Neeraj pal

Inspirational

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मन पर अधिकार

मन पर अधिकार

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एक फकीर थे। बहुत अच्छे महात्मा थे। बहुत श्रद्धा तथा प्रेम के साथ नित्य प्रति साधना किया करते थे। एक दिन बहुत व्यस्त रहने से भी शाम की पूजा करना भूल गए ।रात को दो- ढाई बजे जगे तो ने याद आया कि शाम को साधना नहीं की। बड़े दुखी हुए। सोचा दुनिया के सारे काम किए परंतु जीवन का परम आवश्यक काम करना हम भूल गए ।उन्हें इतना पश्चाताप हुआ कि रोने लगे। विलाप करते- करते उनका वक्षस्थल आंसुओं से भीग गया। रोते-रोते लगभग चार बजे उनके कानों में आवाज आई कि शाम की साधना तो भूल ही गए थे, अब प्रातःकी मत भूल जाना। उठो और नहा- धोकर साधना करो ।

महात्मा जी तैयार हुए और खूब तन्मयता से ध्यान किया। ध्यान के पश्चात उन्होंने सोचा कि भाई वह कौन था जिसने हमें पूजा करने को चेताया ,नहीं तो हम प्रातः काल की साधना भी भूल जाते। उनके सामने वह आकर खड़ा हो गया ।महात्मा ने पूछा -"तुम कौन हो?" वह बोला कि "मैं शैतान हूँ।" महात्मा ने फिर पूछा कि "तुम्हारी ड्यूटी क्या है ?"उसने कहा कि हमारी ड्यूटी है कि "जीवो को माया में धकेले रहना ।ऐसी सलाह देना कि मनुष्य इसी नरक में फँसा रहे।" महात्मा बोले कि "लेकिन तुमने तो हमें पूजा करने की प्रेरणा दी थी। यह हमारी समझ में नहीं आया।"

उसने कहा कि तुम रोते-रोते भगवान के इतने समीप पहुँच गए थे कि तुम्हें भगवान के दर्शन होने ही वाले थे ।ऐसी अवस्था में हम तुम्हें कोई और प्रलोभन देते तो तुम रोना नहीं छोड़ते। उस समय केवल एक ही उपाय ऐसा था जिसे कि तुम मान सकते थे। इसलिए तुम्हें पूजा करने के लिए कहा गया और तुम्हें भगवान से नहीं मिलने दिया गया।

यह सभी जानते हैं कि मन पर अधिकार करना बहुत कठिन कार्य है ।मनुष्य अपने सामर्थ्य से अपने मन को काबू नहीं कर सकता। इसके लिए उसे किसी सत्पुरुष के सत्संग में बैठकर, मनुष्य मन पर आसानी से अपना अधिकार कर सकता है।

"योगश्चिक्त वृत्ति निरोध:।"


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