डायरी में कैद गुलाब की दास्तान
डायरी में कैद गुलाब की दास्तान
हाय! मेरे दोस्तों, मैं आपका दोस्त फिर आप के लिए एक नई कहानी लेके फिर हाजिर हूं, ये कहानी है एक गुलाब की, हाँ मैं एक गुलाब हूं , जब मैं जन्म के समय अपने मांं की गर्भ में था तभी से वो मांली मुझे ओर मेरी मांँ याने वो पेड़ जिस पर मैं लगने वाला था का बड़े प्रेम भाव से ह मांरा लालन पालन कर रहा था और जब मैं कली बना तब भी बड़े प्यार से पाला था ।और जब मैं कली से फूल बना और मैं उस समय बहोत छोटा था तब भी बड़े प्यार से पाला ओर मेरा दोस्त वो भंरा जो मेरा मीठा मीठा मधुपीता था जो मुझसे बड़ा प्यार करता था और न जाने के लिए कहता, मैं तो उसे है बोलता पर मेरी मांँ मुझे देख चुप हो जाती तब मैं अपनी मांँ से कहता बोलो ना, मांं मैं कभी छोड़कर नही जाऊँगा ना, तब मेरे पिता जो पेड़ की डालियां ओर जड़ थे मुझपर हंसने लगते तब कुछ बातों को वक्त पर समझ लेना ही अच्छा होता ये कहते, पर मेरी मां उसे कहती अभी नहीं जायगा ओर मैं माली को जानती हूं वो ऐसा नही करेगा, तब मेरे पिता ही मुझे समझाने लगे "देख बेटा तू एक फूल है और तू किस के पास ओर किस लोगो के पास जायगा न ये मैं बता सकता हूं न वो दादा जिसने तुझसे बात की, वो तुझे किस हाथ बेच दी नहीं बता सकता और ले जाने वाला तेरे साथ क्या करेगा ये तेरा नसीब, तू किसी के अर्थी पर चढ़ेगा या दरगाह पर ये ना मैं बता सकता हूं न कोई और, तू किसी महबूब के जेब की शोभा बढ़ेगा की महबूबा के प्रेम का प्रतीक बनेगा ये न पता ।हाँ जब मैं पैदा हुआ तो माली का वो बेटा बहोत ही खुश था क्यूँकि उसकी मेहनत से हुआ था । जब मैं पैदा हुआ था वो सब को बताता फिर रहा था "देखो बगिया में मेरे लगाए पेड़ में गुलाब का फूल उग आया है । उस खुशियों में वो माली भी खुशहुआ । दावत दी थी उसने जितने किसी फूल लगने पर ख़ुशी नहीं हुई थी उतनी मेरे आने की थी और इस तरह मैं इस जगत में आया पर वो दिन था और आज का दिन है आज मुझे जन्म के आठ दिन पूरे हो गये हैं, मैं आज बड़ा हो गया हूं, ।आज मेरे पिता ने मुझसे कहा "बेटे मेरी बताई सारी बातें याद है ना जोमैंने सिखाई थी."
" हां मुझे वो सारी बात याद आई जो उन्होंने मुझे समझाई थी । तुझे ले जाने वाला कैसा भी क्यूँ हो सिर झुका कर उसका स्वागत ही करना है, उसको कोई नुकसान नही होने देना और वो दिन भी आया जब मुझे मेरे घर से मेरे मां बापू से अलग किया जाना था ।बस वो क्षण भी आ पहुँचा ओर मुझे सबसे पहले माली ने मुझे तोड़कर सब फूलो में मिला दिया उसके बाद वो मुझे थोक बाज़ार जहाँ हम जैसे फूल बेचे जाते थे वह ले गया, यहाँ सफर थमने वाला नहीं था, उस बाजार से एक बूढ़ी माई ने मुझे खरीद लिया फिर वो मुझे अपने दुकान में ले गई । वहाँ मुझे मोटे दाम पर बेचना चाहती थी पर कोई उससे अच्छे दाम पर लेना ही नहीं चाहता था तो उसने मुझे अच्छे तो नहीं पर ठीक भाव में बेच दिया, किसी लड़के ने मुझे खरीदा था, अब मुझे बहोत ही डर लगने लगा । मैं जब अपने बनाने वाले के पास जाऊँगा तो उससे क्या बोलूंगा पर जब वो लड़का मुझे लेकर अपने घर आया तो मुझे लगा कि वो अपने आराध्य देवता को अर्पित करेगा पर ऐसा हुआआ नहीं,ऐसा होता तो मुझे खुशी होती पर वो अपने मेज़ पर किताब के साथ मुझे रखकर भूल गया ही था कि मांँ ने आवाज दी "राजू बेटे तुम्हारा किताब कुछ रह गया है उससे भी ले जाओ । तब तक मुझे लगा वो मुझे भूल कर चला गया और मेरा जीवन बेकार हो जायेगा, मेरा डर बढ रहा था तब आवाज आते ही राहत ली, मैने भी यही जाना कि वो लड़का भी राहत की सांस ले रहा है फिर वो मुझे अपने साथ कॉलेज में ले गया और अपने प्यार का इजहार करने लगा । मैने अपने आजु बाजू नजरें घुमा कर देखा तो सभी प्रेमी यही करते दिख रहे थे इसलिए मैन जाना कि आज वैलंटाइन डे है और आज सब यही करते हैं, उसके बाद उस लड़की में मुझे अपने बुक में रख लिया और जब भी उसे कोई याद दिलाता है कि आज वैलंटाइन है तो उसे वो घटना याद आती है और वो वही किताब उठाती है ओर उस समय को जीती है बल्कि उसी लड़के से शादी की, पर वो मुझे भूली नहीं कि उसने मुझे उस किताब में रख रखा है और उस किताब को भी संभाल कर किसी कोने में रखा है । उस कारण मैं आज भी जीवित हूं, यही है प्यारों मेरे जीवन का सफर।
