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PIYUSH RAJ

Tragedy

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PIYUSH RAJ

Tragedy

मेरी अधूरी मोहब्बत

मेरी अधूरी मोहब्बत

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छठी कक्षा पास करके मैं सातवीं क्लास में गया, मैं अपने शहर के ही एक प्राइवेट इंग्लिश स्कूल में पढ़ता था जो कि मेरे घर से करीब 1.5 किलोमीटर की दूरी पर था। आज मेरे 7th क्लास का पहला दिन था तो मैं जल्दी-जल्दी सुबह उठकर अच्छे से तैयार हुआ और स्कूल के लिए निकल पड़ा, मुझे स्कूल छोड़ने मेरे पापा जाते थे बाइक से, तो आज पहला दिन होने के कारण में थोड़ा जल्दी पहुंच गया, स्कूल में बहुत से नए बच्चे दिख रहे थे जिन्होंने इस साल एडमिशन लिया था।


"गुड मॉर्निंग गार्ड अंकल क्लास 7-A कहां है..." मैंने गार्ड अंकल से अपने नए क्लासरूम

का पता पूछा।

"वह फर्स्ट फ्लोर में लास्ट रूम।"

गार्ड अंकल ने बताया।

"थैंक्यू अंकल।"


और मैं अपने क्लास की और चल पड़ा, जैसे ही मैंने क्लास में एंट्री मारी और अपना बैग बेंच पर रखने के लिए मुड़ा तो देखा एक लड़की जो कि बहुत ही सुंदर देखने में थी, बड़ी-बड़ी आंखें, काले भूरे बाल, आंखों में चश्मा पहनी हुई, पूरी नई यूनिफॉर्म में क्लास में अकेली बैठी थी, इससे पहले मैंने उसे स्कूल में नहीं देखा था, वह शायद इसी साल एडमिशन लेकर 7th क्लास में आई थी, मैं अपना बैग उतारने के बजाय उसी को देखने लगा, उसने भी मुझे देखा पर कुछ कहा नहीं, मैं भी अपना बैग रखकर बैठ गया अपने बेंच पर।


मैंने सोचा कि उससे पूछूं उसका नाम पर मुझे हिम्मत नहीं हो रही थी, थोड़ी देर बाद मेरे क्लासमेट और फ्रेंड आने लगे, 8:20 बजे बेल बजी तो सभी प्रेयर के लिए क्लास रूम के बाहर बरामदे में खड़े हो गए, वह लड़की भी मेरे बगल में ही खड़ी थी। आज मेरा प्रेयर में मन नहीं लग रहा था, मैं बस उसी को देखे जा रहा था। प्रेयर खत्म होने के बाद हम सभी फिर क्लास में आ गए।


7th क्लास में हमारे क्लास टीचर हिंदी के सुबोध सर थे तो हमारी पहली पीरियड हिंदी की होती थी, पहला ही दिन मेरा मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था, मैं

बस उसी लड़की को देखे जा रहा था।


मेरे साथ मेरे बेंच पर मेरे दो दोस्त नयन और विकास भी बैठा था, वह भी उसी लड़की को देख रहा था, हमारे क्लास में कोई भी नयी लड़की आती तो सभी लड़के उसे घूर घूर के देखते थे।


"अबे कौन है बे यह लड़की।" नयन ने मुझसे पूछा।

"अबे नया नया एडमिशन करा कर आई है देखने में भी बहुत सुंदर है।" मैंने कहा।

"हां भाई लड़की तो मस्त है।" विकास ने कहा।

"तब तो यह तुम दोनों की भाभी हुई।" नयन हंसते हुए बोला।

"कैसी भाभी बे भाभी तुम लोग की होगी मेरी नहीं।" मैंने कहा।

"क्या तुम लोग ख्याली पुलाव पका रहे हो बे चेहरा देखे हो अपना आईना में, इसको तो हम ही पटाएंगे।" विकास ने कहा।

