Vidya Tripathi

Tragedy

4.0  

Vidya Tripathi

Tragedy

महत्वाकांक्षा  या परिवार

महत्वाकांक्षा  या परिवार

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झमाझम बारिश के बीच ऊंची इमारत में खिड़की के बाहर देखते हुए ,अर्चना गरम-गरम कॉफी की चुस्कियां ले रही थी। कि अचानक उसकी नजर नीचे रास्ते पर जाते हुए एक पति पत्नी और उसके लगभग 2 साल के बच्चे पर पड़ी ।तीनों ही निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के लग रहे थे। पर उनकी खुशियां आज अर्चना की खुशियां से काफी ज्यादा थी ।माता पिता अपने बच्चे में ही खोए हुए थे ।कभी बच्चे को गुदगुदाते तो कभी पिता कंधे पर उसे बैठा लेता । उनकी खुशियों को देख अर्चना के आंखों के कोर अचानक ही भीग गए ।अर्चना के दिमाग में बारिश की बूंदों के शोर से कहीं ज्यादा उसकी आत्मा चित्कार रही थी,और अचानक ही धीरे-धीरे एक चित्रपट की तरह पिछली सारी बातें याद आने लगी।


अर्चना एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती थी ।सुधीर भी उसे वही मिला था । दोनों सहकर्मी थे दोनों जवान थे, कब आंखें चार हुई और कब प्रेम हो गया पता ही नहीं चला और इसी जोश में दोनों ने विवाह करने का भी निर्णय ले लिया।

 सुधीर जहां सुलझा हुआ और एक पारिवारिक किस्म का इंसान था ।अर्चना अपने करियर की तरफ उन्मुख और समय के साथ-साथ आगे बढ़ने वाली महिलाओं में से थी। अर्चना और सुधीर के वैवाहिक जीवन के 1 साल बीत गए । रिश्तेदार पूछने लग गए कि उनके घर नन्हा मेहमान कब आएगा। सुधीर तो खुश होता पर अर्चना को कहीं न कहीं बच्चा उसकी पदोन्नति में एक रुकावट की तरह ही दिखता था ।अतः इन बातों को हमेशा ही नजरअंदाज कर सुधीर को कहती अभी तो शादी केेेेेे कुछ ही दिन हुए हैं । अपनी जिंदगी जी ले पहले ।

 धीरे-धीरे समय बीतता गया शादी के 5 साल बीत गए । पर जब जब सुधीर अर्चना सेेे बच्चे की बात करता अर्चना हमेशा की तरह नजरअंदाज कर देेेेते और को ना कोई बहाना बना देती ।

एक दिन सुधीर नेे गुस्से में कहां "अर्चना मुझेे लगता नहीं है कि तुम्हें बच्चे की जरूरत है "।

अर्चना ने गुस्से से तिलमिलाते हुए कहा "तुम्हें मेरी स्वतंत्रता से परेशानी हो रही है क्या?

"तुम्हें क्या फर्क पड़ता है ।बच्चा तो मुझे पैदा करना है। तुमसे ऐसे ही रहोगे स्वतंत्र हमेशा मैं फंस जाऊंगी ।मुझे बच्चे की जरूरत नहीं है।"

 सुधीर ने गुस्से में कहा "अर्चना बच्चा कोई बंधन नहीं होता है ।वह हमारी ही अगली पीढ़ी होती है । किसने कहा है कि तुम्हें अकेले बच्चा पालना है मैं हूं ना तुम्हारे साथ ।"

भगवान की मंशा होती है चीजें रुकती और सुधीर और अर्चना के जीवन में चेरी नाम की एक सुंदर सी परी आई ।उसका शरीर रुई के फाहे की तरह नरम था और मोटी- मोटी आंखें मानो सब से बात करनाा चाहती थी ।

चेरी के जन्म लेने के बाद से ही, अर्चना ने घर से ही अपने काम को करना शुरू कर दियाा। वह घर पर भी अपने काम में इतनी मसरूफ रहती कि चेरी को उसकी नौकरानी ही ज्यादातर संभालती थी ।

धीरे-धीरे 3 महीने बीत गए ।अब अर्चना को घर पर रहना दूभर लगने लगा। उसने एक दिन सुधीर को चेरी को डे केयर स्कूल में डालने और खुद के ऑफिस ज्वाइन करने कीबात कही । सुधीर ने ठंड केेेेे मौसम का हवाला देकर उसे ऑफिस ज्वाइन नहीं करने की बात कही ।पर अर्चना नहीं मानी उसने चेरी को डे -केयर स्कूल में डाल दिया और खुद ऑफिस ज्वाइन कर लिया ।

पहली ठंड बच्चों को और बूढ़ोंं को बहुत परेशान करती है। चेरी भी ठंड सह नहीं पाई और उसे निमोनिया हो गया ।अर्चना ने महंगेेेेेे से महंगे अस्पताल में दाखिल करवाया पर चेरी बच न सकी।

सुधीर से अलग हुए अर्चना केेेे 7 साल बीत चुके ।  आज अर्चना एक ऐसे मुकाम पर है कि वह जो चाहे खरीद सकती है । पर शायद उसमें सुकून को कब की तिलांजलि दे दी है।


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