Vidya Tripathi

Tragedy

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Vidya Tripathi

Tragedy

इंतजार

इंतजार

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आज आने वाले हैं यह .....

खाना तो बन चुका है, कपड़े मैंने तह लगाकर रख दिए हैं। देखा जाए तो कुछ काम नहीं है, बस इंतजार है। उनके आने का.....यह वैसा ही इंतजार है जो आज से 15 साल पहले मैं उनका किया करती थी। नई-नई शादी हुई थी हमारी जब वह शाम को आते थे, मैं ऐसे ही तैयार होकर उनका इंतजार करती थी।

( कुछ देर मौन होकर सोचते हुए) खैर छोड़ो उन बातों को। मैंने उनकी पसंद की सारी चीजें बनाई है ।मुझे पता है वह उसे बहुत ही शौक से खाएंगे और मेरी तारीफ हो सकता है.......

मैं भी ना चलो देखो बाल सही से सँवारे गए हैं कि नहीं (आईने में देखते हुए) अरे हां आज बहुत अच्छी लग रही हो । यह सब सोचते हुए और खुद को आईने में देखते हुए अचानक ही आईना रूमा को 15 साल पीछे खींचकर ले गई। शादी के दूसरे दिन अनायास ही पति के हाथ का एक तमाचा उसके मुंह पर पड़ा था। उसके बाद पति ने उससे बहुत माफी मांगी उसे पैर पर गिड़गिड़ा कर रोया था। कहा था तुम अगर नहीं मानी तो मैं आत्महत्या कर लूंगा। रूमा ने सोचा गलती हो गई। अपनी मां को भी तो उसने ऐसे ही पीटते देखा था। पर पिता को कभी माफी मांगते नहीं देखा था, तो उसने सोचा शायद यही स्वर्ग है उसका। पर वह गलती नहीं थी, वह गलतियों की शुरुआत थी। जिसे आज 15 साल बाद भी रूमा झेल रही है।


 पूरे 1 साल बाद रोहन आ रहा है। रूमा का वह दर्द वैसे ही लुप्त हो चुका है जैसे कि एक प्रसूति को उसके प्रसव की पीड़ा का होता है। वह भूल जाती है या एहसास करना ही नहीं चाहती तभी तो दूसरा जीवन सिंचित करती है।

आज रूम फिर से तैयार है। उत्साह के साथ पुरानी बातों को भुला के शायद इस बार कुछ परिवर्तन होगा रोहन के पेशाचिक प्रवृत्ति में। दुबई में नौकरी लगने के बाद रोहन आज पूरे 1 साल बाद आ रहा है। तब रोमा को लगता था कि अब वह कुछ दिन पीड़ा मुक्त रहेगी कुछ शांति से रहेगी पर अब वह पीड़ा तड़प में बदल गई थी कब आए और अपने प्रेम का मनुहार करेगी वह।


दरवाजे पर घंटी बजी लगभग दौड़ती सी दरवाजा खोला रूमा ने। सामने रोहन खड़ा था मुस्कुराहट के साथ। रूमा को उसकी मुस्कुराहट से लगा कि शायद हमारे बिछड़ने के दिनों में यह भी इतना ही तड़पा है, शायद बदल गया है। उसकी मुस्कुराहट के अपनत्व ने रूमा को सब कुछ भूल जाने को कहा। रोहन के अंदर आने पर जल्दी से एक गिलास ठंडे पानी का रोहन के सामने बढ़ाया। अचानक कहां से एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर आया। रूमा को समझ ही नहीं आया उसने खुद को टूटे हुए कांच के गिलास के साथ जमीन पर पड़ा हुआ पाया।

रोहन बोलते जा रहा था, गिलास का पानी दे रही हो पर गिलास के बाहर जो पानी के छींटे पड़ी हुई है उसे कौन तुम्हारी मां आकर साफ करेगी। आज भी तुम उतनी ही जाहिल -गंवार हो जितना पहले थी। मैं आया ही क्यों....!!

 वह बोले जा रहा था....बोले जा रहा था.....


रूमा को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। उसे अपना भविष्य फिर से दिशा विहीन और अंधकार में दिख रहा था।


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