हम तीनों इसी बात को लेकर झगड़ रहे थे कि 'ये तेरी भाभी नहीं तेरी भाभी।'


पर यहां तो हमें उसका नाम तक पता नहीं था, पहला दिन होने के कारण हम लोगों का उस दिन अटेंडेंस नहीं हुआ। उस दिन आठों पीरियड मैं उसी लड़की को देखता रहा, जब छुट्टी हुई तो मैंने देखा वह लड़की एक कार में बैठकर घर जा रही थी। मैं समझ गया कि वह किसी अमीर बाप की बेटी है, मैं भी अपने पापा के साथ स्प्लेंडर मोटरसाइकिल में बैठकर जाने लगा, घर पहुंचने के बाद भी मैं उसी के बारे में सोचता रहा। उसी का चेहरा बार-बार मेरी आंखो में आ रहा था, उस रात मैं अच्छे से सो नहीं पाया, मुझे तो बस सुबह स्कूल जाने की जल्दी थी।


अगले दिन स्कूल जाने के लिए मैं जल्दी जल्दी तैयार होकर समय से पहले ही पापा को बोलने लगा, "पापा चलिए ना स्कूल छोड़ दीजिएगा।"

"इतना जल्दी क्या है अभी टाइम है स्कूल जाने में।" पापा ने कहा।

मैं पापा से जिद करने लगा कि वह मुझे स्कूल छोड़ दें, तो पापा ने मुझे स्कूल छोड़ दिया। दूसरे दिन भी मैं जल्दी पहुंच गया था स्कूल, पर वह लड़की क्लास में मुझे नहीं दिखी। मैं उसका इंतजार करने लगा, मेरे आने के करीब 10 मिनट बाद वह लड़की आई।


मैं फिर उसे ही देखे जा रहा था। पर अभी भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि उससे उसका नाम पुछु। हमारे क्लास में ऐसा होता था अगर किसी लड़की से कोई पेन भी मांग ले तो पूरा क्लास में चर्चा का विषय हो जाता था, तो इस डर से भी लड़की से बात करना मुश्किल होता था। रोज की तरह आज भी प्रेयर के बाद हम क्लास गए, सुबोध सर ने अटेंडेंस लेना शुरू किया, "रोल नंबर वन अभिषेक सिंह, रोल नंबर दो आकाश कुमार..."


इसी तरह सर सब का रोल नंबर के साथ नाम भी बोले जा रहे थे और मैं इंतजार कर रहा था उस लड़की के रोल नंबर का उसका नाम जानने का।

"रोल 32 पीयूष.............रोल 54 शिप्रा... "

"प्रेजेंट सर," वो बोली, पहली बार उसकी मधुर आवाज मैं सुना।


हां यही नाम था उस लड़की का 'शिप्रा', उसका नाम मेरे कानों में गूंजने लगा। आज मुझे उसका नाम तो पता चल गया था इसलिए आज मैं बहुत खुश था, हर पीरियड में जो भी सर आते वे नए-नए स्टूडेंट से उसके बारे में पूछते। इसी तरह मुझे शिप्रा के बारे में काफी जानकारी कुछ ही दिनों में मिल गई थी। वह कहां से आई है, पहले कहां पड़ती थी, घर कहां है, नानी घर कहां है, उसके पापा क्या करते है, यह सब मुझे करीब 1 महीने के अंदर पता चल गया था।


अब मैं रोज जल्दी स्कूल जाने लगा और एक भी दिन एब्सेंट नहीं होता था। एक दिन की बात है, अटेंडेंस खत्म होने के बाद शिप्रा अपनी दोस्त दीक्षा के साथ चॉकलेट का डब्बा निकाल कर सबको चॉकलेट बांट रही थी। मुझे उस दिन उसका जन्मदिन भी पता चल गया, '30 जून' यह डेट मैंने अपने डायरी में नोट कर लिया। उसने जो एक्लीर्स चॉकलेट दिया था उसका रैपर मैंने संभाल कर रख था।


