मन्नत का तारा
मन्नत का तारा
आहहहहह ! माँ ! तुम थोड़ा आराम से क्यों नहीं करती हो ? हमेशा यूँ ही खींच-खींच के चोटी करती हो !
मैं आराम से ही करती हूं, तू पगली एक जगह ठीक से बैठती ही नहीं है ...(कमला ने अपनी बिटिया की चोटी बनाते हुए कहा)
अच्छा ये बता ये तेरे हाथों में क्या है ?
माँ, ये ए से एरोप्लेन है, मेरी टीचर ने बताया है।
क्या ! क्या है ये !अलेयोप्लेंन ?
अलेयोप्लेंन नही माँ, एरोप्लेन।
वो जो, तू आसमान में देख के बोलती है ना मन्नत का तारा, वो है ये....
वो मन्नत का तारा नहीं बल्कि एरोप्लेन है माँ।
कमला ने दुःखी होकर मन में कहा "अच्छाआआ !, तभी मैं सोचूँ मेरी कोई भी मन्नत पूरी क्यों नहीं होती।"
माँ ! आराम से ...
अच्छा माँ मुझे है ना बड़े हो के एरोप्लेन उड़ाने वाला बनना है। मैं बहुत पढ़ाई करूँगी फिर एक दिन तुझको तेरे मन्नत के तारे में दुनिया की सैर कराऊंगी।
और प्यारी सी चपला ने अपनी माँ के गले मे दोनों हाथ डाल झूलने लगी।
मगर बिटिया वो बनने के लिए तो बहुत पैसा लगेगा ना, और तेरी माँ कहा से लाएगी इतना पैसा ?
ये कह कमला अपनी फूलों की टोकरी सजाने लगी...अब बाजार जो जाना था ....इन फूलों को बेचने।
चंचल चपला कमला के गोद मे आके बैठ गयी और बोली ....
माँ तुम भी ना ! जो भी जीतना भी लगेगा क्या फर्क पड़ता है। तुम बस, अपनी पल्लू के कोने से वो पोटली खोलना और उतना मुझको दे देना। मुझे पता है मेरी माँ के पास एक खजाने की पोटली है ...
और खिलखिला के हँसने लगी।
फिर चपला बाहर को अपना एरोप्लेन उड़ाने को निकल गयी।
मगर कमला....
वह सुन्न सी रह गयी।
सोचने लगी अभी तो उसने स्कूल जाना शुरू किया है और इतने बड़े सपने है इसके। चपला ने मेरी पोटली को ही दुनियां समझ ली है, कितना अटूट विश्वास है इसको मेरे इस साड़ी के पल्लू में बंधी छोटी सी पोटली पे।
पर ये ना जानती, ये पल्लू में बंधी छोटी सी पोटली सिर्फ इसका और मेरा पेट भर सकती है सपने नहीं।
सूरज निकलने को था ... कमला अपनी टोकरी लिए बाजार की ओर निकल गई ...मगर वह कुछ खोई हुई सी थी ....
रह-रह रहकर बस यही सवाल उमड़ रहा था ...
मेरी चंचल मन सी चपला के सपनों को कैसे साकार करूँगी, कैसे मैं इस पोटली को उसके अनुसार खजाना बना पाऊंगी ..?
मन में मची इस उधेड़बुन से कमला कई दिनों तक परेशान ही रही।
मगर बदलते वक़्त के साथ वो ठान चुकी थी की अब वह अपनी गुड़िया के सपने को खुद के सपनों की तरह मरने नहीं देगी चाहे कुछ भी हो जाये ....मन्नत के तारे की वो कमान बनेगी ...
खुले आसमान की वो आजाद परिंदा बनेगी।।
