मोहब्बत
मोहब्बत


तारीख 22/06/2016
मणिकर्णिका घाट वाराणसी
(घाट पर लाश जल रही है और उसके आस पास रिश्तेदार है और घाट के उपर की सीढ़ियों पर परिवार के कुछ लोग)
हां तो आप सब जो ये शरीर जलते हुए देख रहे है ना वो हमारा ही शरीर है।
हम कौन...?
तो जी हम है रुद्र...रुद्र गोड
और वो घाट के उपर की सीढ़ियों पर रोते रोते बेसुध हो गई है,वो है हमारी अर्द्धांगिनी या हमारी मंगेतर उमा। आप यही सोच रहे होंगे के उमा हमारी अर्द्धांगिनी और हमारी मंगेतर दोनों एक साथ कैसे हो सकती है,
तो भईया बात कुछ ऐसी है कि समाज के रीति रवाजों के हिसाब से वो अभी भी हमारी मंगेतर है मगर हम दोनों ने एक दूसरे को बहुत पहले ही अपना जीवनसाथी मान लिया था।
मैं और उमा दोनों बचपन के दोस्त थे। हम दोनों एक दूसरे से हर बात बताते थे और हमारा सारा बचपन साथ में बनारस की इन्हीं गलियों में गुज़रा। मैं और उमा दोनों एक ही क्लास में पढ़ते थे और हमारा कोचिंग भी एक ही था। एक दूसरे के साथ पढ़ते और खेलते हुए ही हम जवान भी हुए और हमें प्यार भी हुआ। एक दूसरे से बाद में हुआ पहले और भी लोगो से हुआ, वो कहते है ना कि सही राह पर चलने से पहले इंसान ज़रूर एक बार गलत राह पकड़ता है, और ना चाहते हुए भी ठोकर खाता है। तब जाकर उसको बुद्धि आती है।
तो भईया कुछ ऐसा ही हम दोनों के साथ भी हुआ।
एक दूसरे से प्यार का एहसास होने से पहले हम दोनों को भी किसी और से दिल तुड़वा चुके थे।
तारीख 17/07/2008
जब मैं अपनी सेना की नौकरी के लिए देहरादून और उमा अपनी आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली गई और हम एक दूसरे से दूर हुए तब जाकर हमे अपने प्यार का अहसास हुआ। एक दूसरे से दूर रह कर हमें एहसास हुआ के हम एक दूसरे को चाहने लगे है। कुछ साल बाद उसकी पढ़ाई पूरी हो गई और वो बनारस लौट आई और उसके कुछ महीनों बाद मैं भी अपनी ट्रेनिंग पूरी करके बनारस आया तो हम दोनों ने इसी मणिकर्णिका घाट पर मिलने का फैसला किया और इसी घाट पर एक दूसरे से अपने प्यार का इज़हार किया।
हमने अपने घरवालों को एक दूसरे के बारे में बताया तो पहले तो (स्वाभाविक तौर पर) गुस्सा हुए और अपनी असहमति जताई मगर फिर हम दोनों के ज़िद और मान मनौव्वल के बाद हमारे घरवाले भी इस रिश्ते के लिए मान गए।
जल्द ही हमारी सगाई भी हो गई और शादी की तारीख भी निकाल ली गई। सगाई के अगले दिन मुझे अपनी उमा को छोड़कर वापस ड्यूटी ज्वाइन करने जाना पड़ा। एक बार फिर हम दोनों जुदा हुए मगर इस बार हमेशा के लिए एक दूजे के होने का वादा करके। हम दूर तो थे मगर हमारे दिल एक दूसरे के पास थे। जब भी मुझे मौका मिलता तो मैं और उमा एक दूसरे से फोन पर बात कर लेते थे। जल्द ही हम हमेशा के लिए एक दूसरे के होने वाले थे क्योंकि हमारी शादी की तारीख नज़दीक आ रही थी और मुझे छुट्टी भी मिल चुकी थी। मगर शायद किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था।
तारीख 18/062016
आज से ठीक 15 दिन बाद मेरी शादी थी और कुछ दिनों बाद मेरा और मेरी उमा का जन्मदिन भी था। यूं तो उमा के हर जन्मदिन पर सबसे पहले मैं ही उसे फोन करके विश करता था मगर इस बार मैं ऐसा नहीं करना चाहता था। इसीलिए मैंने कुछ दिन से उमा से बात करनी बन्द कर दी थी। आज मैं वापस घर के लिए निकलने वाला था और मैंने ये बात उमा को नहीं बताई थी क्योंकि मैंने सोचा चलो उमा को सरप्राइज दूँगा, मगर जिस दिन मैं घर के लिए निकलने वाला था उसी रात कुछ आतंकवादियों ने हमारे कैंप पर हमला बोल दिया। अपने साथियों को बचाने और उन आतंकियों से लड़ते हुए कुछ गोलियां मुझे भी लग गई थी और अस्पताल ले जाते जाते मैंने दम तोड़ दिया।
मैंने सोचा था कि उमा को उसके जन्मदिन पर मैं अचानक से जाकर उसको सरप्राइज दूंगा और मैंने उसे सरप्राइज दिया भी लेकिन मेरी मौत का।
मैं उसके सामने गया तो मगर ज़िन्दा अपने पैरो पर नहीं चार कन्धों पर तिरंगे में लिपटे हुए...