बस उसे देखते ही 6 महीना बीत गया, नवंबर में हम लोगों का एनुअल फंक्शन होने वाला था, तो म्यूजिक वाली मैम क्लास में आकर सभी से बोल रही थी कि, "जो पार्टिसिपेट करना चाहता है वह लोग अपना नाम लिख कर दे।"


मैंने देखा कि शिप्रा ने भी अपना नाम लिखवाया था, एनुअल फंक्शन होने के कारण पढ़ाई कम और प्रैक्टिस ज्यादा होता था, तो मैंने सोचा कि शिप्रा तो अपने डांस प्रैक्टिस में रहेगी, इसलिए मैंने भी अपना नाम मैम को दे दिया एक नाटक के लिए, ताकि जहां प्रैक्टिस हो मैं उसे देख सकूं।


प्रेक्टिस चालू हुआ, वह डांस का प्रैक्टिस करती थी और मैं अपने नाटक का, 15 दिनों तक प्रैक्टिस चला पर अंत समय में मैं जिस नाटक पर प्रैक्टिस कर रहा था किसी कारणवश वह कैंसिल हो गया।


मुझे थोड़ा दुख हुआ था, उतना भी फर्क नहीं पड़ा। 21 नवंबर को हम लोगों का एनुअल फंक्शन होने वाला था, मैं शिप्रा का डांस देखने के लिए बेताब था, आखिर वह दिन आ ही गया, मैं सबसे पहले पहुंचकर पहली पंक्ति में बैठ गया, मैं बेसब्री से उसके डांस का इंतज़ार कर रहा था।


प्रोग्राम शुरू होने के 1 घंटे के बाद स्टेज से एंकरिंग कर रहे 10th क्लास के एक भैया ने आवाज लगाई, "आवर नेक्स्ट ग्रुप इज कमिंग शिप्रा एंड ग्रुप फॉर द सॉन्ग जय हो..."

मैं और उत्सुक हो गया और मेरा पूरा ध्यान स्टेज पर ही था और खासकर शिप्रा पर, उस समय ना मेरे पास फोन था और ना ही हमें फोन ले जाने की इजाजत था इसलिए मैं उसका फोटो नही खींच सका और ना ही वीडियो बना सका, स्कूल की तरफ से वीडियोग्राफी हुई थी पर वह हम लोगों के पहुंच से दूर थी, उसका एक भी फोटो मुश्किल था मिलना, स्कूल में जितने भी प्रोग्राम होते थे वह उस में पार्टिसिपेट करते ही थी। उसकी एक-एक बातों को मैं नोटिस

करता था और डायरी में नोट करता था, वह क्या करती है, स्कूल में उसने क्या-क्या किया, मुझे आज भी पता है उसने किस दिन स्टेज में थॉट दी, किस दिन अबसेंड थी और भी बहुत कुछ...


मेरे ही क्लास का प्रीतम नाम का लड़का शिप्रा को लाइन मारता था जो कि मुझे बहुत ही बुरा लगता था... उसके बारे में कोई भी बुरा कहता तो मुझे बहुत खराब लगता था। उसको देख देखकर ही 7th क्लास बीत गया, एग्जाम खत्म होने के बाद 15 दिनों की स्कूल में छुट्टी हो गई, अब मैं और भी ज्यादा परेशान रहने लगा उसे देखे बिना। 15 दिन बाद हम लोगों को रिजल्ट मिला, जिस दिन रिजल्ट मिलना था मैं उस दिन पहले ही चला गया ताकि शिप्रा को देख सकूं पर उस दिन भी मेरे नसीब ने साथ नहीं दिया और वह मुझे नहीं दिखी...

