मुक्ति
मुक्ति


निशा जीवन के दोराहे पर खड़ी थी। एक रास्ता था बॉस के साथ विदेश जाने का, दूसरा...न जाने कहाँ?
घर से निकलते समय मनीष ने कहा था,"अगर अमेरिका गयी तो वापस मेरे घर न आना."
"मेरा घर....उंँह...। लिव-इन-रिलेशनशिप में अपना घर होता ही कहाँ है?" बुदबुदाते हुए कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ गई.
आफ़िस पहुँचने पर उतरा चेहरा देखकर बॉस ने पूछा, क्या हुआ? तबियत तो ठीक है न?"
"तबियत ठीक है सर, पर मैं आपके साथ मीटिंग में अमेरिका नहीं जा सकती." निश
ा ने कहा.
"तो फ़िर पर्सनल सैक्रेटरी की नौकरी क्यों ली?"अब लास्ट मिनट पर मैं किस पर विश्वास करूँ?"
बॉस के पूछने पर निशा ने कहा, "सर मनीष को ले जाइए. मेरे ज्वाइन करने से पहले वे ही तो आपके पर्सनल सैक्रेटरी थे."कहते हुए निशा ने अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया.
"गुड़ मॉर्निंग सर", कहते हुए मनीष ने केबिन में प्रवेश किया.
मनीष को इग्नोर करते हुए निशा केबिन से बाहर निकल गई न जाने कहाँ? शायद उसे मन के बंधनों से मुक्ति मिल गई थी.