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सुनील पवार

Drama

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सुनील पवार

Drama

कहाँ गए वो दिन

कहाँ गए वो दिन

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आज मैं आपको वो कहानी सुनाना चाहता हूँ। तो सुनिए ये कहानी शुरू होती है मेरे उन दिनों से जब मैं छुटपन की बात है। वह से कहानी शुरू होती है कितने प्यारे से दिन वो जब हम अपने बाबा के साथ गांव घूमने जाया करता था। वो आम के बगीचा था उसमे एक पेड़ था आम का जो हमेशा से हमारा प्यारा रहा है। उस दिन भी मैं आपने बापू के साथ दूसरे गांव जाना था शादी में पर उस दिन वह मुझे किसी के रोने की आवाज सुनाई देने लगी।


मैंने अपने बापू से कहा बापू बापू आप को कुछ सुनाई दे रहा है क्या?, बापू ने बोला नही मै फिर आगे बढ़ रहा था कि मुझे फिर किसी के रोने की आवाज आने लगी। अब मुझसे रहा नही गया और मैं बापू से बोला बापू आप यही रुको मुझे उस आबू के पास से किसी के रोने की आवाज सुनाई दे रही। मैं देख आता हूँ। बापु ने रोकने की बहुत की पर मैं नही रुका। अरे मैं आबू की बात तो भूल ही गया। अब आप सोचेंगे कि ये कहानी में आबू कौन है? आबू वही जो मैंने आपको आम का पुराना पेड़ उससे इतना लगाव था कि मैं उसे आबू कहता था। पर आबू उसका नाम क्यों पडा इसके पीछे बहुत लंबी कहानी है। वो कभी बताऊंगा पर अब मैं जब आबू के पास पहुँच गया तो मैं ने वह किसी को नही पाया। फिर मैं वह से जाने लगा, तब फिर मुझे किसी ने रुकने को कहा। मैने चौककर देखा तब भी कोई नही था। तब मैं डर गया और कहा कोई है क्या है? तो सामने क्यों नही आता? तब किसी ने जोर से कहा बेटा मैं तुम्हारा दोस्त आबू बोल रहा हूँ। मुझे डर लग रहा था पर था तो मेरा दोस्त। तब मैंने उससे कहा क्या हुआ यार? तू रो क्यों रहा था यार? तभी मुझे मेंरे पिता ने आवाज लगाई कहाँ है रे? राजू बिटवा चल जाना है शादी में दूसरे गांव चल जल्दी मैंने भी आवाज लगाई आता हूँ बापू तब मैंने आबू से कहा


बाकी अगली बार ------


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