मंजरी

मंजरी

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मंजरी को शहर आकर बहुत अच्छा लग रहा था। अभी कुछ ही दिन पहले वो अपनी मौसी के साथ गाँव से शहर घूमने आ गयी थी। शहर की भागती दौड़ती चकाचौंध से भरी ज़िन्दगी मंजरी को लुभा रही थी। घर में मौसी -मौसा उनके चार बच्चे तीन लड़कियाँ और एक चौथा भाई जो अभी पाँच ही साल का था सभी लगभग आठ दस बारह साल के थे, मंजरी की उम्र भी बारह वर्ष ही थी। सभी बच्चे मिलकर ख़ूब मस्ती करते थे। मौसा मज़दूरी करते थे, मौसी भी चार पाँच घरों में सफ़ाई का काम करती थी। कुछ दिन तो मौसी -मौसा को मंजरी बहुत अच्छी लगी परन्तु अब मंजरी मौसा की आँखो को खटकने लगी। मौसी -मौसा अपने ही परिवार को मुश्किल से पाल रहे थे,अब ये मंजरी का खर्चा और बढ़ गया था। अब मौसी मंजरी को गाँव वापिस लौट जाने की सलाह देने लगी। लेकिन मंजरी गाँव जाने को बिलकुल भी तैयार नहीं थी।


एक दिन की बात है, मौसी की तबियत अच्छी नहीं थी उस दिन काम का बोझा भी ज़्यादा था,और आज तो मौसा भी ज़्यादा पीकर आये थे, घर में बहुत हंगामा हुआ, मौसी बोल रही थी एक तो घर में वैसे ही खाने वाले ज़्यादा और कमाने वाले कम ऊपर से तुम शराब पीकर पैसा उड़ा रहे हो, घर में तो ख़र्चा देते वक़्त हाथ तंगी है और तुम्हारी अय्याशी के लिये कोई तंगी नहीं ...इतने में मौसी की नज़र मंजरी पर पड़ी और एक तू इतने दिन से मुफ़्त की रोटियाँ तोड़ रही है, यहाँ कोई टकसाल नहीं लगी अगर रहना है तो मेहनत करो मज़दूरी करो या फिर गाँव वापिस जाओ। आज मंजरी के कानों को मौसी की बात चीर रही थी। मंजरी गाँव वापिस जाकर क्या करती ...थोड़ा सा खेत का टुकड़ा ज़रूर है गाँव में धान, गेहूँ की कोई कमी नहीं थी पेट तो किसी तरह भर ही जाता है, लेकिन पेट के अलावा और भी ज़रूरतें होती हैं जिनके लिए पैसे की आवश्यकता होती है। अच्छे कपड़े, टेलेविजन ,फ़्रिंज इत्यादि सभी देखकर मंजरी की इच्छा होती थी की गाँव में उसके घर में भी ये सब कुछ हो, वो मौसी से बोली मुझे कुछ काम दिलवा दो, मैं कुछ पैसे कमा कर गाँव ले जाऊँगी और टी॰वी॰ ,फ्रिज ख़रीदूँगी। मौसी को हँसी आ गयी बोली बेटा काम करना इतना आसान नहीं है, चल फिर भी तू कह रही है तो कल से तुझे काम पर लगवाती हूँ आज ही कोई कह रहा था, सुबह आठ बजे से रात आठ बजे तक उन्हीं के घर रहना होगा, खाना पीना वही होगा रात को घर वापिस .....

मंजरी अगले ही दिन काम पर लग गयी, चार हज़ार रुपया एक महीना तय हुआ था अच्छा काम मिलने पर दो महीने बाद पैसे बढ़ा देने की बात हुई।

मंजरी पूरे दिल से उस घर में सुबह से शाम करती, सब सुविधा थी मंजरी को मंजरी ख़ुश थी, काम करते -करते मंजरी को छः महीने बीत गये थे, मंजरी हर महीने के पैसे अपनी मौसी को दे देती थी मौसी भी यह कहती की तेरे पैसे मेरे पास सुरक्षित पड़े हैं। अब छः महीने हो गये थे मंजरी ने मौसी से कहा मौसी वो थोड़े दिन के लिए गाँव जाना चाहती है , उसके जो पैसे हैं वो गाँव लेकर जायेगी और घर पर देगी ....

मौसी बोली कौन से पैसे घर का किराया और ख़र्चे और तू भी तो सुबह का नाश्ता और कभी -कभी तू रात का खाना भी तो खाती है।

मंजरी का मन बहुत उदास हो रहा था, अब उसने सोच लिया था कि वो अगले महीने सिर्फ़ एक हज़ार रुपया ही मौसी को देगी बाक़ी गाँव जाने के लिये जमा करेगी।

अगले महीने मंजरी ने ऐसा ही किया, मौसी -मौसा में बहुत कोशिश करी पैसे निकलवाने की लेकिन इस बार मंजरी ने भी जिद्द ठानी थी। चार महीने बीत गये थे मौसी -मौसा की पैसे देने वाली मुर्ग़ी मंजरी ने भी अब पैसे देने बंद कर दिए थे।

अब तो मौसी मानों ऐसे हो गयी जैसे मंजरी उसकी बहन की बेटी ही ना हो, कहने लगी यहाँ रहना है तो पाँच हज़ार किराया देना होगा, मंजरी अब पूरी तरह समझ गयी थी की जब तक पैसा हो जेब मैं कोई पूछता है, वरना धक्का मार निकालते हैं।

अकेली लड़की को कोई किराये पर मकान देने को भी तैयार नहीं था, उधर से मौसी -मौसा के आँख में चुभने लगी थी मंजरी। उसके गाँव में फ़ोन करके बहुत कोशिश की गयी की मंजरी महीने में जो कमाती है, वो उन्हें देती रहे तो ...मंजरी उनके घर रह सकती है वरना मंजरी अपना अलग ठिकाना करे ,मंजरी को सारे महीने की कमायी देनी मंज़ूर ना थी क्योंकि वो सारे दिन तो काम के घर में रहती थी खाना खाती थी फिर किस बात के पैसे दे मौसी को और मौसी भी माँगने पर कहती थी पैसे ख़र्च हो गये। नहीं मंजरी अब अपनी मेहनत की कमायी नहीं देगी उसके भी कुछ अरमान हैं जिन्हें वो पूरा करना चाहती थी।

इधर मौसी ने मंजरी को उसके गाँव भेजने की पूरी तैयारी कर ली थी। मंजरी उदास थी, पर उसे यक़ीन था वो फिर शहर लौट कर आयेगी और अपने सपने सच करेगी ..... क्योंकि वो जान चुकी थी की मेहनत से सब कुछ मिलता है।


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