नहीं जीना अब इशारों पर

नहीं जीना अब इशारों पर

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एक एहसास मां का शायद मां के सिवा कोई नहीं समझता तभी तो मां बनकर सारी दूनिया ही बदल गई।

निम्मो की हाँ यही नाम था उसका।पल भर में वो सारे गम भुल गई थी 

अपने नन्हे गोपाल को उसने जब गोद में लिया तो उसके आँखों से सिर्फ आँसु की धारा बह निकली जो रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी

एक बारगी उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा की ये उसका बच्चा है, उसकी औलाद है।वो भी अब मां बन गई थी। उसने अपने नन्हे को गोद में उठाया जी भर के देखा और कहीं दूर यादों में खो गई।

नयी नयी शादी करके वो आई थी दिनभर घर के कामों में चला जाता और फिर रात का इंतजार होता कब रात हो तो वो प्रकाश को देखेगी।प्रकाश उसका पति जिसका दिन भर कोई अता पता न रहता था।खाना खाने आता पर सास वहीं बैठी घुंघट में ही खाना देकर दरवाजे की ओट से बस बातें सुनकर ,उसकी आवाज सुनकर मन भर लेती थी।

रात को प्रकाश जल्दी आता पर सास कमरे में जाने न देती जानबूझकर और ताने देती बड़ी जल्दी है तुझे कमरे में जाने की ,प्रकाश कुछ लेकर तो न आया तेरे वास्ते।नहीं मांजी कुछ भी नहीं अगर लाया होता तो आप से क्या छुपाना।पर मां जी तो मां जी थी उसे कुछ न कुछ बहाने से कमरे में न जाने देती। कुछ न तो "पैर में मालिस कर दें जरा आज बहुत दर्द हो रहा" और इसतरह करते कमरे में आते ही उसकी आँखें भीग जाती क्योंकि प्रकाश थककर सो चुका था

उसे बहुत गुस्सा आता पर करें तो क्या।प्रकाश भी त़ो मेरा इंतजार कर रहा होगा, पर क्या करू यही सोचते सोचते आँख लग जाती और फिर एक नयी सुबह।छह महीने हो गए थे पर कोई खुशखबरी नहीं थी अब सास बोलने लगी, कोई आए तो ताने शुरू "न जाने कब पोते को देखूँगी"सब के तो बच्चे होने वाले हैं पर यहाँ देखो कुछ पता नहीं।

दो साल हो गए इंतजार में, मुझे भी डर लगने लगा था अब!क्या सचमुच में माँ नहीं बन सकती?

प्रकाश से निम्मो ने बात की वो समझदार था"तु भी कहां इन सबकी सुनती है मेरा तो सुनती नहीं मेरा सुन... सब होगा बच्चे के लिए हमारा साथ रहना जरूरी है ज्यादा से ज्यादा... न की सास के साथ" प्रकाश ने निम्मो को समझाया। तु बहू है कठपुतली नहीं जो इशारों पर नाचती रहे।उठो तो उठे बैठो तो बैठे हर बात माननी जरुरी नहीं।तु भी अपने लिए समय निकाल मेरे लिए समय निकाल ,ठीक है मां है तेरी सांस है पर रात दिन इशारों पर नाचना सही नहीं एक दिन दो दिन फिर क्या करेगी तु।हर रिश्ते में समय जरूरी है‌।

हाँ सही कहा तुमने।नयी सुबह निम्मो के लिए नया था वो कुछ मन में ठान चुकी थी। हां मैं अब कठपुतली की तरह नहीं बहुत और पत्नी की तरह रहुंगी। आज उसने सारे काम फटाफट कीये और प्रकाश के आने पर उसे खाना देकर बाकी बरतन समेटा सब साफ किया और चल दी अपने कमरे में।

बहू आज दर्द बहुत है जरा मालिस कर दे पैर में।उसने अनसुना कर के दरवाजा बंद कर लिया।उसने आज कठोर कदम उठाया पर उसके लिए सही था। नहीं जीना अब इशारों पर ,सुबह सास का प्रवचन चालू था पर उसने बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। प्रकाश एक बार डॉक्टर को भी चुपचाप दिखाकर लाया था।अब निम्मो को अपना खास ख्याल रखना था पाँच, छह महीने होते होते उसे खुशखबरी मिल ही गई थी वो माँ बनने वाली है।

निम्मो "मेरी गोद में भी तो दे"प्रकाश ने कहा निम्मो जैसे नींद से जागी हाँ हाँ वो तो अपने गोद में अपने नन्हे को लेकर थी उसने जी भर कर चुमा वो भी माँ बन गई, हाँ वो भी माँ हैं अब। इन आँसुओं के लिए कोई जगह नहीं हैं प्रकाश" हाँ निम्मो"।दोनों की आँखें भरी थी पर आँसु खुशी के थे।

हाँ अब आँसुओं की कोई जगह नहीं बस खुशी ही खुशी।

कभी कभी हमें कठोर कदम उठाने पड़ते हैं अपने लिए, बच्चों के लिए या किसी के लिए भी अगर सही कदम है तो जरूर उठाए हिचकिचाहट से नहीं पूरे जतन, विश्वास और ईमानदारी से, सफलता मिलनी ही है।


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