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कुछ दिनों बाद हम सभी 8th क्लास में पहुंच गए, इस बार हमारे क्लास टीचर थे दीपक सर जो की मैथ के टीचर थे, वह मुझे बहुत ही ज्यादा मानते थे ।क्लास 8 में भी मेरा वही हाल था, मेरा पूरा समय बस उसी के दीदार में निकल गया, पर उससे एक बार भी बात नहीं कर सका...


मुझे आज भी वो दिन याद है जब बायो पीरियड में सर एक गेम करा रहे थे, जिसमे इशारा कर के फ़िल्म का नाम समझाना था, शिप्रा गर्ल्स के तरफ से एक्टिंग कर के दिखा रही थी, उसे 'देसी बॉयज' मूवी का नाम समझाना था, उसने डांस कर के जो समझाया वो सीन मैं भूल नही सकता, उसकी हर छोटी बड़ी बातें मुझे याद है...

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जब मैं 9th क्लास में पहुंचा तो क्लास का पहला दिन हर बार की तरह मैं पहले ही पहुंच गया। पर इस बार शिप्रा नहीं आई थी, करीब इसी तरह 1 सप्ताह

बीत गया, मैंने उसे स्कूल में नहीं देखा, मेरा दिल अब घबराने लगा, मेरे मन में अजीब-अजीब ख्याल आने लगे कहीं उसने स्कूल तो नहीं छोड़ दिया या कहीं उसे कुछ हो तो नहीं गया... मेरे मन में बहुत से सवाल थे पर मैं किसी को बता भी नहीं सकता था...


जैसे-जैसे दिन बीतते गए मेरा मन उदास होता गया, 15 दिनों तक उसको नहीं देखा अब मेरा धैर्य टूट रहा था, मुझे लगने लगा था अब मैं उसे कभी नहीं देख पाऊंगा पर 20 दिनों बाद फिर वह एक दिन स्कूल में दिखी तब मेरी जान में जान आयी, उसने इतना लंबा छुट्टी क्यों लिया यह तो मुझे पता नहीं, पर अब मैं खुश था कि वह फिर से आ गई है।


अब मेरे क्लास में सब लड़के जान चुके थे कि मैं शिप्रा को पसंद करता हूं और दोस्त लोग मुझे उसका नाम लेकर चिढ़ाते भी थे, मैं बहुत ही शर्मीला और शांत स्वभाव का लड़का था, क्लास में किसी से ज्यादा बात भी नहीं करता था, बस चुपचाप अपने सीट पर बैठा रहता था और उसको ही देखता था।


मेरे ही क्लास के कुछ लड़के जो स्कूल के ही सर के पास ट्यूशन पढ़ते थे उन्होंने वहां भी बता दिया था कि मैं शिप्रा को पसंद करता हूं... क्लास 9th में पहुंचने के बाद मैंने पापा से कह दिया, "मैं अब बाइक में स्कूल नहीं जाऊंगा मैं साइकिल से ही स्कूल जाऊंगा।"


" रोड में बहुत गाड़ी चलता है, तुम पापा के साथ ही स्कूल जाओ।" मम्मी ने कहा।


"नहीं नहीं मैं साइकिल से ही जाऊंगा, मैं इतना बड़ा हो गया हूं कब तक पापा के साथ बाइक में जाऊंगा।" मैंने कहा...


मेरे जिद करने के बाद पापा ने साइकिल से स्कूल जाने की अनुमति दे दी। अब मैं साइकिल से ही स्कूल जाने लगा, ताकि जब तक शिप्रा को कोई लेने नहीं आ जाए तब तक मैं उसे देख सकूं और जब वह निकले तब मैं अपने साइकिल से निकलूं, जो कि पहले यह नहीं हो पाता था, क्योंकि पापा पहले ही आ जाते थे मुझे लेने...


