मोहन की खुशी
मोहन की खुशी
मोहन ने खेती करके ही अपने बेटे अनुज को पढ़ाया लिखाया है और अब उसकी चाहत है कि वह किसी अच्छी कंपनी में नौकरी करे, ताकि उनकी दरिद्रता दूर हो सके। पर अनुज नौकरी करने के लिए तैयार नहीं है। वह अपने पिता से कहता है कि मैंने कृषि के क्षेत्र में पढ़ाई नौकरी करने के लिए नहीं की बल्कि अपनी खेती को ढंग से आगे बढ़ाने के लिए की है। मोहन उसे समझाता है कि खेती फायदे का सौदा नहीं है, यह तो एक जुआ है, बहुत मेहनत करने के बाद भी मुश्किल से घर का खर्च चल पाता है।
अनुज अपने पिता को समझाता है कि अब हम पारंपरिक तरीके से नहीं बल्कि व्यवसायिक रूप से खेती करेंगे जिसमें नए उपकरण, नई टेक्नोलॉजी ,अधिक उत्पादन देने वाले बीजों का प्रयोग करेंगे। अब तो सरकार भी बहुत सहायता कर रही है। आर्गेनिक खेती व हेल्दी फूडिंग के बढ़ते प्रचलन के कारण खेती लाभदायक सौदा बन गया है। अगले दिन अनुज ने अपने पिता के साथ खेत में काम किया तो उसे बहुत अच्छा लगा।
मिट्टी में सने अपने दोनों के हाथों को देखता हुआ अनुज बोला पापा अब आपको चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। हम दोनों मिलकर आधुनिक खेती के द्वारा इसी खेत से पहले से कई गुना फसल ले लेंगे। अब मोहन भी खुश था वह सोचने लगा कि अगर अनुज बाहर नौकरी करने जाता तो उसे उससे दूर रहना पड़ता और अगर उसके साथ चला जाता तो अपने खेत खलिहानों से दूर रहना पड़ता पर अब ना उसे अपने बेटे से दूर रहना पड़ेगा और ना ही अपने खेतों से। अब वो दोगुने उत्साह से काम कर रहा था। अनुज का चेहरा भी आत्मविश्वास से चमक रहा था।