दो कुल्हड़ चाय
दो कुल्हड़ चाय
हर रोज़ की तरह आज भी मैं काशी कैफे में बैठा हुआ था और हमेशा की तरह दो कुल्हड़ चाय का ऑर्डर दिया था। कुछ समय बाद मेरे सामने टेबल पर दो कुल्हड़ चाय आ गई थी। मैं उसमें से एक कुल्हड़ चाय पीने वाला था कि तभी मेरा ध्यान मेरे सामने वाली टेबल पर गया। जहां एक लड़का अपनी दोस्त से, उसके देर से आने से नाराज़ बैठा था और उसकी दोस्त उसे मनाने में लगी हुई थी।
उन्हें देख कर मुझे ऐसा लगा मानो जैसे मेरे पुराने ज़ख्म हरे हो गए हो, क्योंकि मैं भी उमा से कुछ इसी तरह से रूठ जाया करता था और वो भी मुझे कुछ इसी तरह मनाती थी। उन दोनों की नोकझोंक देख कर मुझे भी उमा की याद आ गई।
रूद्र: "हैलो उमा, कहां हो यार तुम?"
उमा:" बस 5 मिनट में पहुंच रही हूं। तुम कहां हो?"
रूद्र:" मैं पिछले एक घंटे से काशी कैफे पर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं। और तुम आधे घंटे से 5 मिनट में पहुंच रही हो। सच सच बताओ तुम कितनी देर में आ रही हो?"
उमा: "पक्का बस 5 मिनट और। तुम दो कुल्हड़ चाय मंगवा लो।
रूद्र;" हां, पहले तुम आओ तो मैं चाय भी मंगवा लूंगा।"
कुछ देर बाद उमा आ जाती है।
रूद्र: "आ गई तुम।"
उमा: "हां यार, क्या बताऊं रास्ते में इतना जाम लग गया था कि क्या बताऊं।"
रूद्र: "हां हां हर बार पूरे शहर का जाम तो तुम्हारे रास्ते में ही लगता है ना।"
उमा: "अच्छा बाबा माफ़ कर दो।"(ऐसा बोलकर उसके माथे को चूम लेती है।)
रूद्र: "क्या करती हो यार? पागल हो गई हो?"
उमा: "अब तुम गुस्सा हो जाते हो तो मैं क्या करूं?"
रूद्र: "ठीक है, जाओ माफ़ किया तुमको। आओ चाय पीते है।"
उमा: "माफ़ करना यार, मगर आज मैं तुम्हारे साथ चाय नहीं पी पाऊंगी।"
रूद्र: (आश्चर्य से)" लेकिन ऐसा क्यों? आज तक तो तुमने कभी चाय के लिए मना किया फिर आज क्या हो गया?"
उमा:" वो बात ऐसी है कि मेरे पिताजी का ट्रांसफर हो गया है इसलिए मुझे ये शहर छोड़कर जाना पड़ेगा। मैंने बस यही बताने के लिए तुम्हें बुलाया था।"
रूद्र: (उदासी और हड़बड़ाहट में)" लेकिन अब इस चाय का क्या होगा?"
उमा:" अरे तो तुम ही इसे पी जाओ ना, मैं सोचूंगी कि मैंने पी ली।"
रूद्र: "वो तो ठीक है लेकिन ये बताओ कि फिर कभी दोबारा मिलोगी या नहीं?"
उमा:" क्यों नहीं यार। इस शहर के बाद अगर किसी को सच्चे दिल से चाहा है तो वो तुम ही तो हो।"
(इतना बोलकर उमा रूद्र को गले लगा लेती है और वो दोनों गंगा आरती देखने चले जाते हैं)
गंगा आरती ख़त्म होने के बाद
उमा: "अच्छा रूद्र, तो अब मैं चलती हूं।"
रूद्र: "ठीक है। अपना ख़्याल रखना और मिलने आती रहना।"
कुछ महीनों तक रूद्र और उमा की फोन पर बात होती रहती हैं और इसी तरह वो दिन आ गया जब उमा रूद्र से मिलने आने वाली थी। वो दोनों उसी काशी कैफे में मिलने वाले थे।मगर शायद भगवान को उन दोनों का मिलना नहीं पसंद था क्योंकि उमा रूद्र से मिलने आदतन देरी से पहुंची और रूद्र उसका इंतजार कर रहा था। जैसे ही दोनों ने एक दूसरे को देखा तो दोनों खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। रूद्र के हाथों में चाय देखकर उमा खुशी में रूद्र से मिलने आगे बढ़ी और अचानक से एक तेज़ रफ़्तार कार ने उसे टक्कर मार दी और उमा ने अस्पताल ले जाते वक्त दम तोड़ दिया।
तब से ही रूद्र ने कसम खा ली थी कि वो कभी चाय नहीं पिएगा मगर,
वो आज भी उसी चाय की दुकान पर
रोज़ बैठ कर दो कुल्हड़ चाय मंगाता है;
एक खुद के लिए और दूसरा उमा के लिए
मगर उस कुल्हड़ को भी वो ही पी जाता है;!