बचपन की आस
बचपन की आस
"मम्मा मम्मा देखो मैंने गमले में क्या लगाया है ?"
पांच साल की नन्हीं पीहू ने कहा तो मां देखने गई।
कितनी मासूमियत से उसने टॉफी बो दी थी।
"इसमें ढेर सारी टॉफियां लगेंगी फिर मैं और मेरे दोस्त खाएंगे"!
मां ने भी उसकी हां में हां मिलाते हुए हामी भर दी।
अगले दिन सुबह उसके उठने से पहले मां ने उस गमले में पहले से उगे हुए पौधे की हर टहनी पर एक एक टॉफी टेप की मदद से लगा दी।और वह एक टॉफियों से भरा पौधा बन गया।
अगले दिन पीहू जब सोकर उठी तो खुशी से फूली ना समाई।
"देखो मां... मेरे पौधे में टॉफियां उग गईं!! मैं अभी दोस्तों को बुला कर लाती हूं !"
उसकी खुशी देख उसके पिता बोले -"तुमने झूठी आस क्यों बंधाई?"
मां ने जवाब दिया - क्योंकि आस ही जीवन का आधार है। इंसान कोई भी काम बगैर किसी आशा के नहीं करता....फिर ये तो नन्हीं बच्ची है.....आशा और ऊर्जा से भरपूर...बड़ी होगी तो अपने आप ही जान जाएगी।
पर आज जो इसका आत्मविश्वास बढ़ा है ना वो जीवन भर इसके साथ रहेगा।