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Nikita Vishnoi

Drama

3  

Nikita Vishnoi

Drama

नज़र

नज़र

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जब घर के कार्यो से निजात मिलता तब गांव की सारी महिलाएं एक दूसरे के घर के बरामदे में अनाज को साफ करती ,गेंहू में से कंकर को चुनकर अलग करती और बहुत सारी बातें करती थी ।जो आपसी प्रेम और सौहार्द का विषय हुआ करता था।

पहले जब महिलाएं मेले में जाती थी ,तब सब मिलकर ही जाती थी एक दूसरे से बतियाते हुए जाना उनके कोसो दूर के सफर को नजदीक राह का बना दिया करता था पहले गजरा का बड़ा चलन था।

प्रत्येक महिला मेले में या हाट को जाती तो वहाँ से गजरा जरूर लाती और सुंदरता की अद्भुत छवि को और अधिक सवांरती ।ऐसे ही सुनन्दा ताई और उनकी सहेलियों के बीच बात चल रही थी कि शहर में बड़ा सा मीनाबाजार लगा है।

जहाँ रंगबिरंगी चूड़ियां ,बिंदी ,हार और राजस्थानी चुनरियां आयी है पर बात अभी ये है कि पति देव का बटुआ देखना पड़ेगा "जेब मे होगा माल तो काहे पड़े अकाल "और ऐसा कह कर सभी जोर जोर से ठहाके लगाने लगी,

क्योंकि आज सभी की नज़र बटुए पर ही होगी ।पर विषमता कहे यदि आज के परिवेश की तो आज महिला आत्मनिर्भर है उसे आज पति के बटुए पर नज़र डालना शायद शोभा नही देता ,फिर भी पति का बटुआ तो पति का ही होता है न। भला विरासत के रिवाज का उल्लघन क्यू करना इसलिए आज भी आहिस्ता से नज़र पति के बटुए को ही ढूंढती है।


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