कुछ दिनों बाद से शिप्रा भी साइकिल से स्कूल आने लगी, यह देखकर मैं और भी ज्यादा खुश हो गया, अब मैं छुट्टी के समय उसके पीछे- पीछे जाने लगा, सैकड़ों साइकिल बीच में मैं उसकी साइकिल को पहचान लेता था और यह पता कर लेता था कि वह आज आई है या नहीं, उसका पीछा करना अब मेरा आदत बन गया था, पर उसे रोककर बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी...


यह बात पूरे क्लास में फैल गई थी कि मैं उसका पीछा करता हूं, यहां तक कि मेरे स्कूल के टीचर्स को भी पर किसी ने मुझसे कुछ कहा नहीं, कभी-कभी दोस्त लोग ही चिढ़ाते थे, 26 जनवरी 2014 को रिपब्लिक डे का प्रोग्राम खत्म के बाद मैं उसका पीछा साइकिल से कर रहा था, पर वह उस दिन अपने भाई के साथ बुलेट में आई थी। वैसे मुझे उसका घर का एग्जैक्ट लोकेशन नहीं पता था तो मैं उसका घर का पता जानना चाहता था, इसलिए मैंने उसके बुलेट का पीछा किया और फिर उसके घर के दरवाजे तक पहुँच गया। मैंने देखा उसके भाई ने मुझे देख लिया है तो मैं वहां से तुरंत यू टर्न मारते हुए वापस अपने घर आ गया...


जान है तो जहान है...

उसका घर मेरे घर से करीब 500 मीटर की दूरी पर था, अब मैं स्कूल जाते वक्त उसके घर के पास खड़ा हो जाता और उसके निकलने का इंतजार करता था, ताकि मैं उसके साथ जा सकूं, कभी-कभी तो वह रास्ते में मिल जाती पर कभी-कभी यह मौका नहीं मिलता था, मुझे जब भी मौका मिलता मैं उसके घर के तरफ ही ज्यादा समय बिताने की कोशिश करता था ताकि मैं उसे स्कूल के बाद भी देख सकूं...


एक दिन मेरे ही क्लास के रंजन सिंह ने मुझे बताया कि शिप्रा रोज सुबह 6 बजे ट्यूशन जाती है, रंजन उसके घर के आसपास ही लॉज में रहता था... मैं दूसरे ही दिन 6 बजे से पहले ही उसके घर के पास पहुँच गया और उसके बाहर निकलने का इंतज़ार करने लगा, उस वक्त मेरा भी मैथ ट्यूशन था दीपक सर के पास पर मैं अपना ट्यूशन छोड़ कर उसके पीछे चल पड़ा, उसने मुड़ कर मुझे देखा और फिर आगे बढ़ गयी, उस दिन मैं अपना ट्यूशन आधे घंटे लेट पहुँचा था...


उस समय मुझमे इश्क़ का भूत कुछ इस कदर सवार था कि क्या बताऊँ, वो मेरे बारे में क्या सोचती थी मुझे नहीं पता पर मैं उससे बेइंतहा मोहब्बत करने लगा था...


इसी तरह क्लास 9th के 6-7 महीने बीत गए, पर अभी तक उससे एक बार भी बात नहीं हुई थी... सितंबर महीने में हम लोगों का मिड टर्म एग्जाम चल रहा था, 14 सितंबर को हम लोगों का साइंस का पेपर था, एग्जाम खत्म होने के बाद मैं और शिप्रा साथ ही स्कूल से निकले, आज मैं मन बना चुका था कि उससे जरूर बात करूंगा, स्कूल से निकलने के कुछ देर बाद मैंने उसे आवाज दिया, "कैसा गया तुम्हारा एग्जाम...?"


"अच्छा गया..." उसने धीरे से कहा, "तुम्हारे पास प्रीवियस ईयर का क्वेश्चन है क्या..?" - मैंने बात को आगे बढ़ाने के लिए फिर सवाल किया।


"नहीं..." उसने जवाब दिया। फिर मैं उसके साथ साथ ही चलने लगा, थोड़ी दूर साथ चलने के बाद वह अपने घर की तरफ मुड़ गई और मैं अपने घर की तरफ मुड़ गया।


उस दिन मेरा दिल बहुत ही ज्यादा खुश था क्योंकि मैंने करीब ढाई साल बाद उससे पहली दफा बात किया, मेरी खुशी का ठिकाना ना था, घर में मेरी मम्मी पूछी, "क्या हुआ आज बहुत ज्यादा खुश लग रहा है.."

"हां बस ऐसे ही..." मैंने बात को टालते हुए कहा और मैं उस दिन दिनभर बस उसी के बारे में सोचता रहा, अब मुझमे थोड़ी-थोड़ी हिम्मत आ रही थी उससे बात करने की, मैंने दूसरे दिन भी कोशिश की बात करने की, बस थोड़ी सी ही बात हुई, मुझे लगा था कि अब मैं उससे बात करके दोस्ती कर सकता हूं...


उसे भी पता चल चुका था कि मैं उसका पीछा करता हूं और उसे पसंद करता हूं... एक दिन की बात है मैं उसके साथ साइकिल से बात करते हुए जा रहा था, इसी बीच मेरी साइकिल की चैन उतर गई, शिप्रा तो आगे बढ़ गयी, पर मैं वही रह गया और साइकिल को बनवाने लगा, फिर कुछ दिनों तक हम लोगों के

बीच बात नहीं हुई। अब मेरे साथ ऐसा होने लगा कि जब जब भी मैं उससे से बात करने की कोशिश करता तब तब मेरे साइकिल की चैन उतर जाती है ये इतेफाक था या मेरी बदनसीबी पता नहीं...


इसी तरह 9th क्लास भी बीत गया।

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अब हम लोग दसवीं क्लास में थे, स्कूल का आखरी साल, अब मेरा दिल घबराने लगा था, 1 साल में अब उससे बिछड़ जाऊंगा यह बात मुझे बीच-बीच में सताती रहती थी...

जब हम लोग दसवीं क्लास में गए तो हमारे क्लास में 26-27 वर्ष एक जवान इंग्लिश के टीचर थे जो कि शिप्रा को हमेशा लाइन मारते थे, यह मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था और उस टीचर को भी पता था कि मैं शिप्रा को पसंद करता हूं। मेरी और इंग्लिश टीचर में बिल्कुल नहीं बनती थी। मेरे हर कॉपी किताब में शिप्रा नाम लिखा मिल ही जाता था... मैं इस स्टाइल से उसका पूरा नाम लिख देता था कि किसी को पता भी नहीं चलता था, मैं शिप्रा की सारी बातें अपने जिगरी दोस्त 'जीत' के साथ शेयर करता था... स्कूल में हुई सारी बातों को मैं उसे बताता था, एक वही लड़का था जो मेरे बारे में सब कुछ जानता था...


एक दिन की बात है मैं क्लास में बैठा हुआ था, मेरे बगल में शशांक नाम का लड़का बैठा हुआ था और मैं फर्स्ट बैच में बैठकर शिप्रा को देख रहा था, उस समय हमारे क्लास में नेहा मैम थी। मैं शिप्रा को देखे जा रहा था ऒर नेहा मैम मेरे सामने खड़ी होकर मुझे देख कर हंस रही थी, पर यह बात मुझे पता नहीं थी, थोड़ी देर बाद शशांक ने मुझे बताया कि मैम तुमको देख रही है, तो मैंने मैम की तरफ देखा, मैम हंसकर आगे बढ़ गई बिना कुछ कहे... मैंने शर्माकर अपना चेहरा छुपा लिया...


