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Bhairudas Vaishnav

Classics Inspirational

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Bhairudas Vaishnav

Classics Inspirational

मेरी जिंदगी

मेरी जिंदगी

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था मैं उस दिन अकेला बैठा अपनी क्लास मे, दिमाग में बहुत-सी बातें आई-गई। कौन साथ हैं?, कौन अपना? कौन पराया। जब मे इन सब बातों को सोच रहा था, तभी मेरे को ठण्डी हवा का अहसास हुआ और मेरा ध्यान खिड़की की ओर गया। तब मैंने खिड़की के बाहर पेड़ों को नाचते देखा, आसमान को हसते देखा। 

वो भी मेरी तरह अकेले थे फर्क सिर्फ इतना था वो अकेले हो कर भी खुश थे और मैं दु:खी ।

उसके बाद मैंने अपनी दास्तान (पुरानी बातें) उनकों (प्रकति) सुनाई । तब उनकी आंखें भी भर आई। 

बचपन से ही देखते आ रहा लोगों के बदलते रंग। जब मेरे को रहना था बच्चों के साथ तब में था उन लोगों के बीच। बात तो तब बढ़ गई जब मैं 5 वर्ष का था और अपने पिता की मौत का पता चला। लगा नहीं तब की अपने भी इतना बदल जायेगे। सब ने अच्छे से बातचीत करना बन्द कर दिया मेरी माँ से। जैसे जैसे समय बीतने लगा तब मेरा एक दोस्त बना। जो था मेरे से छोटा लेकिन सबसे करीब था। जब खुदा को हमारी दोस्ती से जलन हुई तो उन्होंने बुला लिया मेरे सबसे प्यारे दोस्त को अपने पास। और फिर से कर दिया मेरे को अकेला। तब से मैंने सोच लिया था अकेले रहने का, उसके बाद ना मैंने किसी को अपने करीब आने दिया और ना मैं किसी के पास गया। अब तो डर इस बात का था क्या पता कब कोई साथ छोड़ जाये, कब खुदा फिर से मेरे किसी करीबी को छिन ले। तब से रह गये अकेले। 

अब जब से रहे अकेले पुरानी बातें सोने नहीं दे रहीं थी। तब 11 वर्ष का हो गया उस वक़्त से लेके अब तक चैन (आराम) से सोया नहीं। ना रात को नींद आती अब ना अब भूल पाता पुरानी बातें। 

इतना सुनकर आसमान बोला - जो हुआ वो अतीत था, जो हो रहा है वो वर्तमान, जीओ उसको खुल के। अकेले कहा हो तुम हम सब हैं तुम्हारे साथ, जब लगे तुम्हें अकेला आ जाना हमारे पास। ये प्रकृति तुम्हारी दोस्त ही तो है। इसके साथ भी खेलो, बाते करो मेरे प्यारे वीर।

सुनकर इतना मेरे आंखों से आंसू ना रूके। इस मतलबी दुनिया से ज्यादा प्रकति ने समझा मुझको। मैंने सोचा था अकेला हूं मैं लेकिन तुम सब (प्रकति) ने ये अहसास कराया कि कोई अकेला नहीं होता है बस वो अपने आप को लोगों से दूर कर देते हैं। 

हीर भी कहती वीर से - 

हीर को रांझा मिला, रांझे को हीर। 

वीर ने जब खोया सब, तब मिली उसको हीर।। 

प्रकति को जब समझो, तब बन जाती तुम्हारी दोस्त। 

जब भी लगे अकेला आ जाना, प्रकति के पास।।


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