह लेती। कभी किसी गीत पर नन्हे-नन्हे हाथों से तालियां बजाती। कभी प्लेट चम्मच बजाती तो कभी सरे खिलौने बिखेर बीचों बीच बैठ जाती। कभी चाबी वाली रेलगाड़ी को देख खिलखिलाती तो कभी ठुनक कर सारे आंगन का चक्कर लगा आती। कभी फूलों को छेड़ती तो कभी गमलों की मिट्टी बाहर फैला देती। सारा दिन उसकी शैतानियों मे और समेट समेटी में ही बीत जाता। आज सुबह माँ का फोन आया तो नमिता काफी देर तक माँ से बातें करती रही। इधर की उधर की, सास की ननद की, पति की, मोहल्ले भर की। फोन से फ्री होकर उसने परी को दलिया खिलाया और साथ ही साथ कपड़े धोने की मशीन लगा ली। तीन दिन से पानी नहीं आ रहा था तो कपड़ों का ढेर लग गया था। कुछ देर बाद कमरे में सामान रखने आयी तो क्या देखती है नन्ही परी फोन पर बातें करने की एक्टिग कर रही है। ये देख उसे बेसाख्ता हंसी आ गयी पर....अगले ही पल हंसी काफूर हो गई जब उसने परी के चेहरे पर वही हाव भाव देखे जो माँ से शिकायतें करते हुए उसके चेहरे पर थे। तो क्या नन्ही सी परी उसे इतना ऑब्जर्व करती है...


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Children