मेरे पिता के कुछ हसीन पल
मेरे पिता के कुछ हसीन पल
समय सबको बदलकर रख देता है। मैंने सोचा नहीं था कभी की मेरी जिंदगी की आगे चलकर कुछ ऐसे समय से गुजरना पड़ेगा। जब मैं 13 साल का था तब मुझे कुछ समझ में आने लगा था और मैं होश सभालने लगा था। हमारी जिंदगी अच्छी चल रही थी और मजे से कट रही थी। मेरे पिताजी और मैं बहुत ही खुश थे। वो मुझे हमेशा से कहते थे बेटा तू बस पढ़ कर, अपनी पढ़ाई खत्म कर। मैं तुझे ऐसा इंसान बनाऊँगा की तू लोगो के सामने नहीं दुनिया तेरे सामने झुकने पाए और मैं भी हाँ में हाँ मिलाता गया पर मैंने ये कभी नहीं सोचा था कि मेरे पिता के साथ ऐसे दुर्घटना घटेगी और उनका देहांत हो जायेगा।
मुझे मेरा वो 11वी का साल बड़ा मनहूस लगा। पर मुझे मेरे माँ का पालन पोषण की जिम्मेदारी पूरी जो करनी थी। मेरे मौसी और उसके लड़के का यानी मेरे भाई का भी पूरा करना होगा। ऐसे बढ़ते जाता है समय और समय का पहिया चलता जाता है। मेरे पिता ने मेरे बारे में क्या सँजोए रखा था और हमेशा कहते कि देख सँभल कर रहना इस जग में बहुत सारे लोग ऐसे है जो लोगो को फुसलाते है और धोखा देते है इनसे बचके रहना समझा की नहीं और उस दिन मेरे पिता के हाथों से इतनी मार पड़ चुकी थी। मैं उन्हें बाहर जाने देना नहीं चाहता था। पर उन्हें जाना था इस वजह से उन्होंने मुझे बहुत पीटा था और मैंने रोते हुए खुद खुदा से उनके मरने की बात कही। खुदा ने मेरी सुन भी ली जब मुझे उस बात का पता चला तब मैं बहुत ही ज्यादा रोया। उनके मरने का सारा इल्जाम मैंने खुद पर ले लिया था और उस दिन मैं खुदा से और कुछ भी मांगता तो खुदा मुझे वो भी दे देता। उस बात क़ो याद करकर मैं आज भी रोता हूँ और उस समय भगवान से बस यही प्रार्थना करता हूँ की वो समय मुझे लौटा दे। मैं बच्चा ही बनकर रहना चाहता हूँ और उस दिन को वापस जीना चाहता हूँ।
