नया सवेरा

नया सवेरा

1 min
388


मैं ब्रह्मा जी के पैरों पर पड़ी थी और ब्रह्मा जी मुझे आशीर्वाद दे रहे थे. रो-रो कर मेरे आँसू भी सूख चुके थे. तभी ब्रह्मा जी ने मुझे अपने अंक में ले लिया और बोले, "क्या कष्ट है बेटी?"


"कष्ट की बात पूछ रहे हैं आप? हम बेटियों को कष्ट ही कष्ट है इस दुनिया में, जो तकलीफ़ें आपने हम स्त्रियों को दी हैं वे पुरुषों को क्यों नहीं दीं?”


"अगर पुरुषों को दे देता तो..." ब्रह्मा जी कुछ सोच में पड़ गए. 


"बाकी सब तो ठीक है पर आपने हमारे आँचल में संवेदनाएँ और अश्रुओं के बादल क्यों भर दिए दिये? बरसते ही रहते हैं, बहुत कष्ट होता है मन को. ले लीजिये वापस हमसे. नहीं चाहिये मन में चाहत और प्रेम, दिल में भावनाएँ और संवेग."


"अच्छा वापस ले लेता हूँ सब कुछ, पर देखना, रह जायेगा तुम्हारे पास केवल एक 'शून्य'... झेल पाओगी इस शून्य को? लिख पाओगी इतनी मार्मिक और संवेदनशील कविताएँ और कहानियाँ? दे पाओगी सभी 'अपनों' को इतना स्नेह, अपनत्व और ममता? जी पाओगी अपना कोमल और सुन्दर 'स्त्रीत्व'? बोलो, उत्तर दो.”


इतने में ही एक अजीब सी घुटन महसूस हुई और घबराहट में मेरी नींद उचट गयी. 


संवेगों से भीगी हुई मेरी संवेदनाओं का 'नया सवेरा' हो चुका था.


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama