मिट्टी के खिलौने और प्यारा बचप
मिट्टी के खिलौने और प्यारा बचप
बचपन में मुझे मिट्टी के खिलौने बनाने का बहुत शौक था। जब भी गर्मी की छुट्टियां होती मैं मिट्टी के खिलौने बनाती थी। छोटी छोटी नन्हीं उंगलियों से छोटे-छोटे मिट्टी के बर्तन, चूल्हा, चकला - बेलन, गिलास, कटोरी, चम्मच, चाय के कप- प्लेट और ना जाने क्या - क्या बनाती थी! फिर नज़ाकत से उन्हें धूप में सुखाती थी।
पर मेरी कुछ सहेलियां इन खिलौनों को हेय दृष्टि से देखती थीं। क्योंकि उनकी नजर में मिट्टी के खिलौनों से सिर्फ गरीबों के बच्चे ही खेलते थे। मेरे पास प्लास्टिक और स्टील के खिलौनों के भी एक - एक सेट थे, जब मैं उनसे खेलती तो वही सहेलियां मेरे आगे पीछे मंडराती थीं।
मुझे समझ नहीं आता कि खिलौने तो वही है पर यह मिट्टी के खिलौनों से खेलना क्यों पसंद नहीं करती। एक दिन मैंने अपनी एक सहेली से पूछा कि तुम मिट्टी के खिलौनों से क्यों नहीं खेलती तो उसने जवाब दिया कि मेरी मां मना करती है। मैंने कारण पूछा तो उसने कहा कि "मेरे कामवाली बाई की बच्ची मिट्टी के खिलौनों से खेलती है, तो मेरी मां कहती हैं कि मिट्टी के खिलौने बनाकर सिर्फ वही गरीब बच्चे खेलते हैं, जो प्लास्टिक के और स्टील के खिलौने नहीं खरीद सकते।"
मैंने उसे कहा कि "तुझे मिट्टी के खिलौने बनाने में मजा नहीं आता ? "
उसने कहा " बहुत मजा आता है पर मेरी मां मारेगी, वह कहती है कि मिट्टी से हाथ खराब हो जाते हैं और बीमारियां होती हैं। क्योंकि मिट्टी में बीमारियों के कीटाणु रहते हैं"।
दोस्तों ये बात सन 1992 की है। आज मुझे यह सोचकर हंसी आती है कि बचपन में जिन मिट्टी के बर्तनों को हेय दृष्टि से देखा करते थे, आज वही मिट्टी के बर्तन स्टील के बर्तनों से भी महंगे बिकते हैं। अमेज़न पर 'क्ले पॉट' के नाम से सर्च कीजिए कई ऑप्शन आ जाएंगे। यहां तक की ऑर्गेनिक मिट्टी से बने बर्तन और महंगे बिकते हैं। और इनमें बने खाने का स्वाद ही कुछ और होता हैं।
मज़े कि बात यह है कि कुछ दिनों पहले मेरे बचपन की वही सहेली मुझे मॉल में मिली। और वह मिट्टी की कढ़ाई तलाश रही थी। बोली कि "बड़ा स्वादिष्ट खाना बनता है यार मिट्टी के बर्तनों में"!!
मैंने व्यंग्य किया "तेरी मम्मी डांटेंगी"।
तो जोर से हंस कर बोली "वो भी यही मिट्टी के बर्तन इस्तेमाल करती हैं।"
और हम दोनों सहेलियां ठहाका लगाकर हंस पड़ीं।
