Akanksha Gupta

Inspirational

2.5  

Akanksha Gupta

Inspirational

नयन।

नयन।

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वह ब्रेल लिपि पढ़ना चाहती थी,अपने बच्चों के लिए।उनके जीवन में कल्पनाओं की रोशनी से खुशियों की उज्जवल किरणे भरना चाहती थी वह।जिस तरह उसके बच्चे अंधेरे को अपना मान बैठे थे। संसार की सुंदरता से दूर अपने रास्ते टटोलते अंधेरो मे ठोकरें खा रहे उसके बच्चे अपना अस्तित्व ही खो बैठे थे।

"देखो सुधा,मैं अब इसे अपने साथ नही रख सकता।"मयंक गुस्से में बोला।

"तुम ऐसा कैसे कह सकते हो।तुम इसके पिता हो।क्या तुम्हारे मन में इसके लिए प्यार नही है?"सुधा तड़प उठी।

"देखो मेरा सिर्फ एक ही बेटा है,अन्वय।इससे मेरा कोई रिश्ता नहीं।"जनाब देख तो सकते है नहीं और नाम है नयन।इसकी वजह से मुझे सोसायटी में कितनी शर्मिंदगी उठानी पड़ती है।हर कोई आते जाते बस बेमतलब की सलाह दे जाता है।दूसरों की दया का पात्र बन गया हूँ मैं बेमतलब मे।अरे भाई अगर इतनी ही चिंता है तो उसे अपने साथ क्यो नही ले जाते?कम से कम मेरा पीछा तो छूटे।"मयंक लगातार बोले जा रहा था।

"तुम इतने पढ़े लिखे होकर भी किस जमाने की बात करते हो?आजकल के माँ बाप अपने बच्चों के लिए कुछ भी करते है।फिर हमारे बच्चे के लिए तो कितनी फैसिलिटीज हो गई है।उसकी एक अलग राइटिंग है,अपनी दुनिया है जहाँ उनके सपनों को उड़ान भरने की आजादी है।बस तुम थोड़ा समझो तो सही।"सुधा उसे समझाने की कोशिश कर रही थी।

"देखो मैं तुमसे आखिरी बार कह रहा हूँ कि मैं इसे अपने घर में नहीं रख सकता हूँ।अब तुम्हें डिसाइड करना है कि तुम्हारे लिए कौन ज्यादा जरूरी है?मैं और अन्वय या फिर यह मनहूस।"मयंक कह कर चला गया।

अगले दो चार दिन घर में शान्ति छायी रही।सब कुछ नॉर्मल चल रहा था।मयंक सोच रहा कि सुधा को नयन को छोड़ने के लिए थोड़ा वक्त तो चाहिये ही लेकिन सुधा ने तो कुछ और ही सोच रखा था बस उसे थोड़ा वक्त लेना था तैयारी के लिए।

सुधा ने एक अलग घर ले लिया और नयन के साथ रहने लगी।वही पर उसने दृष्टिबाधित बच्चों के विद्यालय मे नॉकरी कर ली।यह उसके लिए आसान नही था।कागज पर उभरे हुए बिन्दुओ को शब्दों मे ढालना उनके लिए आसान नहीं था।नए घर के नए सिरे जोड़ने के लिए सुधा को अंधेरे का सहारा लेना पड़ा।वह लड़खड़ाती हुई ही सही आगे बढ़कर रही थीं।

उसने नयन को आत्मरक्षा के लिए प्रेरित किया।जूडो कराटे में पारगंत बनाया।धीरे धीरे वह एक राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी बन गया था।उसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।उसकी प्रसिद्धि चारों ओर बढ़ गई।

अब मयंक को अपने किये पर पछतावा हो रहा था लेकिन अब कुछ नही हो सकता था क्योंकि सुधा ने कभी ना लौटने का फैसला लेते हुए मयंक से तलाक ले लिया और अन्वय को भी अपने साथ रख लिया।

अब वे तीनों साथ रहते है।नयन अब भी आगे बढ़ रहा है और सुधा के हौसले भी।



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