क्लास 10th के खत्म होने में बस 2 महीने ही बचे थे, अब मैं उसे प्रपोज करने की सोचने लगा, मैं उसे 14 फरवरी को प्रपोज करना चाहता था इसलिए मैंने पहले एक लाल गुलाब का जुगाड़ किया... 14 फरवरी 2015 को डेरी मिल्क और गुलाब अपने ब्लेजर के अंदर वाले पॉकेट में रखकर स्कूल चल पड़ा... मैंने आज ठान लिया था कि मैं उसे प्रपोज करके ही रहूंगा। आज स्कूल में तो मुझे मौका नहीं मिला, स्कूल छुट्टी होने के बाद में उसके पीछे साइकिल से जाने लगा पर आज भी नसीब ने मेरा साथ नहीं दिया। मैंने जैसे ही शिप्रा को आवाज दिया, तो वह थोड़ी देर के लिए रुकी पर उसी वक़्त मेरी साइकिल की चैन उतर गई और मेरा चेहरा भी... वह आगे बढ़ चुकी थी, मैंने साइकिल से उतरकर साइकिल में 2-4 लात गुस्से में मारा, उस दिन मुझे बहुत दुख हुआ, मैंने घर जाकर ठीक से खाना भी नहीं खाया, पूरा मूड खराब हो चुका था मेरा... कुछ दिनों बाद हम लोगों का क्लास ऑफ हो गया, अब सभी लोग 10th क्लास के एग्जाम की फाइनल तैयारी में लग गए थे...


पढ़ाई के साथ-साथ मेरा ध्यान अब भी शिप्रा के तरफ ही था, उससे बिछड़ने का डर मुझे और भी सताया जा रहा था, 3 मार्च से हमारी फाइनल एग्जाम शुरू हो गई। हम लोगों का सेंटर भागलपुर में था, वो अपने कार से भागलपुर जाती थी और मैं स्कूल बस से ही भागलपुर जाता था। एग्जाम हॉल में उससे देखता तो था पर उसे कुछ कह नहीं पाया... इसी तरह पांच पेपर खत्म हो गए, मैं उसे अब भी नहीं बोल पाया था कि मैं उससे कितना प्यार करता हूँ,...


अब हमलोगों का सिर्फ एक पेपर बचा था इंग्लिश का, मैंने अब ठान लिया था जो भी हो जाए उसे अपने दिल की बात उस दिन बता दूंगा, लास्ट पेपर देने के बाद मैं जैसे कि बाहर आया, मैंने देखा वो अपनी दोस्त दिव्या के साथ खड़ी थी, वो उस दिन ब्लू कुर्ती और जीन्स पहनी थी...


मैं उसके तरफ बढ़ने लगा, जैसे ही उसके करीब पहुँचा मेरे पाँव रुक गए, मेरी मुट्ठी तन गयी आज फिर मैं अपने नसीब से शिप्रा की माँ ठीक उसके पीछे खड़ी थी, मेरी हिम्मत टूट गयी उसके पास जाने की, मैं वापस लौटकर अपने बस में बैठ गया और उसे खिड़की से ही एकटक देखता रहा...


19 मार्च 2015 दिन के 1:30 बजे मैंने उसे आखरी बार देखा... मेरी बस जैसे-जैसे आगे बढ़ रही थी, मेरी आंखों से आंसू की धार और तेज हो रही थी, मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था... अचानक वो मेरी आँखों से ओझल हो गयी, पर उसकी तस्वीर अब भी मेरे आंखों के सामने नाच रही थी, मैं पूरा रास्ता रोता रहा।


एग्जाम खत्म होने की खुशी मेरे अंदर नहीं थी जैसा कि मेरे बाकी दोस्तों के चेहरों में खुशी साफ देखी जा सकती थी, स्कूल से निकलने के बाद भी मैंने उसके बारे में पूरा पता किया पर उसका कहीं पता नहीं चला...।


वह कहां होगी..? कैसी होगी...? यह सवाल मुझे आज भी तड़पाता है, उसकी याद आज भी मेरे दिल को रुला देती है... किसी को अपना हाल-ए-दिल कहे

बिना सिर्फ प्यार से देखना भी तो प्यार है... हां... एकतरफा प्यार...


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