मेरी पहचान !
मेरी पहचान !
आज सुबह से दिल किसी काम में नहीं लग रहा था बार बार गालों पे गर्म आंसू लुढ़क जाते। कोई कितना रोयेगा तो थक के उठी बाथरूम में जा मुँह हाथ धोया और एक कप चाय ले बालकनी में बैठ गई..। ""हलकी हलकी बारिश हो रही थी, नज़रे दौड़ाई तो सामने की बालकनी में एक कम उम्र जोड़ा बातें कर रहे थे ""।लड़का कुछ कहता और हाथों में बारिश का पानी ले लड़की के चेहरे पे फैंक देता और लड़की खिलखिला उठती।
जाने क्यूँ मुझे अच्छा नहीं लगा एक जलन सी होने लगी और वहाँ से उठ कमरे में आ गई। ऐसी तो ना थी मैं उन दोनों को तो जानती भी नहीं फिर क्यूँ ऐसी भावना आयी दिल में.., "अगर मैं ख़ुश नहीं तो उनको क्या "? मैंने तो कभी महसूस ही नहीं किया था कैसा होता है पति का प्यार। कैसे दिल के तार झनझनाते है... जब आपका प्यार आपके पास होता है।
सामने रोहित की तस्वीर टंगी थी मन में एक घृणा का भाव उठा और मैंने अपना मुँह फेर लिया। बीस साल की भी नहीं हुई थी जब पापा ने रोहित से शादी कर दी। "किसी शादी में देखा था मुझे रोहित की माँ रीमा जी ने पसंद आ गई और हो गई शादी पर किसी ने पूछा रोहित को पसंद थी या नहीं "।
पहली रात ही बता दिया रोहित ने की मैं उनकी पसंद नहीं..। अपने भाग्य पे रोती रह गई थी मैं और कर भी क्या सकती थी?
जब पति का साथ नहीं देता तो ससुराल में भी इज़्ज़त नहीं रहती। नौकरानी बन के रह गई थी सारा काम भी करो और गालियाँ भी सुनो। चुपचाप सहती रही जब तक मम्मीजी थी.." जब उनकी मौत हुई मेरी आजादी हुई थी उस दिन" रोहित से बस औपचारिक बात होती हफ्ते में सिर्फ एक दिन के लिये आते संडे को बाकि दिन कहाँ रहते ना मैंने पूछा ना उन्होंने बताया था कभी। गुमनाम बन रह गई थी मैं ना कोई वजूद ना पहचाना।
अगले दिन अख़बार लेने दरवाजा खोला तो पड़ोसन नेहा अपनी बच्ची अवनि के साथ लिफ्ट के पास खड़ी दिखी थोड़ी परेशान दिखी तो मैंने पूछ लिया।
"क्या बात है परेशान लग रही हो नेहा?" "अरे ! भाभी ये सुमन कामवाली अभी तक नहीं आयी। अब अवनि को ना साथ ले जा सकती हूँ ना छोड़ सकती हूँ। रोज़ ऐसा ही करती है आज मेरी मीटिंग है बताओ मैं क्या करू?" रोआँसी हो नेहा ने कहा।
दो मिनट मैंने नेहा और अवनि को देखा और नेहा से कहा "तुम मेरे पास छोड़ दो...। " चौंक के नेहा ने मुझे देखा "आप परेशान होंगे भाभी "।
"अरे नहीं दिन भर बोर होती हूँ।रोहित भी सिर्फ संडे को होते है। तुम ऐसा करो अवनि के खाने का रूटीन बता दो और मेरे पास छोड़ दो।'
मेरे पास खुशी खुशी अविनि को छोड़ नेहा ऑफिस चली गई। जब सुमन आयी तो मेरे घर पे ही आ अवनि के साथ खेलने लगी।
"अवनि के साथ मैं भी बच्ची बन गई थी आज", ना जाने कितने दिनो बाद मुस्कुराई थी..., खुल के हँसी थी...। शाम को नेहा आयी और मुझे गले लगा धन्यवाद दिया, और अविनि के जाते ही एक उदासी सी छा गई वापस।
" ऐसे नहीं जी सकती मैं...और किसके लिये खुद को सजा दे रही हूँ, इस तरह घुट घुट के जी रही हूँ... उस रोहित के लिये जिसने मुझे पलट के देखा भी नहीं आज तक " एक फैसला ले लिया मैंने आज खुद के लिये अपने स्वाभिमान के लिए..., और सालों बाद सुकून की नींद सो गई।
अगले दिन मेरे घर के बाहर एक बोर्ड लगा था... ""आस्था आंटी सेकंड होम "" मैंने यानी आस्था ने डे केयर की शुरुआत कर दी सुमन को अपने घर पे काम दे दिया। अब मैं फिर से जीना सीख गई थी, खुल के हंसती, बच्चों के साथ बच्ची बन जाती। एक बार फिर से जीना सीख लिया था मैंने | ""इस बार खुद के लिये एक नई पहचान मिली थी मुझे ""।अब नहीं खोने दे सकती थी इस पहचान से मिली अपनी खुशियों को...।
